मेहनतकश भाइयों और बहनों को संबोधित करते हुए लिखा है कि महिलाओं पर, खासतौर से शोषित-पीड़ित वर्ग की महिलाओं पर, लगातार अत्याचार बढ़ता जा रहा है.
धर्म की आड़ में उन अत्याचारों को जायज ठहराया जा रहा है. सामंती गुण्डे, पत्रकार, नेता-अभिनेता-खिलाड़ी-अफसर, बड़े पूंजीपति शोषक वर्गों के साधू,
संत, महन्त, पीर, मुजावर, औलिया तथा शोषक वर्ग का अन्य कोई भी तबका बाकी नहीं जो महिलाओं के विरुद्ध शोषण, दमन, अन्याय, अत्याचार न करता हो.
शोषक वर्ग के लोगों ने महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना दिया है. पूँजीवादी साम्राज्यवादी शोषक वर्ग अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए औरतों की नग्नता को बढ़ावा देता जा रहा है.
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते, तत्र देवता” महज एक जुमला बना हुआ है. शोषक वर्ग ने एक ऐसा माहौल बना रखा है कि हर जगह महिलाओं पर
खतरा न सिर्फ बना हुआ है बल्कि बढ़ता जा रहा है. आफिसों, बाजारों, दुकानों, स्कूलों, अस्पतालों, कारखानों, रेलों, सड़कों, हवाई जहाजों… कहीं भी महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं.
टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया के जरिए गन्दगी परोस कर घरेलू परिवेश को भी इतना गन्दा बना दिया है कि महिलाएँ घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं.
मौजूदा सरकार एक तरफ महिला सशक्तीकरण का नारा लगा रही है, दूसरी तरफ आँगनवाड़ी, आशाकर्मी, स्कीम वर्कर के तौर पर कार्यरत महिलाओं के श्रम का जबर्दस्त शोषण कर रही है.
सबसे ज्यादा उत्पीड़न भूमिहीन, गरीब किसान व मजदूर वर्ग की महिलाओं का हो रहा है. दर असल जिस वर्ग का सबसे ज्यादा शोषण होता है,
उसी वर्ग का सबसे ज्यादा उत्पीड़न भी होता है. महिलाओं की इन बदतर हालातों के लिए वही शोषक वर्ग ही जिम्मेदार है,
जो अपने मुनाफे और एकाधिकार के लिए मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था को चला रहा है. परन्तु कुछ नारीवादी लोग सभी पुरुषों को जिम्मेदार ठहराकर
जहां एक तरफ गरीब महिलाओं को गरीब पुरुषों के खिलाफ भड़काकर हर घर में ही झगड़ा लगाने का काम करते हैं.
वहीं दूसरी तरफ वे शोषक वर्ग द्वारा किए जा रहे जघन्य शोषण को छिपाने का भी काम करते हैं. ऐसे नारीवादियों से महिलाओं को
सावधान रहना चाहिए तथा शोषित-पीड़ित वर्ग की महिलाओं को शोषित-पीड़ित वर्ग के पुरुषों के साथ मिलकर ही शोषक वर्ग के खिलाफ अपनी आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए.