BY– सुशील भीमटा
कहते हैं कि यदि व्यक्ति के पास हुनर हो तो उसे निखारने के लिए जरूरी नहीं की उच्च प्लैटफॉर्म मिले। व्यक्ति सच्ची लगन से काम करे तो वे किसी भी जगह और स्थिति में उपलब्धि हासिल कर सकता है। जी हां, ऐसा ही एक वाक्या शिमला की कंडा जेल में बंद क़ैदी ने कर दिखाया है।
यहां रेप के मामले में जेल में बंद एक बेगुनाह कैदी ने UPSC की मैगजीन ‘कंपीटिशन कंपेनियन’ को खुद बनाया, जिसे डीजी जेल ने मंगलवार को लॉन्च कर दिया है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने उन्हें बेगुनाह करार देते हुए रिहा कर दिया है।
क़ैदी विक्रम ख़िमटा मैग्जीन निकालने के साथ ही जेल में IAS की तैयारी भी कर रह थे, जिसमें पुलिस ने भी उनका पूरा साथ दिया।
उधर, डीजीपी जेल सोमेश गोयल का कहना है कि विक्रम जो जेल के प्रति स्नेह दिखा रहे है उससे बड़ा कॉम्प्लिमेंट कोई नहीं हो सकता। उनका प्रयास यही रहता है कि जेलों में अच्छा माहौल तैयार किया जाए ताकि कैदियों को उनके मुताबिक कुछ करने की प्रेरणा मिल सके।
छोटे से गांव से संबंध रखते हैं ख़िमटा: शिमला जिले के मंडोल गांव में रहने वाले पोस्ट ग्रेजुएट विक्रम खिमटा को रेप के आरोप में दोषी पाते हुए 7 साल की सजा सुनाई गई थी। विक्रम खिमता को सितंबर 2016 में ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया था।
वहीं, विक्रम का कहना है कि भले ही वह जेल में रहे लेकिन, उन्होंने अपना भविष्य काल कोठरी में बर्बाद नहीं किया और न ही विक्रम को जेल में काटे दो सालों का कोई पछतावा है।
विक्रम कहते हैं कि जेल ने उनको बहुत कुछ दिया और जेल में ही किताब को लिख पाए। वह इसके लिए जेल विभाग का भी धन्यवाद करते हैं।
आज विक्रम खिमटा को उच्च न्यायलय द्वारा बाइज्जत बरी कर दिया गया है! कभी तकदीर इस तरह करवट लेगी ऐसा सोचा भी नहीं था।
इस नौजवान की सकारात्मक सोच और आत्मबल का उदहारण समाज के लिए प्रेरणा का सूचक है। ऐसे निर्दोष को अवश्य सफलता और कामयाबी मिलनी चाहिए वर्ना इंसानियत से भरोसा उठ जायेगा।
समाज को चाहिए कि इस बेकसूर बेगुनाह नौजवान को सम्मान देकर प्रोत्साहित करे और एक नया जीवन जीनें में साथ निभाये। उंगलियाँ उठानें से अच्छा है हाथ थाम लें वक्त बुरा हो तो समाज को साथ देना चाहिए। इसी से समाज स्वच्छ और समृद्ध बनता है।
“ज़रा हाथ मेरा थाम कर के देखो तो सही …..
मैं भी जल जाऊंगा महफ़िल में चिरागों की तरह.. गुजरे दौर ने रौशनी छीन ली मुझसे बेवफा होकर.. आज लौट आया हूँ बेगुनाह होकर”- सुशील भीमटा