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भागलपुर: आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण के जरिए संविधान के मूल ढ़ांचे को तोड़ने, अबाध गति से जारी निजीकरण, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी,

बहुजन विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, चौतरफा बढ़ते मनुवादी-सांप्रदायिक हमले और बढ़ती तानाशाही के खिलाफ जातिवार जनगणना कराने,

नीचे से ऊपर तक न्यायपालिका व निजी क्षेत्र में एससी, एसटी व ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने, ओबीसी आरक्षण को आबादी के अनुपात में बढ़ाने

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सहित अन्य मुद्दों पर सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) का क्षेत्रीय सम्मेलन भागलपुर के अंबेडकर भवन (सुंदरवन, बरारी रोड) में संपन्न हुआ.

इस मौके पर मुख्य अतिथि दिल्ली से आए पत्रकार-लेखक डॉ. सिद्धार्थ रामू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के EWS आरक्षण के पक्ष में आए फैसले से

इस देश के दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों और सामाजिक न्याय पक्षधर शक्तियों को गहरा आघात लगा है. यह लंबे समय से चले आ रहे सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए बड़ा झटका है.

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आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान को बदलने और मनुविधान थोपने की कार्रवाई है. सामाजिक न्याय पर अधिकतम हमला है.

समाज के विशेषाधिकार प्राप्त हिस्सों के विशेषाधिकार व वर्चस्व को बनाये रखने की गारंटी है. कोई भी संविधान पक्षधर EWS आरक्षण को कबूल नहीं कर सकता है.

इसका जोरदार प्रतिकार करने की जरूरत है. इस मौके पर बहुजन बुद्धिजीवी डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार सामाजिक-आर्थिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र पर लगातार प्रहार कर रही है.

अबाध गति से निजीकरण कर रही है. संपत्ति व संसाधनों पर कॉरपोरेट का कब्जा बढ़ता जा रहा है.
भूख, गरीबी, बेरोजगारी व महंगाई की मार सबसे ज्यादा बहुजनों पर ही है.

सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रिंकु यादव ने कहा कि EWS आरक्षण पर चुप रहकर सामाजिक न्याय की लड़ाई आगे नहीं बढ़ सकती है.

EWS आरक्षण के खिलाफ लड़ना संविधान बचाने की लड़ाई है, सामाजिक न्याय के विचार व अवधारणा की रक्षा की लड़ाई है.

सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रामानंद पासवान ने कहा कि EWS आरक्षण के खिलाफ सामाजिक न्याय के महत्वपूर्ण मुद्दों-जातिवार जनगणना कराने,

नीचे से ऊपर तक न्यायपालिका व निजी क्षेत्र में एससी-एसटी व ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने, ओबीसी आरक्षण को आबादी के अनुपात में करने,

सबको शिक्षा व स्वास्थ्य का अधिकार सहित सभी सरकारी रिक्तियों को भरने के साथ हर हाथ को काम की गारंटी देने, जन वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाने के साथ

सभी जरूरी खाद्य सामग्री की आपूर्ति करने, भूमिहीन बहुजनों को वास व कृषि भूमि देने, किसानों के उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर

सरकारी खरीद की गारंटी करने जैसे सामाजिक-आर्थिक न्याय के महत्वपूर्ण सवालों पर आवाज बुलंद करने के लिए 13 दिसंबर को पटना के

आइएमए हॉल में आयोजित बहुजन-पसमांदा सम्मेलन आयोजित है. इस सम्मेलन को सफल करते हुए सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाना है.

सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के गौतम कुमार प्रीतम ने सम्मेलन का संचालन करते हुए कहा कि बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार अविलंब अतिपिछड़ों-पिछड़ों का आरक्षण बिहार में आबादी के अनुपात में लागू करे.

झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकार ने ओबीसी का आरक्षण बढ़ाने का काम किया है. बिहार सरकार भूमिहीन बहुजनों को भूमि अधिकार और शिक्षा सुधार की गारंटी करे.

सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के नवीन प्रजापति ने कहा कि अतिपिछड़े-पसमांदा समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी आज भी आबादी के अनुपात से काफी कम है.

बिहार विधानसभा में भी अतिपिछड़ों की भागीदारी केवल 7 प्रतिशत है. अतिपिछड़ों की लड़ाई भी सामाजिक न्याय की लड़ाई है.

सम्मेलन के अंत में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) की भागलपुर जिला कोर कमिटी और पूर्वी बिहार क्षेत्रीय कोर कमिटी का गठन किया गया.

भागलपुर जिला कोर कमिटी में रामानंद पासवान, रिंकु यादव, गौतम कुमार प्रीतम, पृथ्वी शर्मा, गौरव पासवान, संजय यादव, ई.डीपी मोदी आदि हैं.

जबकि पूर्वी बिहार क्षेत्रीय कोर कमिटी में गौतम कुमार प्रीतम, रामानंद पासवान, रिंकु यादव, नवीन प्रजापति, विनय कुमार सिंह, अशोक कुमार पंत, सुमन कुमार सिंह आदि शामिल हैं.

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