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आमतौर से किसी देश की जनता में फूट, वैमनस्य और बिखराव पैदा करने के लिए उसके दुश्मन देश सैकड़ों, हजारों करोड़ रूपये खर्च करते हैं,

लाख साजिशें और षडयंत्र रचते हैं, घुसपैठिये भेजते हैं, अफवाहें फैलाते हैं. मगर भारत इस मामले में एक अभिशप्त देश है.

यहाँ यह काम दुश्मन देशों की तुलना में कहीं ज्यादा जघन्यता और शिद्दत के साथ खुद इसी देश का एक समूह करता है.

इसके लिए फिल्म बनाता-बनवाता है, उसे दिखाने के लिए अपने पैसे से टिकिट खरीदकर भीड़ जुटाता है. पहले “कश्मीर फाइल्स” और अब “केरला स्टोरी” इसी तरह का कारनामा है.

भारतीय जनता की सदियों पुरानी अटूट एकता विश्व की सारी सभ्यताओं में एक अलग ही अनोखा  उदाहरण है जिसे विखंडित और तिरोहित करने का काम

इन दिनों भारतीय जनता के नाम पर ही बनी एक पार्टी की अगुआई में किया जा रहा है. यूं तो यह पार्टी-भाजपा-जिस संघ का मुखौटा है, वह यह काम करीब एक सौ साल से कर रहा है.

मगर देश लूटने वाले कॉर्पोरेट्स के साथ “तू मेरा चाँद, मैं तेरी चाँदनी” गठबंधन करने के बाद इस काम में कुछ ज्यादा ही तेजी आयी है.

कश्मीर फाइल्स गढ़े गए झूठों और चुनिन्दा अर्धसत्यों का घालमेल थी. केरला स्टोरी उससे भी ज्यादा आगे; नफरती फैक्ट्री में जहर में डुबोये झूठों का उत्पादन है.

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आपराधिक ध्रुवीकरण और नफ़रत फैलाने के लिए उस “ईश्वर के खुद के देश” (गॉड्स ऑन कंट्री) केरल  को निशाना बनाया गया है,

जिसके विदेशों में रहने वाले अनिवासी केरलवासियों (एनआरआई केरलाइट्स) ने वर्ष 2020 के साल में अपनी मेहनत से 2.3 लाख करोड़ रूपये भारत वापस भेजे थे,

जो कुल NRI आय के एक तिहाई से ज्यादा 34 प्रतिशत है. इस केरल की प्रति व्यक्ति आमदनी बाकी भारत की प्रति व्यक्ति आय से 60 प्रतिशत ज्यादा है.

यहाँ 1 प्रतिशत से भी कम (0.71%) केरलवासी गरीबी रेखा के नीचे हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 22% है. इसकी साक्षरता 96% है जबकि भारत में यह औसत 77% है.

बाल मृत्यु दर केरल में केवल छह प्रति हजार जन्म है जबकि भाजपा शासित असम में यह 40, मध्य प्रदेश में 41 और यूपी में 46 है.

इसके अलावा स्त्री सुरक्षा सहित मानव विकास सूचकांक में केरल हर मामले में देश में ही सबसे अव्वल नहीं है, यूरोप के अनेक विकसित देशों से भी कहीं आगे है.

इसके मुकाबले संघ-भाजपा द्वारा शासित प्रदेशों में हर उम्र की महिलाओं की हालत कितनी खराब है, यह ब्रह्मा जी के अपने गुजरात में 2016-2020

के बीच लापता हुयी 41,621 लड़की और महिलाओं की संख्या से ही सामने आ गया था. बाकी भाजपा शासित राज्यों में भी यही स्थिति है.

यहाँ सिर्फ उस मध्यप्रदेश के आंकड़ों पर ही नजर डाल लेते हैं, जहां करीब दो दशक से यही पार्टी सरकार में है जिसका मुख्यमंत्री इस कुनबे के अकेले सीएम है,

जो मामू बनाते ही नहीं है, खुद को मामा कहलाते भी हैं. जनता के बीच कंस और शकुनि मामा के मध्यप्रदेश में, नाबालिग बच्चियों की दशा

के बारे में नीचे दिए गए तथ्यों (सभी आंकड़े NCRB-नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो-से लिए गए हैं) से उसकी भयावहता उजागर हो जाती है:

●  हर 55 मिनट में 1 नाबालिग बच्ची गायब हो जाती है. 2021 में यह संख्या 9407 थी, जो देश भर में सबसे ज्यादा है. इतना ही नहीं, यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

2020 में यह 7230 थी, तो 2019 में यह 8572 थी जिन्हें नहीं ढूँढा जा सका. ऐसी बच्चियों की संख्या 2020 तक 3627 थी, जो 2021 में बढ़कर 13034 हो गयी है.

  • सबसे ज्यादा गुमशुदगी की घटनाएं भोपाल, इन्दौर, जबलपुर और धार जिलों में हो रही हैं. यह बच्चियों की हालत है। सुरक्षित बच्चे भी नहीं है.
  • वर्ष 2021 में गायब हुए नाबालिग लड़कों की संख्या 22 हजार थी. बच्चों और बच्चियों के लिए नरक बना हुआ है स्वयंभू मामा का मध्य प्रदेश.

नाबालिग लड़कों और लड़कियों के ऊपर होने वाले उत्पीडन, जिनमें यौन अपराध भी शामिल हैं, की संख्या में 2011-2021 के बीच 337 प्रतिशत की भयानक बढ़ोत्तरी हुयी है.

पोक्सो के तहत आने वाले अपराधों की संख्या 6070 है, जो उनके साथ घटित अपराधों का 31.7 प्रतिशत है.

ठहरिये, मध्यप्रदेश की स्टोरी अभी बाकी है. अभी सिर्फ नाबालिगों की बात हुयी है. मध्यप्रदेश में वयस्क महिलायें भी सलामत नहीं हैं.

मामा की सरकार में पिछले 5 वर्षों में कुल 68,738 महिलायें लापता हुयी हैं. इनमें से 33,274 ऐसी हैं, जिनका 2021 तक भी पता नहीं चला.

केरल स्टोरी के ट्रेलर और टीजर में फिल्म निर्माता जिन 32 हजार का दावा कर रहे थे, बाद में हाईकोर्ट में सिर्फ 3 पर आ गए थे, लगता है, वह 32 हजार की संख्या उन्होंने भाजपा शासित मध्यप्रदेश से ही ली थी.

पुलिस की संवेदनशीलता की हालत यह है कि 14-15 वर्ष या उससे अधिक की लड़की या महिला की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने जब उसके परिजन जाते हैं,

तो थाने से उन्हें यह कहकर लौटा दिया जाता है कि किसी के साथ भाग गयी होगी, अभी 10-15 दिन इंतज़ार करो, उसके बाद आना!!

इन तमाम जाहिर प्रमाणित आंकड़ों के बाद भी यदि इतने जबरदस्त आत्मविश्वास के साथ एक राज्य विशेष और एक समुदाय विशेष के खिलाफ घृणा फैलाने का राक्षसी अभियान चलाया जा रहा है, तो उसकी असली वजह समझनी होगी.

नानी की कहानियां बताती हैं कि राक्षस की जान कहीं और होती है. इनकी जान भी मीडिया नाम के कौए, अज्ञान-अंधविश्वास नाम के गिद्ध और कारपोरेट नाम के मगरमच्छ में है.

इसलिए झूठ के अंधड़ को सच की फुहारों से मिटटी में मिलाने के साथ-साथ इन तीनो को भी बेअसर करने के रास्ते निकालने होंगे.

(लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन’ के संपादक और अ. भा. किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं- संपर्क : 94250-06716)

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