BYरवि भटनागर


जनाब, चादर तान आराम फरमा लें। शान्ति सी रहेगी कुछ दिन। जो चाहें कर लेने की महोलात, फुर्सत और आजादी। सोशल मीडिया में हमारे सभी प्रिय हितैषियों, मित्रों की थकी उगंलियाँ भी, अब विश्राम की अवस्था में होंगी।

पिछले से, कई सरकारी महकमों में, ज़ीरो साउंड के रौशनी बम, फुलझड़ियों और चकरियों की चहल क़दमी सुनी और देखी जा रही थी। त्यौहारों की श्रंखला में यह बिलकुल नये प्रयोग थे।

अख़बारों और टीवी की ख़बरों में अपनी-अपनी छलनी से छनी ख़बरों की बूंदा-बांदी होती रही। ख़बरों, बहसों और खुलासों में तालमेल ही नहीं बैठा पा रहे थे, मीडिया वाले। कभी तो डबल मार्च और कभी कदम ताल के मोड में रह, कौतुहल बढ़ाते रहे।

हाँ, सोशल मीडिया ज़्यादा जागृत लगा। ख़ूब मसालेदार ख़बरें तैरती रहीं इधर से उधर। लपेटे में सीबीआई, रिज़र्व बैंक, राफेल और भी कई खुल- बंद से खुलासे थे। इन ख़बरों की तेज़ धार को मोथरा करने का सबसे अचूक और आजमाया फार्मूला मर्यादा वाले राम का नामफिर से जागृत हो गया।

पक्ष और विपक्ष दोनों ने मिल कर अपनी अपनी मर्यादाओं का रायता बना डाला जो फैल रहा है आहिस्ता-आहिस्ता।

सोशल मीडिया पर ही पिछले महिने से और हिदायतें भी चल रही थीं कि क्या करें क्या नहीं। डूज़ एन्ड डोन्ट्स वाले वाट्सऐप मैसेज खूब तैरते रहे। न माने तो कुछ भी तो हो सकने का खतरा झेलें। और देश भक्ति पर उठे सवाल का जवाब क्या देंं ?

जियें तो जियें कैसे बिन खौफ के। क्या खरीदें क्या नहीं ये भगवान कहाँ बने पटाखे, लाइट कौन सी हों, दीप जलें ज्यादा या मोम जले, पटाखे देसी हों या विदेशी या कुछ नये जुगाड़? हम चीन के बने लाइट, पटाखे और खिलौने कचरे के हवाले कर दें तो चीन की व्यवस्था ठप्प? ऐसा तो कई सालों से पढ़-पढ़ कर रट ही गया है।

कोई शुभचिंतक ग़रीबों से ये पूछने वाला भी नहीं है कि भाई तुम्हारा ‘खीसा ‘ भी है? और अगर है तो उसका मुँह कहाँ है? ख़ैर जहाँ भी हो तो उसमें पैसा कहाँ है? काश कुछ ग्रुप ऐसे भी होते जो शर्तों के साथ धन भी बाँटते रहते।

दो तिहाई भारत रोटी के जुगाड़ में खुद को बीबी और बच्चों को सुखा रहा है, गला रहा है, धूप, जाड़े और बरसात में। वे क्या जाने इन दीवालियों की रौनक, रोशनी, पटाखे, और उन सब में भी चीन की दखल।


लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और गुरुग्राम में रहते हैं।

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