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BY-THE FIRE TEAM

 भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि- जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भारत विरोधी नारे लगाने वाले उनकी पार्टी की सरकार के तहत खुद को सलाखों के पीछे पायेंगे.

शाह ने माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करने पर कांग्रेस एवं आप की आलोचना की. माओवादियों के साथ कथित संबंध को लेकर कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हालिया गिरफ्तारी का हवाला देते हुए शाह ने कहा कि ऐसे तत्व ‘‘देश को तोड़ना’’ चाहते हैं.

यहां नारायणा में पार्टी के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने हाल में उन लोगों को पकड़ा जो जातियों में जहर फैला रहे थे, हत्या और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने के इरादे से उन पर हमले की साजिश रच रहे थे.

कांग्रेस, ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस), अरविंद केजरीवाल (आप के नेता), चंद्रबाबू नायडू (तेदेपा प्रमुख) इन सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया और मानवाधिकार एवं अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर उनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाये.

शाह ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या नक्सलियों और माओवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.?

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष सारे सबूत और तथ्य रखे. उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा कि कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखा जाना चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने नक्सलियों से कथित संबंध के लिये कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी और कहा कि यह असहमति के स्वर या राजनैतिक विचारधारा में भिन्नता की वजह से गिरफ्तारी का मामला नहीं है.

भाजपा प्रमुख ने आरोप लगाया कि जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाये जाते हैं और जब ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो कांग्रेस और केजरीवाल को ‘‘दर्द’’ होता है.

शाह ने यह भी कहा कि भाजपा यह सुनिश्चित करेगी कि ‘‘हर’’ अवैध प्रवासियों की पहचान की जायेगी और 2019 के संसदीय चुनाव के बाद उन्हें देश से बाहर निकाला जायेगा.

अमित शाह का यह बयान ऐसे समय आया है जब बहुत सारी राजनितिक पार्टियों के नेताओं ने भाजपा की नीतियों का कड़ा प्रतिकार करना शुरू किया है.

चाहे महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाव का मामला हो या दिल्ली के जे०एन०यू० का निःसंदेह इनके वक्तव्यों में विभाजकारी तत्व मौजूद रहे.

किन्तु सोचने का पहलू यह है कि आखिर इतना बौद्धिक तबका इस तरह की भाषा क्यों बोल रहा है ?

फिलहाल यह मामला कोर्ट में है जिसकी जाँच चल रही है, जब तक रिपोर्ट नहीं आ जाती है तब तक इस पर टिपण्णी करना जल्दबाजी होगी.

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