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BY-THE FIRE TEAM

आज जब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है. वहीं एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है

कि देश भर में हो रहे आयोजनों के बीच महात्मा गांधी के विचार और आचरण के लिए शुरू किए गए अध्ययन केंद्रों में से 86 फीसदी केंद्र बंद कर दिए गए हैं.

दरअसल, राष्ट्रपिता के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए देशभर के विश्वविद्यालय और संस्थाओं में 137 गांधी अध्ययन केंद्र शुरू किए थे. इसमें सिर्फ 19 केंद्र के शुरू होने की बात सामने आई है.

बताया जा रहा है कि वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय को छोड़ दिया जाए तो अन्य जगहों पर गांधी पर शोध करने वाले शोधार्थियों की तादात में भी काफी कमी हुई है.

सर्वोदय कार्यकर्ता रश्मि पारसकर ने बताया कि देश के अनेक केंद्रों की तरह नागपुर में भी गांधी विचार केंद्र बंद होने की कगार पर है.

उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को सोशल मीडिया के माध्यम से गांधीवादी विचारधारा से अवगत कराने के प्रयास किए जाने चाहिए.

महात्मा गांधी के नाम से शुरू किए गए इन केंद्रों पर गांधी विचार दर्शन और उनके कार्यों पर शोध व प्रचार-प्रसार किया जाता है. सर्वोदयी कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि इन केंद्रों के बंद होने से गांधीवादी विचारों का प्रसार कैसे होगा. ?

उनका कहना है कि सरकार ऐसे केंद्रों को जरूरी आर्थिक मदद नहीं देती है और उनका प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया जाता है. ऐसे में गांधी की 150वीं जयंती पर घोषणाओं की झड़ी लगाने के बजाए अध्ययन केंद्रों का प्रबंधन कैसे बेहतर तरीके से किया जाए, इस पर विचार किया जाना चाहिए.

आपको बताते चलें कि भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में गांधीजी का व्यक्तित्व बहुत विराट है. इन्होने सत्य और अहिंसा का पाठ देशवासियों को पढ़ाया.

इनके बताये मार्गों पर चलकर मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्सन मंडेला तक लाभान्वित हुए तथा अपने देश की समस्यायों को खत्म करने में सफल हुए.

नेल्सन मंडेलाने अंग्रेजों के विरुद्ध रंगभेद नीति का कड़ा प्रतिकार किया और अंततः इसको समाप्त करने में कामयाब हुए.

आइंस्टीन ने गांधीजी के विषय में कहा था कि – आने पीढ़ियां यह मुश्किल से यकीं कर पाएंगी कि हाड़ मांस के शरीर वाला कोई ऐसा व्यक्ति धरती पर पैदा हुआ था.

महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर यू एन ओ ने उनके जन्म दिवस को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित कर रखा है.

ऐसे में यदि इस रिपोर्ट का अवलोकन किया जाये तो एक साथ कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं अतः यथाशीघ्र इस तरह की चुनौतियों को दूर करने की जरूरत है.

 

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