By-श्वेता चौधरी

डॉ अम्बेडकर के अनुसार किसी भी देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिति को जानना हो तो वहां की महिलाओं की स्थिति से पता लगाया जा सकता है, कि किसी भी देश का कितना  विकास हुआ है। क्योंकि महिलाओं के विकास के  बिना किसी भी देश का आर्थिक व सामाजिक विकास नहीं हो सकता है।

आपको बताते चलें  कि हमारे भारत में शुरु से अब तक महिलाओं की स्थिति कैसी रही है। इसके लिए सबसे पहले आपको प्राचीन काल में जाना होगा अर्थात वैदिक  युग में जहां स्त्रियों की स्थिति काफी अच्छी मानी  गयी है। इसकी जानकारी हमें सैन्धव सभ्यता से प्राप्त होती है।

वहां के स्थलों के उत्खनन से जो नारी मृत मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं उससे पता चलता है कि वहाँ के लोग स्त्री को देवी मानते थे और उनकी उपासना करते थे। उसके बाद ऋग्वैदिक युग में भी स्त्रियों की स्थिति काफी संतोषजनक थी। यह इसलिए क्योंकि उनके ऊपर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं रहता था, किन्तु उन्हें शासन सम्बन्धी कार्यों में भाग नहीं लेने दिया जाता था।

उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति  बिगडने लगी क्योंकि अब न तो उनका उपनयन संस्कार होता था और ना ही शिक्षा दी जाती थी। कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था और यहाँ से सुरुआत हुई स्त्रियों के पर्दे में रखे जाने की जो कि आज भी हमारे समाज को जकड़े हुए है। शुद्रकाल के आते-आते स्त्रियों की दशा पूरी तरह से ख़राब हो चुकी थी। स्त्रियों की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गयी। कहीं आने जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, कम उम्र में विवाह शुरु हो गया और शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

ईसा की दूसरी व तीसरी सताब्दी में पुनर्विवाह पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया |पांचवी व बारहवीं शताब्दी के आते-आते बाल विवाह प्रचलन में आ गया।

समय के कुछ और बरस बदले लेकिन स्त्रियों की दशा में कोई सुधार नहीं आया,अब तुलसीदास जी को भी लिखना पड़ा-“नारी मुई गृह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाई होहिं संयासा” अर्थात घर की नारी, ‘पत्नी’ मरे तो समझो एक संपत्ति का नाश हो गया ,फिर दूबारा दूसरी ‘पत्नी’ ले आना चाहिए ,पर अगर पति की मृत्यु हो जाये तो पत्नी को सिर मुडवाकर घर में एक कोठरी में रहना चाहिए ,रंगीन कपडे व सिंगार से दूर तथा दूसरी शादी करने की शक्त मनाही होनी चाहिए।

इस प्रकार देखा जा सकता है कि सुरुआत में स्त्रियों की स्थिति थोड़ी ठीक-ठाक थी परन्तु उत्तरवैदिक काल के पश्चात आज तक बीसवी व् इक्कीसवी सताब्दी में भी नारियों की स्थिति अच्छी नहीं हो पाई है। प्रतिदिन तीन से चार बलात्कार की घटना न्यूज में आ ही जाती हैं। इन घटनाओं के बारे में तो न्यूज से पता चलता है, परन्तु जो घटनाएं न्यूज में नहीं आती हैं उनकी संख्या प्रतिदिन के हिसाब से एक दर्जन से भी अधिक होती है।

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स्थति इतनी ख़राब है की लड़कियों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है, वह बिना डर के कहीं आ जा नहीं सकती हैं। माता-पिता अपने बच्चियों को बाहर पढ़ने के लिए नहीं भेजते केवल इस डर से की कहीं उनकी बच्ची भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था का शिकार ना बन जाये। इस पहलू की खास बात यह है कि पिता डरता भी है और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को अपनाए भी हुए है।

इसके लिये सरकार कड़े कानून क्यों नही बनाती है और यदि किसी आंदोलन के दबाव में कोई कानून बनाती भी है तो उससे ज्यादा कानून अपराधियों को छुड़ाने के भी होते हैं। इस पहलू पर मैं ध्यान इसलिए दिलाना चाहती हूँ क्योंकि कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश में एक रानू नागोत्रा(23) नामक लड़की के साथ छेड़खानी की घटना हुई थी जिसमें FIR के बाद घटना में शामिल व्यक्ति अनिल मिश्रा(38) की गिरफ्तारी भी हुई थी। लेकिन वह कुछ दिन बाद जमानत पर छूट आया।

इस लचीले कानून का परिणाम यह हुआ कि उस शख्स ने जिसने बलात्कार का प्रयास किया था, उसने रानू की पत्थर से कुचल कर हत्या कर दी। अब इसमें दोष किसको दें उस सख्स को या हमारे लचीले कानून को। बहरहाल रानू(23) जिसके साथ छेड़छाड़ का मामला हुआ था,ने काफी सपने तो संजोये ही होंगे, वह बीए सेमेस्टर 5 की छात्रा थी। उसे क्या पता होगा कि उसके देश का लचीला कानून उसके सपनों पर ग्रहण लगा देगा।

अब इन लोगों की इतनी हिम्मत कैसे पड़ जाती है यह भी अलग पहलू है क्योंकि हमारे यहाँ एक शब्द बहुत प्रचलित है वह है पहुँच।

कुछ की तो पकड पार्टी के नेताओं से भी होती है इसलिए अपराधियों को डर भी नहीं लगता है वे ऐसे ही दरिंदगी बार-बार करते रहते हैं।अभी हाल की ही एक और घटना पर नजर डालते हैं जिसमें बुलंदशहर के गुलावठी छेत्र में १५ अगस्त २०१८ को दो लड़कियों ने शोहदों से परेशान होकर आत्महत्या कर ली| यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है और मन में  यह सवाल उत्पन्न करती है कि क्या भारत देश लड़कियों के लिए कभी सुरक्षित हो भी पायेगा।

जिस दिन आजादी मिली उस दिन भी वो मासूम बच्चियां आजाद न रह सकीं। यह कितनी शर्मनाक बात है कि जिस दिन हमारा देश आजाद हुआ हम उस दिन भी आजाद नही हैं। बच्चियां ना तो घर में सुरक्षित हैं और ना ही बालिकागृह में। आये दिन रेप कर उनकी हत्या कर दी जाती है।

हाल की ही एक और  घटना पर नजर डालते है देवरिया जिले  के सलेमपुर में १९ अगस्त २०१८ को एक सातवी  कक्षा  में पढने वाली छात्रा की रेप कर बेरहमी से उसकी हत्या कर  दी गयी। उस बच्ची को इतनी दर्दनाक मौत दी गयी कि जिसे सुनकर लड़कियों की रूह कांप जाती है।अब उस परिवार की कोई भी लड़की कभी स्वतंत्र नही रह पायेगी। प्रतिदिन ऐसी बहुत सी घटनायें होती हैं परन्तु अपराधियों की संख्या कम नही हो रही है।

 

  यत्र नरियस्ति पूज्यते रमन्ते तत्र देवता अर्थात नारी की पूजा देवी की तरह की जाती है |जिस देश मे स्त्री को देवी मान कर उनकी पूजा की जाती है उसी देश में उसी देवी की रेप कर उनकी हत्या कर दी जाती है। ऐसी अपेक्षा तो नही थी इस देश के लोगों से। सरकार इस तरह से नाकाम हो गयी है कि लगातार कई सालों से बढती जा रहीं इस प्रकार की घटनाओं को रोक पाने में असमर्थ है।

इस देश के नागरिक जिम्मेदार कब बनेंगे या बनेंगे भी यह भी सोचने पर मजबूर करता है।क्या वे धर्म के नाम पर व आरक्षण के नाम पर आंदोलन कर सकते हैं और सरकार भी कई तरीके की योजनायें चला सकती है तो क्या इस देश की सरकार व नागरिक इतना भी नही कर सकते कि अपने देश की बेटियों को बचाने के लिए आन्दोलन करें। हमें पितृसत्ता और मातृसत्तात्मक देश नहीं चाहिए हमें हमारा बराबरी का हक चाहिए , आजादी चाहिए। क्या हमारे देश के लोग अपनी बेटियों के लिए इतना भी नही कर सकते हैं | महिलायें हर क्षेत्र में अच्छा कर रही हैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती हैं उनमे पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा देर तक कार्य करने की क्षमता होती है ,धैर्य होता है ,पुरुषों से हमेशा बेहतर करने की कोशिश करती हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह जिस भी क्षेत्र में जायेंगी उसे उंचाइयों तक पहुंचा देंगी लेकिन जब बेटियां सुरक्षित रहेंगी तभी ऐसा हो पायेगा।

लेखिका-श्वेता चौधरी जो वर्तमान में  डॉ शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय ,लखनऊ की बी ए  तृतीय वर्ष की छात्रा हैं।

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