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इलाहाबाद: पिछले 1 महीने में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के न्यायाधीश दिनेश कुमार सिंह ने बलात्कार के तीन आरोपियों को

इस शर्त पर रिहा कर दिया कि वह बलात्कार की शिकार पीड़िताओं से विवाह करके उन्हें सामाजिक मान्यता देंगे.

इस संदर्भ में तीन अलग-अलग केसों का हवाला दिया जा सकता है. केस नंबर-1: बीते 10 अक्टूबर को न्यायाधीश दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने जेल में बंद

बलात्कारी मोनू को जमानत देते हुए 2 तथ्यों पर विचार किया. पहला यह कि पीड़िता और उसके पिता ने इसका विरोध नहीं किया और दूसरा पीड़िता पहले ही आरोपी के बच्चे को जन्म दे चुकी है.

दरअसल खीरी जिले की पुलिस द्वारा अपहरण, बलात्कार और यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 3-4 के तहत मोनू पर मामला दर्ज किया गया था.

उस समय पीड़िता की उम्र 17 वर्ष थी जिसे बहलाकर, फुसलाकर मोनू अपने साथ ले गया था.

दूसरे केस- में हम 30 सितंबर को दिए गए निर्णय का अवलोकन कर सकते हैं जिसमें आरोपी शोभन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि

शुभम को इस शर्त पर रिहा किया जा सकता है कि जमानत पर जेल से बाहर आते ही वह पीड़िता से विवाह करेगा.

इसी तरह तीसरे केस-में भी हम देख सकते हैं कि 28 सितंबर को सूरजपाल की जमानत पर सुनवाई हुई थी जिस संदर्भ में रायबरेली पुलिस द्वारा बलात्कार के साथ ही

sc-st अधिनियम और पाक्सो की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था जो कि पीड़ित दलित समुदाय से होने के अतिरिक्त नाबालिग भी थी, ऐसे में सूरज पर अनेक धाराएं लगाई गई.

इसी तरह का एक मामला उन्नाव जिले के रामबाबू की जमानत याचिका से जुड़ा है जिस पर सामूहिक बलात्कार करने, जहर देने, अपहरण करने,

आपराधिक धमकी के साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस केस में भी आरोपी को इस आधार पर छोड़ दिया गया कि

वह हिंदू कानून और रीति रिवाज के अनुसार विवाह करके महिला को उसका सम्मान वापस करेगा. इस तरह के निर्णय निश्चित तौर पर अनोखी पहल को दर्शाते हैं.

यह कहीं ना कहीं न्यायिक व्यवस्था में बिल्कुल नए तरीके की शैली है. फिलहाल इसका अंजाम कितना प्रभावी होगा यह तो समय बीतने के बाद ही पता चल पाएगा.

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