सुशील भीमटा की देश हित में रचना

 

BY-सुशील भीमटा

••••••••••••••••••देश हित में, •••••••••••••••••••••

“एक सांस हर देश वासी के हिस्से में आने दो,
आंधियों रुको जरा,मुझे एक चिराग जलाने दो।

जल रहा मेरा वतन भ्रष्टाचार ,कालेधन से,
इस कलंक को देश के माथे से मिटाने दो।।

राह नजर आई उमीद की वतन को,
इस राह को वतन परसतों, मंजिल तक जाने दो।

ना था माझी नजर आता वतन को,
कालेधन,भ्रष्टाचार के भंवर से जो पार लगा दे,
आओ साथ निभाये इस माझी का,
वतन की नैया को इस भंवर से पार लगा दें।।

फर्ज और कर्ज दोनों निभाने का समय,
आज ये माझी,एक बार फिर लाया है,
बुलंद कर अपने हौंसलों को, देश को प्रगति के राह पर ले जानें का समय आया है।।

चूक आज हूई तो, समय ना दोबारा ऐसा,
जन हित में आयेगा,
देश को भ्रष्टाचार और कालेधन के कलंक से
ना फिर कोई बचा पायेगा।।

कतारें रोज लगती अस्पतालों, सरकारी दुकानों और हाथ फैलाये भीख मांगते गरीबों की,
आज कतारें लगी हैं ,गरीबों को भुखमरी और जिल्ल्त से बचानें की,

साथ दे गर जनता हिन्दोस्तान की,
तो तस्वीर देश की बदल जानी है,

सदियों से पेट की आग बुझाने के लिये भीख मांगते गरीब की, तकदीर भी बदल जानी है।।

देश की सीमा पर जवान देते,खातिर हमारे कुर्बानी हैं,
चंद दिनों, कर त्याग सुख सुवीधाओं का,
सहकर थोडी मुश्किलें, लानी भोर सुहानी है।।

सिपाही बन देश के,संकट दूर कर आज
ये फर्ज हमें निभाना है,
मुश्किलें आये चाहे हज़ार मगर ,
दामन गरीब का, खुशियों से हमें भरना है,

क्या तू साथ लेकर आया था,क्या तू साथ
इस जहान से लेकर जायेगा।
तेरी नेकी का लिवास ही तूझे,
तेरे बुरे कर्मों से निजात दिलवायेगा।।

आज वतन को इंसानियत के दुश्मनों ने,
चारों ओर से घेरा है,
वतन पर आज भ्रष्टाचार,हैवनियत,कालेधन
ने डेरा डाला है।

निभा फर्ज ऐसा जैसे निभाता फुलों के बाग का माली है,
गरीब के घर भी जले दीप उम्मीद के,

घर उसके भी खुशियों भरी लानी अगली दिवाली है।।

ना रुकना,ना थम जाना आज हारकर, वतन ये तेरा पुकार रहा,
आज लडाई लड खुद के लिये,ऐ हिन्दोंस्तान अर्थव्यवस्था में ऐसा सुधार ला रहा।

अपनी भलाई खातिर,आज आम आदमी की,
परीक्षा का वक्त हाँथ आया है,

कर हौसला बुलन्द अपना,आज तेरी आजादी की उडान का दिन, वक्त साथ लाया है,

सदियों लडा इस गरीबी के अभीशाप से, अब ना तूझे हार जाना है।
सहकर थोडी मुश्किलेे, इस अभिशाप से आज खुद को मुक्त करवाना है।।

कभी भूख से,कभी कर्जों के बोझ से हमेशा जान गंवाता आया ग्या है।
बलिदान दे अपनी पीढ़ियों के लिये उनके समृद्ध जीवन की घडी समय साथ लाया है।।

भूख,बेबसी,लाचारी,गरीबी,शोषण की मौत सालों मरता आया है।
आज रहमत से उस परमात्मा की, तेरे आत्मसम्मान से जीने का वक्त आया है।।

देर है उसके दर, पर ना कभी भी उसके दर अंधकार छा पाता है।
उजड गये राजे रजवाडे चंदू सालों में,उसकी एक चोट से,रहमत से रंक राजा बन जाता है।।

तेरी तकदीर की तस्वीर तुझको, उस खुदा ने आज दिखाई है।,
काम् लेना है तुझे बुद्धी-विवेक से,तेरे उद्धार की भी वो शुभ घडी आई है।।

कर वादा खुद से आज, ये चंद दिनों की मुसीबतें भी खुशी से झेल जायेगा।
कल बने थे राजा रंक,बदनियत से, आज कालेधनी रंक,और गरीब राजा बन पायेगा।।

 

लेखन स्वतंत्र विचारक हैं तथा देवभूमि (हिमांचल प्रदेश) में रहते हैं।

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