पिंजौर-नालागढ़ बाया बद्दी फोरलेन पर संकट


BYTHE FIRE TEAM


भू-अधिग्रहण फंसने पर केंद्र सरकार ने दिया परियोजना को डी-नोटिफाई करने का नोटिस


शिमला: हिमाचल-हरियाणा को जोड़ने वाली प्रदेश की महत्त्वाकांक्षी पिंजौर-नालागढ़ बाया बद्दी फोरलेन परियोजना पर डी-नोटिफाई का खतरा मंडरा गया है।

हिमाचल प्रदेश में भू-अधिग्रहण का मामला फंस जाने के कारण केंद्र सरकार ने इस सड़क परियोजना को डी-नोटिफाई करने का नोटिस जारी किया है। केंद्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्रालय के सचिव ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि 31.2 किलोमीटर लंबे पिंजौर-बद्दी-नालागढ़ फोरलेन के भू-अधिग्रहण का मामला सितंबर 2016 से लटका है।

इसके लिए कुल 650 करोड़ की राशि मुआवजे के रूप में भू-अधिग्रहण के लिए निर्धारित की गई है। हिमाचल प्रदेश की सीमा में 18 किलोमीटर फोरलेन बनेगा। हरियाणा के मुकाबले हिमाचल सरकार ने सर्किल रेट कई गुणा बढ़ा दिए हैं। भू-अधिग्रहण मुआवजे के लिए जारी किए गए सर्कल रेट हिमाचल में ज्यादा होने के कारण मुआवजा राशि देना मुश्किल है।

इतना ही नहीं, हिमाचल में मुआवजे की राशि के लिए फेक्टर-टू लागू किया जा रहा है। इस कारण हिमाचल की जद में आ रहे 18 किलोमीटर लंबे फोरलेन के भू-अधिग्रहण के लिए सर्किल रेट से चार गुना राशि मुआवजे के रूप में देनी पड़ेगी। केंद्रीय सचिव ने अपने पत्र में कहा है कि इस अड़चन से परियोजना का निर्माण संभव नहीं है। हिमाचल के परियोजना प्रभावितों को फोरलेन की कुल लागत से ज्यादा मुआवजा राशि देनी पड़ेगी।

इस सूरत में पिंजौर-बद्दी-नालागढ़ फोरलेन का निर्माण करना मुश्किल है। लिहाजा केंद्र ने राज्य को दो टूक कहा है कि यह मामला जल्द हल नहीं हुआ तो इस सड़क परियोजना को डी-नोटिफाई करना पड़ेगा।

बताते चलें कि इस सड़क परियोजना के निर्माण की कवायद वर्ष 2009 में लोक निर्माण विभाग ने आरंभ की थी। इसके बाद इसे नेशनल हाई-वे घोषित किया गया। इस आधार पर इसके डबल लेन निर्माण की डीपीआर तैयार की गई। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने इस सड़क मार्ग को फोरलेन घोषित कर नेशनल हाई-वे अथॉरिटी ऑफ इंडिया को सौंप दिया।

इस आधार पर दिसंबर 2016 में इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार कर भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया आरंभ की गई है। गौर हो कि परियोजना प्रभावितों ने इस मामले को अदालत में चुनौती दी है। इस आधार पर कोर्ट ने हिमाचल तथा हरियाणा दोनों राज्यों के सचिवों को केंद्र के साथ मिलकर फैसला लेने के आदेश पारित किए हैं।

इस आधार पर केंद्रीय सचिव की अध्यक्षता में दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक भी हो चुकी है। इस बैठक की जारी हुई मीटिंग ऑफ मिनट्स में भी केंद्रीय सचिव के हवाले से सड़क परियोजना को डी-नोटिफाई करने का जिक्र किया गया है। हालांकि राज्य सरकार के लिए प्रभावितों के विरुद्ध फैसला लेना आसान नहीं है। इसके चलते अजीब उलझन में फंसी हिमाचल सरकार न फोरलेन परियोजना खोने के मूड़ में हैं और न प्रभावितों को नाराज कर सकती है।

औद्योगिक क्षेत्र होने से जमीन महंगी:

फोरलेन प्रभावित इलाका औद्योगिक क्षेत्र है। इस कारण बद्दी-नालागढ़ में जमीन के दाम प्रदेश के अन्य हिस्सों के मुकाबले अधिक हैं। इसी कारण इसका सर्किल रेट हरियाणा के मुकाबले अधिक है। परियोजना प्रभावित फैक्टर-टू लागू कर सर्किल रेट से चार गुना मुआवजा मांग रहे हैं। अब केंद्र इसे देने को तैयार नहीं है।

सर्किल रेट कम करना संभव नहीं:

नियमों के तहत सर्किल रेट जिला के डीसी नोटिफाई करते हैं। इसके लिए उपायुक्त को कलेक्टर की पावर दी गई है। किसी भी बड़ी परियोजना के निर्माण से पहले सर्किल रेट रिवाइज करने का प्रावधान है। लिहाजा बद्दी-पिंजौर-नालागढ़ की परियोजना निर्माण से पहले तय किए गए सर्किल रेट को कम करना संभव नहीं है।

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