BYRAVISH KUMAR


स्व. विष्णु प्रभाकर ने सरदार पटेल पर जीवन परिचय लिखा है। जो 1976 में नेशनल बुक ट्रस्ट से छपा था जब आज के हिसाब से सरदार को भुला दिया गया था।

इस परिचय में विष्णु प्रभाकर लिखते हैं कि सरदार विलायत गए मगर वहाँ के राग-रंग से दूर रहे। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने एक किताब लिखी थी ज्योति पुंज। इस किताब में नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि गांधी के असर में आने से पहले सरदार कोलकाता के बार में जाते थे, ताश खेलते थे, सिगरेट पीते थे, गांधी का मज़ाक़ उड़ाते थे।

“पप्पाजी कलकत्ता में दांत के डाक्टर बने थे। कलकत्ता के जीवन में एक ऐसा भद्र वर्ग, जिसके ऊपर अंग्रेज़ी का प्रभाव आज भी है। कलकत्ता में जवानी बिताई, अभ्यास किया।

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फोटो क्रेडिट : युथ की आवाज़ डॉट कॉम

डाक्टर के रूप में राजकोट वापस आकर व्यवसायिक जीवन आरंभ किया। राजकोट में भी कलकत्ता की जवानी की छाया झलकती थी। पश्चिमी रंग का असर दिखे बिना नहीं रह सका।

शाम को क्लब का कल्चर, ताश खेलना और सिगरेट के धुएं में ज़िंदगी हरी भरी रहती। सरदार पटेल की ज़िंदगी में ज़रा झांककर देखें तो ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा।

वकील का व्यवसाय, बार में बैठना, क्लब में साथियों के साथ ताश खेलना, सिगरेट के घुएं में आज़ादी के दीवानों का मज़ाक उड़ाना, महात्मा गांधी के प्रति भी मज़ाक में कभी-कभी बोलना। सरदार पटेल के जीवन का यह स्वाभाविक क्रम था किन्तु महात्मा गांधी के स्पर्श ने सरदार पटेल का जीवन बदल दिया।”

यह शब्दश है। प्रधानमंत्री को सरदार के शराब, सिगरेट पीने का रेफ़्रेंस कहाँ से मिला इस किताब में नहीं है। उस वक़्त नेहरू तो सिगरेट पीते थे और उनकी तस्वीरें भी हैं।

सरदार की ऐसी कोई तस्वीर नहीं दिखी। कोलकाता के बार में शराब पीते हुए या ताश खेलते हुए या सिगरेट पीते हुए। 3 नवंबर 2014 को मैंने इस पर लिखा था। क़स्बा का लिंक दे रहा हूँ। आप पढ़ सकते हैं। ज्योति पुंज का अनुवाद संगीता शुक्ला ने किया था। गुजराती से हिन्दी में।

जब कस्बा पर यह लेख लिखा था कि तब एक पाठक अपर्णा गोयल ने टिप्पणी की थी। उन्होंने बताया था कि राजमोहन गांधी ने सरदार की जो जीवनी लिखी है उसमें ब्रिज खेलने की बात है। अपर्णा ने जो अंश दिया है उसमें शराब पीने, सिगरेट पीने, आज़ादी के दीवानों के मज़ाक की बात नहीं है। न गांधी के मज़ाक उड़ाने की बात है।

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