मान्यवर कांशी राम साहेब का जन्म 15 मार्च, 1934 को ख़्वासपुर, रोपड़, पंजाब में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था. 1958 में स्नातक (बीएससी) होने के बाद कांशी राम साहेब पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए.
डीआरडीओ, पूना में नॉकरी के दौरान वाल्मीकि जाति का जुनूनी अम्बेडकरवादी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ‘दीना भाना’ वाल्मीकि जी ने बाबा साहब द्वारा लिखित पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (जाति का विनाश) मान्यवर कांशीराम साहेब को दी, जिसे साहेब ने एक ही रात में तीन बार पढ़ा.
बाबा साहब की इस पुस्तक को पढ़ने के बाद उनका कहना था कि इस पुस्तक ने मुझे जीवन भर का काम दे दिया है. कांशीराम का जीवन त्याग और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण है.
उन्होंने ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया तथा इसकी प्राप्ति के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया.
जब उनकी मां ने उन्हें शादी करने के लिए कहा तो “कांशीराम ने मां को समझाया कि उन्होंने समाज की भलाई के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया है.
नौकरी छोड़ने पर उन्होंने 24 पन्ने का एक पत्र अपने परिवार को लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि अब वे घर छोड़ रहे हैं और परिवार के साथ उनका कोई रिश्ता नहीं है. वे अब परिवार के किसी भी सुख-दुख में नहीं आएंगे अब मेरे पूरे बहुजन समाज का ही सुख-दुख मेरा है.
कांशीराम साहेब ने एक ऐसा मार्ग चुना था जिसके नेता भी वे स्वयं थे तथा कार्यकर्ता भी स्वयं. इसलिए उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की. इस योजना की पहली कड़ी थी विचारधारा का चुनाव तथा उसका निरन्तर परिष्कार.
उन्होंने बहुजनवाद की थीसिस विकसित की, जिसके अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य 15% अल्पजन मनुवादी शोषक हैं तथा दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक 85% बहुजन समाज शोषित है. अर्थात कांशीराम साहेब ने 15% V/s 85 % की लड़ाई का फार्मूला तय किया.
अपनी योजना की दूसरी कड़ी में कांशीराम साहेब ने बहुजन समाज बनाने के लिए सात समाज सुधारक जो बहुजन परिवारों में पैदा हुए थे जिन्होंने ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया था,
गुरु घासीदास, गुरु रविदास नारायण, गुरु बिरसा मुंडा, ईवी रामासामी पेरियार, महात्मा जोतिबा फुले, राजश्री शाहूजी महाराज और बाबा साहब आम्बेडकर इनके विद्रोह को पुर्नजीवित कर अपने मिशन को भौगोलिक ओर सामाजिक विस्तार देने की योजना बनाई.
अपनी योजना की तीसरी कड़ी में उनकी नजर उन लाखों सरकारी कर्मचारियों पर पड़ी जिनके लिए बाबा साहब ने कहा था कि- मुझे मेरे समाज के पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया है.
कांशीराम साहेब को आंदोलन के लिए आवश्यक टाइम, टेलेंट और ट्रेजरर तीनों चीजें सरकारी कर्मचारियों के पास नजर आयी. उन्होंने प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से हजारों कर्मचारियों को तैयार किया. विचारधारा, कार्यकर्ता और नेता जैसे आवश्यक अंगों को तैयार करने के पश्चात् कांशीराम साहेब ने संगठन का निर्माण किया.
मा कांशीराम साहेब का योजनाबद्ध मिशन:
कांशीराम साहेब राजसत्ता को ‘मास्टर चाबी’ कहते थे. वे राजसत्ता को साध्य नहीं साधन मानते थे, जिससे ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ के साध्य को प्राप्त किया जा सके. राज सत्ता की चाबी पाने के लिए कांशीराम साहेब ने समय, अंतराल योजनाबद्ध तरीके से तीन संगठन की स्थापना की थी.
1. बामसेफ की स्थापना- 06 दिसम्बर, 1978 को बाबा सहाब के परिनिर्वाण दिवस पर कांशीराम ने बैकवर्ड एन्ड माइनॉरिटीज कम्यूनिटीज एम्प्लाइज फेडरेशन ‘बामसेफ’ का गठन किया. बामसेफ एक नॉन पोलिटिकल, नॉन रिलिजियस और नॉन एजिटेशनल संघटन था.
यह कर्मचारियों का संघटन होते हुए भी कर्मचारियों के लिए कोई कार्य नही करेगा बल्कि इसके पीछे कांशीराम साहेब की धारणा थी कि बामसेफ के कर्मचारी समाज को अपना टाइम, टेलेंट, ट्रेजरर वापस देंगे (पे बेक) बामसेफ बहुजन समाज के लिए टीचर की भूमिका में कार्य करेगा.
परिणामस्वरूप बामसेफ के कार्यकर्ताओं ने पूरे देश में साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, बौद्धिक आदि क्षेत्रों में मनुवाद के खिलाफ एक तूफान खड़ा कर दिया तथा जाति, धर्म में बंटे हुए बहुजन समाज को सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ जोड़कर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओ की फ़ौज खड़ी कर दी.
2. DS4 की स्थापना- बामसेफ के गठन के तीन वर्ष बाद 06 दिसम्बर, 1981 को बाबा सहाब के परिनिर्वाण दिवस पर कांशीराम साहेब ने DS-4 का गठन किया. इस संगठन का पूरा नाम ‘दलित शोषित समाज संघर्ष समिति’ था.
यह संगठन राजनैतिक दल तो नहीं था, लेकिन इसकी गतिविधियाँ राजनीतिक दल जैसी ही थीं. बामसेफ की भूमिका अब अपत्यक्ष तौर पर DS-4 के माध्यम से संघर्ष में परिवर्तित हो चुकी थी जिसकी वजह से कांशीराम साहेब के नेतृत्व में मनुवाद के खिलाफ एक जन-आंदोलन खड़ा हो गया था.
कांशीराम साहेब अपने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविरों में कहा करते थे कि ‘जिन लोगों की गैर-राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं हैं वे राजनीति में सफल नहीं हो सकते’. अब बामसेफ और DS-4 की गतिविधियों से गैर राजनैतिक जड़े मजबूत हो चुकी थी और कांशीराम साहेब के सक्षम नेतृत्व से बहुजन समाज में राजनैतिक भूख भी पैदा हो गई.
3. बहुजन समाज पार्टी की स्थापना- 14 अप्रैल, 1984 को बाबासाहब के जन्म दिन पर कांशीराम जी ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ की स्थापना की. उद्देश्य स्पष्ट था, पहले राजसत्ता की चाबी पर कब्जा करना फिर सत्ता की चाबी से सम्राट अशोक के श्रमण भारत की पुनर्स्थापना करना.
उद्देश्य के अनुरूप जैसे ही बसपा की पहली बार सरकार बनी कांशीराम साहेब ने उत्तर प्रदेश को बौद्ध राज्य घोषित कर दिया. इस योजना के तहत बसपा की सरकार ने कहीं पत्थर भी गड़वाया तो श्रमण परम्परा के महापुरुषों के नाम का गड़वाया.
कांशीराम साहेब को जीवन में सबसे बड़ा झटका पार्टी गठन के मात्र दो वर्ष बाद तब लगा जब बामसेफ-2 बनकर कांशीराम जी से अलग हो गया जिसका अफसोस अक्सर कांशीराम साहेब अपने भाषणों में किया करते थे.
“मैंने मेरी जवानी का पूरा दिमाग और समय बामसेफ को तैयार करने में लगाया था यह सोचकर कि समय आने पर बामसेफ का सदुपयोग कर आसानी से बहुजन समाज को हुक्मरान समाज बना दूंगा लेकिन बामसेफ के कुछ लोगों की गद्दारी की वजह से बामसेफ को मुझसे अलग कर दिया गया। मैंने फिर प्राण किया कि अब मुझे अपने बलबूते पर ही इस मिशन को मंजिल तक पहुंचना होगा।”
कांशीराम साहेब की उपलब्धियों से यह तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि उन्हें बामसेफ का साथ मिला होता तो जरूर वे बहुजन समाज को हुक्मरान समाज बनाकर जाते.
फिर भी यह कांशीराम साहेब का करिश्मा ही था कि उन्होंने बसपा को दूसरे चुनाव में ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाते हुए पार्टी गठन के ग्यारवें वर्ष में ही 3 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बहन कुमारी मायावती जी को बना दिया.
कांशीराम साहेब के संरक्षण में आदरणीय बहन मायावती जी ने चार बार मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला. उनका यह कार्य काल इतना प्रभाशाली था कि आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली.
ओर मुझे वो पल याद है जब 22 जुलाई, 2008 को आदणीय बहन जी प्रधानमंत्री बनते-बनते रही उस समय बीजेपी के 2 सांसद अटल ओर आडवाणी जी ने कांग्रेस को वोट दिए उस समय
बहुजन समाज पार्टी के पास 23 लोकसभा और 16 राज्यसभा सांसद थे जिसमें बहन जी को तृणमूल के 16 सांसद 22 समाजवादी के सांसदों का समर्थन मिल चुका था.
ये सब अनुभव मान्यवर कांशीराम साहेब की देन थी