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1987 में मेरठ में पीएसी के हाथों मुसलमानों के नरसंहार के कई मामलों में से एक मलियाना नरसंहार मामले में एक निचली अदालत ने 36 साल बाद 41 आरोपियों को आरोपों से बरी कर दिया है.

यूपी के मेरठ शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित मलियाना गांव में 23 मई, 1987 को कम से कम 72 मुसलमानों का नरसंहार कर दिया गया था.

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के इतने गंभीर मामले में अदालती फ़ैसले ने पीड़ितों और उनके परिवारों को गहरी चोट पहुंचाई है.

शुक्रवार को निचली अदालत की ओर से आरोपियों को बरी करने के मामले को आलोचकों ने इंसाफ़ का मज़ाक़ बताया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत कई मानवाधिकार संगठनों ने

मलियाना दंगों में पुलिस के शामिल होने के सुबूतों का दस्तावेज़ीकरण किया था. दंगों को विस्तार से कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार कु़र्बान अली का कहना है कि

कोर्ट में जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट जमा की गई थी, उसके मुताबिक़ कम से कम 36 लोगों के शरीर में गोलियों के निशान थे. मलियाना हिंसा मामले में अदालत के 26 पेज के फ़ैसले में हिंसा के दिल दहलाने वाले ब्योरे दर्ज है.

एक युवक की मौत गले में गोली लगने से हुई, एक पिता को तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और पांच साल के एक बच्चे को आग में झोंक दिया गया था.

मलियाना नरसंहार से एक दिन पहले 22 मई को पीएसी के जवानों ने मुस्लिम बहुल हाशिमपुरा में घुसकर मुसलमानों का नरसंहार किया था.

पीएसी के जवानों ने यहां से 48 पुरुषों को बाहर निकाला और इनमें से 42 को गोलियों से भून डाला था. इसके बाद उनकी लाशें नदी और नहर में फेंक दी गई थीं, 6 लोग बच गए थे जिन्होंने बताया कि उस दिन क्या हुआ था.?

हालांकि 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने हाशिमपुरा में मुसलमानों के नरसंहार के आरोप में पीएसी के 26 पूर्व जवानों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.

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