BY-THE FIRE TEAM
विश्व में लोकतंत्र का बड़ा पोषक देश भारत अपने यहाँ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. इसके लिए चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया में लगातार सुधार करता रहा है.
इसी कड़ी के तहत चुनाव आयोग देश में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) लेकर आई. लेकिन गाहे-बगाहे ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं.
निःसंदेह चुनाव आयोग द्वारा समय समय पर ऐसे कदम उठाने के प्रयास किये जाते रहे ताकि मतगणना में तेजी लायी जाये तथा इसकी पारदर्शिता भी बरकरार रहे.
किन्तु विगत के चुनाव परिणामों ने इसके विरुद्ध लोगों रोष दिखाया जिसके कारण अब इसे हटाने की मांग की जा रही है. बता दें कि साल 2009 आम चुनाव में
बीजेपी की हार के बाद पार्टी के सीनियर लीडर लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे. पार्टी ने दावा किया कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा रही है.
ईवीएम को हैक करके वोट बदले जा रहे हैं. इसके बाद साल 2014 से बाकी राजनीतिक पार्टियां भी ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगाने लगी.
कैसे हुई ईवीएम की शुरुआत ?
आजादी के बाद साल 1952 में देश में सबसे पहले आम चुनाव हुए. तब बैलेट पेपर के जरिए चुनाव कराए गए थे. लेकिन इसमें बड़ी खामी ये थी कि जाली मतदान और बूथ कब्जा करने की घटनाओं की काफी हद तक संभावना रहती थी.
इसी खामी से बचने के लिए चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लेकर आई. एक टेस्टिंग के तहत साल 1982 में केरल के 50 मतदान केंद्रो पर ईवीएम से चुनाव कराए गए, चुनाव सफल रहे.
हमारे देश के कानून में वोटिंग मशीन से चुनाव कराने का कोई प्रावधान नहीं था. इसलिए चुनाव आयोग देशभर में नियमित रूप से ईवीएम के जरिए आगे चुनाव नहीं करा सका.
1988 में संसद ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61ए जोड़ी. ये धारा चुनाव आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है.
कानूनी रूप से साल 1998 में पहली बार आम चुनाव और उप चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ. इसके बाद 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर इस्तेमाल किया गया.