गणतंत्र दिवस के मौके पर सुशील भीमटा की इस बेहतरीन रचना को आप भी पढ़िए


BYसुशील भीमटा


कौन-कौन आजाद है? 26जनवरी 2019 तक

स्वतंत्र कौन-कौन है सांसे किसकी आजाद हैं यहां?
अपनी पहचान करवाओ लगते तो सब बेजुबान हैं यहां?
मानशिकता हमारी आजादी से पूर्व की तरह गुलाम है,
लूट- घसूट का दौर चल रहा, खामोश सरेआम हैं यहाँ।

बलि चढ़ रहे नारी, जवान, किसान नारे लगते हम महान है।
धर्म जाति करती तांडव कत्लेआम होता अब भी सरेआम है!

नशे-लूट का धंधा, वतन से गद्दारी के वाकिये आम हैं,
सियासत के डर से हल्क में अटकी दलितों की जान है!

543 लोगो के संसद में 70 सालों से बंद रखे कान हैं,
बिक रहा वतन, महफिलें सजती उनके घर सरेआम हैं!
नाम की है आजादी, दिखती जो हमारी झूठी शान है,
लोकतंत्र को नंगा करती लाशों से भरे आज शमशान हैं!

कैसा लोकतंत्र? फुटपातों पर सोता आधा हिन्दोस्तान है,
बेघर है अपने ही वतन में क्या ये लोकतंत्र की पहचान है?
झोपड़ियों फुटपातों पर 70 साल से 30% हिन्दोस्तान है,
मुल्क के तथाकथित रहनुमाओं के घर बनें गुलिस्तान है!

कौन कौन आजाद है मुझे भी अपनी पहचान दो ना,
किसी की साँसे आजाद हैंं, मुझे वो साँस दो ना!
मेहनतकश गरीब हुँ 70 से लोकतंत्र का मारा बदनसीब हूँ,
रियासत, सियासत सब मेरे दम पर मुझे भी आस दो ना!

वतन में कोई जत्न नही नियम कानून, जनता गुलाम है,
फिर भी हर 26 जनवरी को तिरंगे को होती सलाम है!
कट रहे मजहब जाति के नाम, लेते लोकतंत्र की जान है
26 जनवरी की दुहाई देकर साजिशे जवानों संग आम है!

नही माइनें इस आजादी के कोई जब तक हम मानसिक गुलाम हैं।

फुटपातों, झोपड़ियों में सोते बाशिंदे वतन के नारे लोकतंत्र के गूँजते सरेआम हैं।
दम तोड़ती है ज़िंदगियां फुटपातों, खेतों, सरहदों पर कर्णधारों का भृष्टाचार आम है।
70सालों की हुई आजादी आज भी दो निवालों के लिए रोता बिलखता हिन्दोस्तान है।।

लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।

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