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प्राप्त जानकारी के मुताबिक भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने स्वीकार किया है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में ‘प्रक्रिया’ ही सजा बन गई है.

विगत कई मामलों में अंधाधुंध गिरफ्तारी तथा जमानत में कठिनाई जैसे मुद्दों पर जोर देते हुए कहा कि जिस प्रक्रिया के कारण विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखा गया, उस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.

क्योंकि हम जल्दबाजी में अंधाधुंध गिरफ्तारियों को तो अंजाम दे देते हैं किंतु जमानत पाने में कठिनाई तक का सामना करना पड़ता है.

देश में आज करोड़ों मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं. इसके पीछे के कारणों की अगर तलाश करें तो न्यायिक प्रक्रिया का लंबा होना तो है ही, किंतु साथ ही नई रिक्तियों को न भरा जाना भी एक बड़ा कारण है.

आज आजादी के 75 वर्षों में भी देश के विभिन्न अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले विचाराधीन हैं. राजस्थान के जयपुर में 18 वें ‘अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण’

बैठक को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस रमन्ना ने कई अन्य पहलुओं पर भी अपने विचार रखे. जैसे- कहा कि-“हमें अपराधिक न्याय के प्रशासन की दक्षता बढ़ाने के लिए एक समग्र कार्य योजना की जरूरत है.”

पुलिस प्रशिक्षण तथा संवेदीकरण सहित जेल प्रणाली का आधुनिकीकरण सुधार का एक मजबूत पहलू बनकर उभर सकता है.

‘नालसा’ तथा ‘कानूनी सेवा अधिकारियों’ को चाहिए कि यह निर्धारित करें कि वह आपराधिक मामलों में किस तरीके से अपना सहयोग देकर निर्णय को जटिल से सरल बनाएं.

समानता के विचार और कानून के शासन पर भी जस्टिस रमन्ना ने जोर देते हुए कहा कि विश्वास तभी जीता जा सकता है जब न्याय वितरण प्रणाली में समान पहुंच तथा भागीदारी सुनिश्चित हो.

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कानूनी सहायता न्याय प्रशासन का एक अहम पहलू है जिसे तभी सशक्त बनाया जा सकता है, जब लोगों को भी उनके अधिकारों के विषय में जागरूक किया जाए.

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