आज से कोई 7 साल पहले जब 2010 में आधार कार्ड बनने प्रारंभ हुए तब बड़ी उत्सुकता से लोगों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराई। तब शायद किसी के मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा हो कि उंगलियों और आंखों की पुतली का निशान जो हम दे रहे हैं उससे हमारी पहचान का कहाँ तक दुरुपयोग हो सकता है। यही कारण है कि आज 120 करोड़ के करीब लोगों ने अपना आधार कार्ड बनवा लिया है जो कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की संपूर्ण जनसंख्या के इर्द गिर्द नजर आता है। दरसल आधार कार्ड 12 अंकों का एक विशिष्ट पहचान पत्र है। इसमें किसी भी व्यक्ति का नाम, पता व उम्र के साथ- साथ उसकी उंगलियों व आंख की पुतली के निशान भी दर्ज कराए जाते हैं।
आधार कार्ड बनाने का कारण भ्रष्टाचार पर प्रहार व मनुष्य की दोहरी पहचान वाली समस्या को सुलझाना था। साल 2010 के बाद अभी तक सरकार कोई भी ऐसा आंकड़ा प्रस्तुत कर पाने में समर्थ नहीं हो पाई है जिसमें उसने आम जनता को बताया हो कि आधार कार्ड से कितना भ्रष्टाचार कम हुआ। परंतु ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां आधार कार्ड मौत का कारण बना हो। इसमें साल 2017 की वह घटना कौन भूल सकता है जब एक व्यक्ति की मौत का कारण भोजन की अनुपलब्धता थी। जिसमें उसे आधार कार्ड के अभाव में सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गई । यहां सरकार द्वारा चलाए जा रहे आधार कार्ड संबंधी प्रोग्राम की अनेक खामियां दृष्टिगोचर हो जाती हैं। परंतु सबसे वाजिब प्रश्न यह बनता है कि जब जनता अपनी संपूर्ण क्षमता से भागीदारी सुनिश्चित करा रही है तब भी सरकार गोपनीयता संबंधी शर्तों को बेहतर ढंग से क्यों नहीं लागू कर पा रही है?
दरसल नए साल के आगाज के साथ आधार पर पुनः मसला तब उभरकर सामने आया जब अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून ने यह दावा किया कि मात्र 500 रुपये देकर कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के आधार सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर सकता है । द ट्रिब्यून ने यह भी दावा किया कि एजेंट मात्र 300 रुपये में एक सॉफ्टवेयर उपलब्ध करा रहे हैं जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति के आधार कार्ड को डाउनलोड कर सकते हैं। यहां सरकार से लेकर भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा गोपनीयता संबंधी दिए गए आश्वासन पर अनेक प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण एक सांविधिक प्राधिकरण है जिसे भारत सरकार ने आधार अधिनियम 2016 के माध्यम से बनाया था। परंतु क्या यह प्राधिकरण अपनी संपूर्ण क्षमता से आधार कार्ड संबंधी कार्य करने में सफल हो पाया है ? इसका जवाब स्वयं यूआईडीएआई के उन दो वक्तव्य में मिल जाएगा जिसमें उसने एक ओर आधार से संबंधित कोई भी जानकारी लीक नहीं होने की बात की तो वहीं दूसरी ओर केवल बायोमेट्रिक डाटा को ही तवज्जो दिया। यूआईडीएआई के इन दोनों वक्तव्यों में एक विरोधाभास है और कोई व्यक्ति कैसे आत्म संतुष्ट हो कि उसके आधार में जो बायोमेट्रिक जानकारी उपलब्ध कराई गई है वह बदली नहीं जा सकती। एजेंट जब किसी व्यक्ति से संबंधित संपूर्ण जानकारी सुरक्षित जगह से हैक कर लोगों को उपलब्ध करा सकते हैं तो लोगों की बायोमेट्रिक जानकारी में सेंधमार करना उनके लिए कोई बड़ा काम नहीं है। धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का वाली स्थिति में मनुष्य को आने में जरा सी भी देर नहीं लगेगी।
यदि हम एक दूसरे पहलू से बात करें जिसमें यूआईडीएआई अनेक निजी कंपनियों के साथ मिलकर आंकड़ों को इकट्ठा करने का काम कर रही है तो इस स्थिति में क्या यह जरूरी नहीं कि निजी कंपनियां यहां अपने फायदे के लिए उन आंकड़ों का इस्तेमाल कर लें। और यदि उन आंकड़ों का प्रयोग ना भी करे तो इसकी क्या गारंटी की निजी कंपनियां उनका सही ही प्रयोग करेंगी। दूसरी ओर सरकार पर भी जनता क्यों भरोसा करे कि जो जानकारी सरकार अपने पास रख रही है उसका सही ही प्रयोग होगा और सरकार व्यक्तियों के निजी जीवन पर दखल नहीं देगी? यह भी हो सकता है कि सरकार आधार संबंधी जानकारी के माध्यम से व्यक्तियों के निजी जीवन पर दखल दे कर अप्रत्यक्ष रुप से उनको कैद कर ले।
आधार कार्ड से संबंधित यदि अन्य कमियों पर बात की जाए तो उसमें एक यह है कि जानकारी लीक होने पर व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटा सकता जो कि हमारे मौलिक स्वतंत्रता पर सीधे-सीधे कटाक्ष करने का काम करता है। इसके अलावा यूआईडीएआई द्वारा अधिकृत व्यक्ति ही मुकदमा दर्ज कर सकता है। यह कुछ प्रावधान ये दिखाने के लिए काफी हैं कि कैसे हमारे ऊपर सरकार नियंत्रण रखने का काम कर रही है, वरना क्या जरुरत थी कि आधार संबंधी विधेयक को धन विधेयक के रूप में संसद के समक्ष रखने की?