भारत एक कांवड़िया प्रधान देश है. वो जमाने कब के लद गए, जब भारत एक कृषि प्रधान देश हुआ करता था. तब हम एक पिछड़ा हुआ देश थे, तब तो मोदी जी भी नहीं आए थे.
कंगना जी की बात मानें तो भारत को आजादी तक नहीं मिली थी, पर अब नहीं. अब आजादी भी आ चुकी है, मोदी जी भी आ चुके हैं, हम पिछड़े नहीं रहे.
हम विकसित देश अब तक अगर नहीं भी बने हैं, तब भी 2047 तक तो पक्का ही विकसित देश बन जाने वाले हैं. ये मोदी जी का वादा है, बल्कि मोदी की गारंटी है.
पेरिस ओलम्पिक से खिलाड़ी जो मैडल जीत कर लाएंगे सो लाएंगे, मोदी जी जल्दी ही इस देश के लिए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति का मैडल जीत कर ले आएंगे.
मोदी जी राम को वापस भी ले आए हैं, काशी से उज्जैन तक जगमग मंदिर कॉरीडोर बनवाए हैं, आगे और भी कॉरीडोर बनवाएंगे.
मोदी जी ही सैंगोल लाए हैं और उसे अपने नये संसद भवन पर झंडे की तरह फहराए हैं. वही मोदी जी कांवड़िया युग भी तो लाए हैं और कुछ लाना हो, तो वह भी बता दीजिए, ला दिया जाएगा.
मोदी जी इस पारी में बहुतै उदारता के मूड में हैं. देखा नहीं, कैसे बिहार और आंध्र प्रदेश में विशेष दर्जा आते-आते, बाल-बाल ही बचा है.
कांवड़िया युग पर लौटें. मोदी जी कांवड़ नहीं लाए हैं, कांवड़ तो पहले भी होती थी, अंगरेजों के जमाने में भी. शायद उससे भी पहले जैसे काशी में बाबा विश्वनाथ का मंदिर मोदी जी से पहले भी होता था.
जैसे अयोध्या में राम का निवास भी होता था जैसे नेहरू-वेहरू के टैम में भी भारत का विकास होता था और कांवड़ें होती थीं, तो कांवड़िए भी पहले से होते ही होंगे.
हालांकि यह तय करना मुश्किल है कि पहले कांवड़ आयी या कांवड़िए आए. वैसे यह भी सच है कि कांवड़िए के बिना कांवड़, कांवड़ कहां होती; वह तो बहंगी रह जाती बहंगी.
श्रवण कुमार वाली बहंगी जिसमें बैठाकर उसने अपने बूढ़े माता-पिता को तीर्थ यात्रा करायी थी. खैर, कांवड़, कांवड़िए, सब पहले भी रहे होंगे, पर कांवड़िया युग,
काशी कॉरीडोर की तरह एकदम नयी चीज है, जो मोदी जी लाए हैं और योगी जी, धामी जी, आदि, आदि अपने डबल इंजनिया गणों के साथ लाए हैं.
कांवड़िया युग है, तभी तो हैलीकोप्टरों से आला पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों से, कांवड़ियों पर जगह-जगह पुष्पवर्षा है. राम जी बुरा नहीं मानें, यह उनके टैम से भी आगे का मामला है.
वर्ना फूल तो उनके टैम पर भी हुआ ही करते होंगे. उनके टैम में पुष्पक विमान भी थे यानी आकाश से पुष्पवर्षा तो तब भी की ही जा सकती थी.
फिर भी किसी भी पुराण में, किसी भी महाकाव्य में, किसी भी किस्से में, कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा का प्रसंग नहीं मिलता है –आखिर क्यों? सिंपल है.
पुष्पक विमान पर चढ़ने वालों के मन में तब इतनी कांवड़िया-भक्ति नहीं थी. कांवड़ थी, कांवड़िया थे पर कांवड़िया भक्ति नहीं थी, कांवड़िया भक्ति युग तो मोदी जी ही लाए हैं.
कांवड़िया युग है, इसलिए सड़कों पर कांवड़ियों का राज है. शहरों, कस्बों में कांवड़ियों का राज है. हर तरफ कांवड़ियों का राज है क्योंकि राज करने वालों पर ही कांवड़ियों का राज है.
कांवड़ियों के राज में सब कुछ है. कांवड़िया राज में जोर का डीजे है. कांवड़िया राज में नाच-गाना है, नशे की तरंग है, भीड़ की उचंग है, कांवड़ों के खंडित होने का शोर है. जो सामने पड़ जाए, उसकी धुनाई पर जोर है, मनमानी का लाइसेंस है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)