SOURCE-IMAGE PTI

 

BY-THE FIRE TEAM

नयी दिल्ली में आयोजित संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन एक प्रश्न के उत्तर में मोहन भागवत ने कहा, ‘‘राम मन्दिर का निर्माण यथाशीघ्र होना चाहिए.’’

भागवत ने देश में आबादी संतुलन कायम रखने के लिए एक नीति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि – इसके दायरे में समाज के सभी वर्ग होने चाहिए. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि शुरूआत उन लोगों से की जानी चाहिए जिनके अधिक बच्चे हैं किन्तु उनके पालन-पोषण के लिए सीमित साधन हैं.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन उन्होंने विभिन्न विवादास्पद विषयों पर लिखित प्रश्नों का उत्तर दिया। इनमें अंतर जातीय विवाह, शिक्षा नीति, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गौरक्षा जैसे मुद्दे भी शामिल थे.

उन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर वार्ता का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अंतिम निर्णय राम मन्दिर समिति को करना है जो राम मन्दिर के निर्माण के लिए अभियान की अगुवाई कर रही है.

संघ प्रमुख ने कहा कि उन्हें यह नहीं मालूम कि राम मंदिर के लिए अध्यादेश जारी किया जा सकता है ,क्योंकि वह सरकार के अंग नहीं हैं.

भागवत ने विभिन्न समुदायों के लिए आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने दावा किया कि विश्व भर में हिन्दुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है जो उनके संगठन की आधारभूत विचारधारा है.

भारत के विभिन्न भागों में आबादी संतुलन में बदलाव और घटती हिन्दू आबादी के बारे में एक प्रश्न पर आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विश्व भर में जनसांख्यिकी संतुलन को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे यहां भी कायम रखा जाना चाहिए.

इसे ध्यान में रखते हुए आबादी पर एक नीति तैयार की जानी चाहिए. अगले 50 वर्षों में देश की संभावित आबादी और इस संख्या बल के अनुरूप संसाधनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

एक बार जब इस नीति पर निर्णय हो जाए तो यह सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए और किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए.उनकी इस बात का सभागार में आये लोगों ने ताली बजाकर समर्थन किया.

उन्होंने यह भी कहा – महज कानून ही किसी मुद्दे का समाधान नहीं है.

कई भाजपा नेता एवं हिन्दू संगठन आबादी के मुद्दे को उठाते रहे हैं क्योंकि मुस्लिम आबादी की तुलना में हिन्दुओं की जनसंख्या घट रही है.

धर्मान्तरण के विरूद्ध भागवत ने कहा कि यह सदैव दुर्भावनाओं के साथ करवाया जाता है तथा इससे आबादी असंतुलन भी होता है.

उन्होंने गायों की रक्षा का समर्थन करने के बावजूद यह नसीहत भी दी कि गौरक्षा के नाम पर कानून के विरूद्ध नहीं जाया जा सकता.

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि कानून को अपने हाथ में ले लेना एक अपराध है और ऐसे मामलों में कठोर दंड होना चाहिए.उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हमें दोमुंही बातों को भी नकारना चाहिए क्योंकि गौ तस्करों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर कोई नहीं बोलता.’’

बहरहाल, ‘‘भविष्य का भारत..आरएसएस का दृष्टिकोण’’ शीर्षक वाले इस सम्मेलन में लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों की उपस्थिति नगण्य रही हालांकि संघ ने कहा कि उसने इन दलों को आमंत्रित किया था.

अंतर जातीय विवाह के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा कि संघ इस तरह के विवाह का समर्थन करता है तथा यदि अंतर जातीय विवाहों के बारे में गणना करायी जाये तो सबसे अधिक संख्या में संघ से जुड़े लोगों को पाया जाएगा.

महिलाओं के विरूद्ध अपराध के बारे में अपनी उद्धिग्नता को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जहां वे सुरक्षित महसूस कर सकें.

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि लोगों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने की जिम्मेदारी शासन एवं प्रशासन की है.

उन्होंने यह भी कहा कि एलजीबीटी को अलग -थलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी समाज का अंग हैं.

भागवत ने कहा कि संघ अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं है किन्तु उसे उसका उचित स्थान मिलना चाहिए. हालाँकि उनका संकेत था कि अंग्रेजी किसी भारतीय भाषा का स्थान नहीं ले सकती.

हालाँकि देश में ज्वलंत कश्मीर मुद्दे पर भी उन्होंने राय रखी और कहा-आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 35 ए को स्वीकार नहीं करता.

संविधान का अनुच्छेद 370 राज्य की स्वायत्तता के बारे में है जबकि अनुच्छेद 35 ए राज्य विधानसभा को यह अनुमति देता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करे.

(साभार -पीटीआई)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here