BY– सुशील भीमटा
प्रिय देशवासीयों आज पुलवामा वारदात के बाद जो हालात देश में पैदा हुए या किए जा रहे हैं उनका सामना करने के लिए समस्त देशवासियों और कर्णधारों को धैर्य से इन हालतों की तह तक पहुँच कर ही अपने सुझाव और निर्णय लेने होंगे।
ऐसी वारदातें आजादी के बाद होती आई या करवाई जाती रही हैं। कभी आतंकवाद सर उठाकर ये मंजर देश के सामने लाता है तो कभी राजनीतिक मनसूबों को परवान चढानें के लिए सियासी खिलाड़ी ऐसी दहशत फैलाता आया है। हर बार कुछ थोड़ी बहुत कार्यवाही की जाती है और हकीकत छुपाई जाती रही है। मगर कभी भी इस दहशतगर्दी से सही तरीके से निपटा नहीं गया, आजादी के बाद से अब तक ये एक बड़ा सवाल है?
बात यहां पर शक के दायरे में राजनेता को लाती है कि एक ही मुल्क पाकिस्तान से लगती सीमाओं को ही हम आज तक सुरक्षित नहीं कर पाये क्यों? क्या हमारा सुरक्षा विभाग इतनी भी योग्यता नहीं रखता कि वो सीमा सुरक्षा के पिछले 70 सालों से पुख्ता इंतजामात कर पाये? या हमारे पास सुरक्षा उपकरणों और सैनिक बलों की कमी है?
जब आज हम विकास के हर मुकाम को हांसिल करनें लगे हैं तो सिर्फ एक मुल्क से लगती सीमाओं को क्यों नहीं सुरक्षित कर पा रहे? सोचिये, वजह कहीं हमारे कर्णधार अपने राजनीतिक मनसूबों के लिए इस मुल्क से लगती सीमाओं को यथास्थिति तो नही छोड़ रहे? या तो फिर ये सवाल सुरक्षा एजेंसी पर उठता है। देशवासियों आप ही आंकलन कीजिये आज आधुनिक तकनीक से लैस लड़ाकू विमानों, युद्धपोतों, तोपों, परमाणु बमों से भरपूर देश का सुरक्षा भंडार है और आधुनिक तकनीक से बने सुरक्षा सूचना देने वाले यंत्र और उपकरण, रीडर सब है फिर भी सीमा सुरक्षा में कमी या कोताई कैसे और क्यों?
हाल ही मैं जैसे आप सबों के सामने देश की मीडिया हर पल हर दिल पुलवामा में हुई या करवाई गई वारदात और मौत के तांडव की साजिश रचने और अंजाम देने वालों का खुलासा करती नजर आती है कि किसने कैसे इस कत्लेआम को अंजाम दिया, तो क्या ये एक देश की सुरक्षा एजेंसी या कर्णधारों पर सवालिया निशान नहीं लगाता?
जी हां लगाता है क्योंकि जब आज हिमाचल में बद्दी में पड़ रहे एक विद्यार्थी तक इस वारदात की खबर पहुंच सकती है और भारतीय मीडिया आज अंजाम दी गई वारदात की वीडियो क्लिप्स हादसे के बाद जुटा और दिखा सकती है, तो हमारी देश या सीमा सुरक्षा व्यवस्था इतनी नाकाबिल है कि आज तक उन्हें इन साजिशों की भनक तक नहीं लगती? तो फिर बाद में ये इनफार्मेशन कहां से और कैसे जुटाई और दिखाई जाती है।
आजादी के बाद से ही इस सीमा और जम्मू-काश्मीर के मुद्दे को उलझाकर रखा गया है। आप कारण खुद समझ सकते हैं। सब बंटवारे के समय के राजनेताओं को कोसते आये और कोसते जा रहे हैं। मगर इसका निदान और समाधान कोई नहीं कर रहा या चाह रहा, क्यों? जानें वाले तो जीकर चले गए और ऐसा कुछ नहीं कर गए जिसका समाधान या निदान ना कर सकें। आज जीना हमें है तो समाधान भी हमें करना होगा। शमशान में राख हुए और कबरों में दफना दिए जो वो ज़िंदा नही होनें।
धारा 370 हटाई जा सकती है अगर कर्णधार चाहें, सीमायें सुरक्षित की जा सकती है अगर कर्णधार चाहे, जम्मू-काश्मीर से आतंकवाद खत्म किया जा सकता है अगर सरकार घ-घर तलाशी अभियान चलाए। ज्यादा से ज्यादा दो साल नही तो 70 साल भुगत लिया आगे और भी भुगतना होगा ये तय है। पिछले पांच सालों में पांच बड़े आतंकी हमले हुए छोटी वारदातों के अलावा। यहां तक की आतंकी पठानकोट बेस कैम्प में घुस गए और हमारी सुरक्षा धरी की धरी रह गई क्यों?
आज युद्ध करना एक बदला लेना हो सकता है जो वक्त और हालत के अनुसार जायज भी है इंसाफ के नजरिये से। मगर हमेशा के लिए वारदातों को रोकने का समाधान नहीं हो सकता। ये भी उतना ही सच है जितना शहीदों के बहे लहू और शहादत का बदला लेना। इसके लिए हमें मतलब हर हिन्दोस्तानी को चाहे वो आवाम हो या कर्णधार वतनपरस्त बनकर और देशभक्त बनकर सबसे पहले सीमाओं की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना होगा। सुरक्षा विभाग को जिम्मेवारी निभानी होगी और लापरवाही का अंजाम भी भुगतना होगा। सर्वप्रथम अपनी सीमाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात करने होंगे और जम्मू-काश्मीर में घर-घर तलाशी अभियान चलाकर पत्थरबाजों और छुपे आतंकियों को धूल चटानी होगी और धारा 370 हटानी होगी समस्त देश में कानूनी समानता लानी होगी। हमारे संविधान ने हमें यानि हर हिन्दोस्तानी को जीनें का और सुरक्षा का अधिकार दिया है तो हमारी सुरक्षा की जिम्मेबारी देश के राष्ट्रपति और सरकार की बनती है और तय भी की गई है। हिन्दोस्तान को जागना होगा जीनें और सुरक्षा का अधिकार मांगना होगा। वरना कुछ दिन और ड्रामा चलेगा थोड़ा वक्त निकालेंगे फिर 2019 के लोकसभा चुनाव आयेंगे और सब भूल-भूलाकर राजनीति में डट जाएंगे और जनता को प्रलोभन दिखाएंगे और उंगलियों पर नचाएंगे और ऐसे दर्दनाक हादसे होते जायेंगे। अंजाम वही जो होता आया जवान, आवाम राजनिति और आतंक पर बली चढ़ते जायेंगे।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं। लेखक हिमाचल प्रदेश के निवासी हैं।