आइये! इस एकता दिवस सरदार पटेल को थोड़ा नजदीक से जानें।


BYशोभित अवस्थी


“जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमयी छाया से दूर रह सकता है जो इंसान के माथे पर चिंता की रेखाएं छोड़ जाती है।” – सरदार वल्लभ भाई पटेल

वर्ष 2004 की बात है , कक्षा चार का एक विद्यार्थी बालक जो कि हरदम मस्ती में रहता है। सचिन से लेकर शक्तिमान तक उसकी अपनी अलग दुनिया है। एक दिन उसको नैतिक शिक्षा की कक्षा में “भारत के महापुरुष सरदार पटेल” पर लिखे पाठ को पढ़ने के लिए कहा जाता है।

अध्याय के शुरुआत में ही वृतान्त आता है कि सरदार पटेल को बचपन में आँख के पास एक फोड़ा निकल आता है। जिसका एक मात्र उपचार यह था कि उसमें लोहे की सलाख़ को गर्म करके चुभाया जाये। समय रहते अगर ऐसा नहीं किया गया तो आँख की रोशनी भी जा सकती है। पर ऐसा करने की हिम्मत स्वयं वैद्य जी तक नहीं कर पा रहे थे। लेकिन अचानक बालक वल्लभ ने उस गर्म सलाख़ को लेकर अपनी आँख के पास चुभा लिया। इस घटना को देखकर आस-पास खड़े लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

पाठ को पूरा करने के बाद भी उस विद्यार्थी के बालमन में यह घटना कई दिनों तक चलती रहती है। वह सोच-विचार करता है कि कोई ऐसे कैसे लोहे की गर्म सलाख़ को चुभा सकता है। यहाँ पर तो डॉक्टर के हाथों में इंजेक्शन देखकर बस मुँह से यही निकलता है कि- “मम्मी बचाओ, मम्मी नहीं”।

ख़ैर, बचपन में मिले इस मर्म स्पर्श को आज भी उतनी ही उत्सुकता से महसूस करता हूँ, और सोचता हूँ कि कैसे अपने बचपन में ही सरदार पटेल ने बता दिया कि अगर किसी महत्वपूर्ण एवं महान कार्य के लिए असहनीय पीड़ा को भी सहन करना पड़े तो किया जाये।

आपको बताते चलें कि सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड, गुजरात में हुआ था। स्कूली शिक्षा गुजरात में हुई, लेकिन आगे बैरिस्टर की पढाई लंदन से पूरी की, 1913 में भारत वापस आये।

उसके बाद गाँधी जी के साथ रहकर भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभायी। बारडोली सत्याग्रह के सफल होने के बाद बारडोली गांव की महिलाओँ ने उनको “सरदार” शब्द से सम्बोधित व सुशोभित किया।

आज अगर भारत के आधुनिक इतिहास को आधार बना के देखा जाये तो पता चलेगा कि भारत वर्ष ने महान सम्राटों से लेकर विदेशी आताताइयों तक, विस्तारवाद से लेकर साम्राज्यवाद तक सब कुछ झेला और देखा।

लेकिन सरदार पटेल ने कुछ महीनों में वो कर दिखाया जो भारत के इतिहास में कभी नहीं हो पाया था। ऐसा इसलिए क्योंकि आजादी मिलने के पहले व एक साल बाद तक भारत देश एक राजनीतिक इकाई नहीं था।

यह दो भागों में विभाजित था। एक भाग ब्रिटिश भारत था, जो की 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया था। दूसरे भाग में राजे-रजवाड़े थे, जो कि तब अंग्रेजों के आधीन रहे थे पर अब लगभग 565 रियासतों पर अपना अधिकार जमा रहे थे।

कारण यह था कि आज़ादी के बाद अंग्रेज़ एक ऐसा भ्रम उत्पन्न करके चले गए थे। जिससे इन सभी रियासतों के राजाओं को यह लगने लगा कि वह अपनी रियासत को भारत के संघ से स्वतन्त्र रख सकते हैं।

ऐसा होने पर जिस भारत देश के लिए सालों-साल संघर्ष चला, उसकी संरचना कर पाना असंभव था। ऐसा होता देख उस समय की तत्कालीन भारत सरकार ने सभी रियासतों से भारत में विलय के लिए आवाहन किया।

ज़्यादातर रियासतों ने अपना विलय भारत के संघ में कर दिया। लेकिन कुछ राजे-रजवाड़े इसका विरोध कर रहे थे। जैसे की जूनागढ़ का नवाब, हैदराबाद का निजाम आदि। जबकि इन रियासतों का जन-समुदाय भारत में विलय चाहता था।

यहाँ पर इन सभी रियासतों के विलय को लेकर सरदार पटेल की भूमिका महत्वपूर्ण रही। प्रायः हम सरदार पटेल के व्यक्तित्व को सिर्फ आक्रामक शैली का मान लेते हैं।

लेकिन अगर उस समय के घटना क्रम को देखा जाये, तो जहाँ पर एक ओर नेहरू व राजगोपालाचारी हैं। जो कि रियासतों पर शख्त रुख़ रखते हैं और कहते हैं कि जो रजवाड़े विलय के विरोध में हैं वह भारत के शत्रु माने जायेंगे, जिन पर आवश्यकता पड़ने पर सैन्य कार्यवाही भी की जाएगी। वहीं दूसरी ओर पटेल व उनके सचिव वी पी मेनन हैं। जिनका रुख नरम है।

ध्यान रहे यह कोई विरोधाभास नहीं है, यह एक सोची समझी रणनीति है जिसका मुख्य उद्येस्य यह है कि बात-चीत के जरिये हल निकाला जाये। जिससे की यह भारत उदय की क्रांति रक्तहीन रहे।

सरदार पटेल , इस प्रकार की अनेक नीतियों से लेकर जरुरत पड़ने पर सैन्य बल का प्रयोग करने तक कभी पीछे नहीं हटे। अन्ततः परिणाम स्वरुप उन सभी स्वतन्त्रता सेनानियों के सपनों के भारत को अमली जामा पहनाया। और एक उभरते हुए राष्ट्र की आधार शिला रखी, जिसपर एक समग्र, लोकतान्त्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का निर्माण हो पाया।

इन 565 रियासतों को भारत के संघ में मिलाना एक विश्व आश्चर्य था। तभी तो ब्रिटेन के प्रसिद्ध अख़बार “द मैनचेस्टर गार्डियन” (अभी “द गार्डियन”) ने यह छापा था कि – ” एक ही व्यक्ति विद्रोही और राजनीतिज्ञ के रूप में कभी-कभी ही सफल हो पता है। परन्तु इस सम्बन्ध में पटेल अपवाद हैं।” इस बात की प्रमाणिकता को उनके विचार और भी मजबूती प्रदान करते हैं। जो कि इस प्रकार हैं :
“मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।”

यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है।“
“बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है।”

हर इंसान सम्मान के योग्य है, जितना उसे ऊपर सम्मान चाहिए उतना ही उसे नीचे गिरने का डर नहीं होना चाहिए।”

जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए।”

“आलस्य छोडिये और बेकार मत बैठिये क्योंकि हर समय काम करने वाला अपनी इन्द्रियों को आसानी से वश में कर लेता है।”

“जब तक हमारा अंतिम ध्येय प्राप्त ना हो जाए तब तक उत्तरोत्तर अधिक कष्ट सहन करने की शक्ति हमारे अन्दर आये, यही सच्ची विजय है।”

आज जब हम सब भारतवासी ‘एकता दिवस’ के रूप में सरदार पटेल के जन्म दिवस को मनाते हैं व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तब हमारी कोशिश यह रहनी चाहिए कि ‘भारत के इस भाग्य विधाता’ को किसी एक दल या धर्म, समुदाय तक सीमित न रखा जाये।

जैसा की उनका मानना था कि हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिक्ख या जाट है। उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियाँ भी हैं।

भारत के एकीकृत होने के बाद सरदार पटेल को लेकर हमारी जो नैतिक, राजनीतिक और वैचारिक जिम्मेदारियां रहीं, कहीं न कहीं हमने उनका अनदेखा किया। यह अनदेखा सिर्फ पटेल का नहीं था, बल्कि उस पूरे भारत के जनमानस का था, जिसकी सरदार पटेल आवाज़ थे।

आज जब विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ के रूप में हम सरदार पटेल की प्रतिमा का अनावरण करके नैतिक दायित्व का बोध कर रहे हैं। तब उनके द्वारा निर्देशित राजनैतिक और समावैशिक वैचारिक प्रक्रिया को समझना व आत्मसात करना ही ‘सरदार पटेल’ को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। तभी ‘एकता दिवस’ सही मायनों में सार्थक होगा।

यह लेख शोभित अवस्थी द्वारा लिखा गया है ,जो कि डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ के छात्र हैं।

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