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14 जुलाई, 2022 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 के एक मामले में हिमांशु कुमार और बारह अन्य लोगों द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया

जिसमें छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले (दंतेवाड़ा) के गांवों में आदिवासियों की गैर-न्यायिक हत्याओं की स्वतंत्र जांच के लिये रिट याचिका डाली गई थी.

इसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द करते हुए कहा कि- “याचिकाकर्ता पुलिस और सुरक्षा बलों के खिलाफ अपने आरोपों को साबित करने में असमर्थ थे,

इसलिए पूरी याचिका में दुर्भावनापूर्ण इरादा है, और यहां तक कि एक आपराधिक साजिश भी हो सकती है.”

इसीलिए याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर पाँच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. ये जुर्माना अदा ना कर पाने की स्तिथि में जेल जाना पड़ेगा.

साथ ही फैसले में राज्य को सुझाव दिया है कि छत्तीसगढ़ राज्य/सीबीआई द्वारा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की आपराधिक

साजिश रचने की धारा और पुलिस और सुरक्षा बलों पर झूठा आरोप लगाने के लिए आगे की कार्रवाई कर सकते हैं.

IPC की धारा 211 को जोड़कर साथ में सीबीआई माओवादी होने की जांच भी कर सकती है. इस पर हिमांशु जी कहते हैं-

“कोर्ट ने मुझसे कहा पांच लाख जुर्माना दो, तुम्हारा जुर्म यह है कि तुमने आदिवासियों के लिए इंसाफ मांगा है.

मेरा जवाब है कि “मै जुर्माना नहीं दूंगा. जुर्माना देने का अर्थ होगा कि मैं अपनी गलती कबूल कर रहा हूं.

मैं दिल की गहराई से मानता हूं कि इंसाफ के लिए आवाज उठाना कोई जुर्म नहीं है. यदि इंसाफ मांगना जुर्म है तो यह जुर्म हम बार-बार करेंगे.”

2009 की घटना इस प्रकार थी:

17 सितंबर और 1 अक्टूबर 2009 की दो घटनाओं में दंतेवाड़ा के गच्चनपल्ली, गोम्पाड, नुलकाटोंग और सिंगनमडगु के जंगल और आसपास के

अन्य गांवों के 16 आदिवासी लोगों को गोली मार दिया गया और कई निर्दोष आदि- वासियों पर इन हमलों के दौरान जघन्य बर्बरता के साथ प्रताड़ना हुई. मारे गये लोगों में महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग लोग थे.

एक डेढ़ साल के बच्चे की उंगलियाँ भी काट दी गई थीं. इस हत्याकांड को गोम्पाड नरसंहार के रूप में जाना जाता है.

सबसे दिलचस्प बात कि रिट याचिका डालने वाले 12 आदिवासी जो कि पेटिशनर थे, हिमांशु कुमार को छोड़कर सारे के सारे गायब कर दिये जाते हैं.

यानी इन 12 याचिकाकर्ताओं का अपहरण कर लिया जाता है. हिमांशु कुमार को छोड़कर अन्य बारह याचिकाकर्ता गोम्पाड नरसंहार में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्य हैं.

माननीय सर्वोच्य न्यायालय के इस फैसले पर हिमांशु जी का कहना है कि “मामला झूठा होने का फैसला गलत है क्योंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई जांच ही नहीं कराई है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मैंने यह मुकदमा माओवादियों की मदद करने के लिए किया है लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट पीड़ित लोगों को न्याय देगा तो उससे माओवादियों को क्या फायदा हो जाएगा?

अगर न्याय ना दिया जाय तथा मुझ जैसे न्याय मांगने वाले व्यक्ति पर ही जुर्माना लगा दिया जाय तो उससे देश का क्या फायदा हो जाएगा?

मेरे द्वारा यह कोई अकेला मामला कोर्ट में नहीं ले जाया गया है. मैंने 519 मामले सुप्रीम कोर्ट को सौंपे हैं जिनमें पुलिस द्वारा की गई हत्याएं, बलात्कार, अपहरण और लूट के मामले शामिल हैं.

हिमांशु एक अन्य घटना के बारे में बताते हैं कि “2009 में सिंगारम गाँव में 19 आदि- वासियों को लाइन में खड़ा करके पुलिस द्वारा अंधाधुंध गोलियां चलायी जाती हैं पर किसी पुलिसवाले को नही लगती.

पुलिस 25 गोलियां चलाती है, 19 आदिवासी मर जाते हैं जिनमें चार लडकियां थीं जिनके साथ पहले बलात्कार किया गया था.

इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपनी रिपोर्ट में इसे फर्जी मुठभेड़ माना है. आदिवासियों से 5 बंदूके बरामद होती हैं जो सड़ी हुई थीं,

जिनसे गोली चल ही नही सकती थी और जब कोर्ट में बलात्कार के खिलाफ शिकायत की याचिका डाली जाती है तो बलात्कारी पुलिसवालो को भगोड़ा दिखाया जाता है, जबकि वो रेगुलर सैलरी ले रहे होते हैं.

‘Absconding but on duty’ की हेडलाइंस से अखबार में खबर छपी फिर उन्हीं बलात्कारियों से दोबारा उन्हीं लड़कियों का 5 दिनों तक थाने में लगातार बलात्कार करवाया.”

(शेष अगले भाग में….)

 

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