मूकनायक पत्रिका के सौ साल के परिदृश्य में आज की पत्रकारिता


BY- Dr. AJAY KUMAR


31 जनवरी को पूरे देश ने मूकनायक पत्रिका की जन्मसती मनाई गई। अब कई लोग हैं वो सोचते हैं कि लिखने से और छापने से किसी तरह का परिवर्तन नही होता है।

अगर लिखने और छापने से किसी तरह का परिवर्तन नही होता तो बाबासाहेब को खुद का समाचार पत्र छापने की जरूरत नही पड़ती।

अब सवाल आता है कि बाबासाहेब को अपना अखबार निकालने की जरूरत क्यों पड़ी?

जिसको समझने के लिए आज वर्तमान में ही देख लीजिए कि देश में SC/ST और OBC के ऊपर जितने अत्याचार होते हैं उन अत्याचारों की खबर वर्तमान की मुख्य धारा की मीडिया में उन खबरों को जगह तक नही मिलती।

इसी वजह से बाबासाहेब को खुद की पत्रिका और समाचार पत्र निकालने पड़े। डॉ आम्बेडकर जी हमेशा से समाज को शिक्षित होने पर जोर दिया करते थे इसलिए उन्होंने “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” का नारा दिया था।

क्योंकि वह जानते थे कि “शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पियेगा वो व्यक्ति दहाडेगा”।

मूकनायक पत्रिका मात्र वह एक पत्रिका नही है बल्कि वह बाबासाहेब का वह संदेश है जो आज के समाज में चिंगारी जगाने का कार्य कर रहा है।

कोई पत्रिका या समाचार पत्र एक कागज का टुकड़ा नही है बल्कि पूरी विचार धारा है जो एक पूरे समाज को वैचारिक क्रांति के माध्यम से मजबूत करते हैं।

वैसे यह कार्यक्रम बहुजन चैनल दलित दस्तक की देन है क्योंकि इस कार्यक्रम का असर यह रहा कि मूकनायक की एक चिंगारी के नाम मात्र से यह पूरे देश में 171 जगहों पर इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

आज यह क्रांति इतनी जगह पर फैली कल और जगह फैलेगी क्योंकि वर्तमान समय में आज बाबासाहेब के द्वारा किये गए कार्यों को हर कोई मान रहा है। जितने लोग जागरूक होंगे और बाबासाहेब के द्वारा किये कार्यों को जानेंगे तब तब लोग बाबासाहेब के ऋणी रहेंगे।

साहित्य और लेखनी के माध्यम से हर युग के इतिहास का पता चलता है। बहुजन समाज के न्यूज़ चैनल और लेखक न होने की वजह से आजादी के बाद आज भी हम लोग अपने इतिहास के बारे में जानकारी न् रखकर मनुवादियों द्वारा प्रायोजित इतिहास को मानते आ रहे हैं।

वर्तमान में समाज के मुख्यधारा के न्यूज़ चैनल कभी भी बहुजन समाज के लोगों को प्रोग्रेसिव नही मानते हैं। उनके द्वारा उनके समाज के लोगों को न्यूज़ चैनल पर डिबेट में लाते हैं और अखबारों की सुर्खियों में उनके लोगों को ही बढ़ाते हैं।

आज के दौर में हमारे राजनैतिक और बुद्धजीवियों की कमियों चलते बहुजन समाज के अच्छे लोगों को तैयार नही कर पाए जिनमें कुछ लोग अर्थशास्त्र पर गहन जानकारी वाले होने चाहिए, कुछ लोग कानून पर, कुछ लोग विज्ञान पर, कुछ लोग समाज शास्त्र सहित अन्य मुद्दों पर बहस पर अच्छी पकड़ रखने वाले होने चाहिए लेकिन आज ऐसा नही है।

सरकारों ने न्यूज़ चैनल खोलने के लिए जो प्रावधान बनाये रखें हैं उसमें सिर्फ सदियों से लूटने वाले समाज के लोगों द्वारा ही न्यूज़ चैनल खोल सकते हैं न् कि बहुजन समाज के लोग क्योंकि न्यूज़ चैनल खोलने के लिए शुरुआती सरकारी फीस ही करोड़ो में आती है और हमारे पास 1950 के बाद इतनी संपत्ति अर्जित नही की कि एक चैनल खोल सकें ।

फिर भी शुक्र है कि पश्चिम देशों द्वारा बनाई गई यूट्यूब और सोशल मीडिया की वजह से हमें हमारी आवाज रखने का मौका मिल रहा है वरना आज भी देश में सारे मुख्य न्यूज़ चैनल पर केवल और केवल सिर्फ एक जातिविशेष के लोगों का कब्जा है।

आज हम लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि मूकनायक के सौ साल होने पर हम सब लोग इतने लेखक, इतने बुद्धजीवी पैदा करें कि आने वाले समय में बाबासाहेब के सपनों का भारत बन सके।

आज की जाती विशेष मीडिया ने बाबासाहेब को केवल दलितों का मसीहा बताया है। बल्कि उनके द्वारा किये गए कार्यों और योगदानों को दुनिया लोहा मानती है लेकिन हमारर देश में उन्हें एक समाज के हितैषी तक सीमित कर दिया है।

हमारे समाज के बुद्धिजीवियों और लेखकों का अब यह कार्य होना चाहिए कि उनके लेख समाज और विचारधारा के साथ साथ देश के अन्य गम्भीर मुद्दों पर मुखरता से बात रखना सीखना चाहिए और उनको अपने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में हर तरह के लेखों को जगह देना चाहिए जिससे उन पत्रों को समाज का हर व्यक्ति पठन कर सके।

लेखनी कला कोई जमीदार की खेती नही है जो सिर्फ लाभ के लिए ही काटी जाए बल्कि सच्ची लेखनी एक समाज सेवा है जिसे समाज हित में जरूरी है।

मूकनायक के मकसद को पूरा करने के लिए जरूरी है कि भारत रत्न बाबासाहेब ने जिस संविधान के बदौलत देश के सभी धर्मों का भला किया है उसी तरह हमें इस तरह लेखनी को बदलना है कि बाबासाहेब को भारत रत्न के साथ साथ विश्व रत्न के नाम से हमें उन पर गर्व हो। तभी बाबासाहेब और मूकनायक को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


डॉ अजय कुमार
पोस्ट डॉक्टरल फेलो
रसायन विज्ञान विभाग
IIT दिल्ली


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