तो सरकार के दबाव में दबा दिया गया था बेरोजगारी का आंकड़ा?


BYसलमान अली


चुनाव के समय एक जानकारी लीक होती है और कहा जाता है कि 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर इस सरकार में है। इस सरकार में यानी कि भाजपा की NDA वाली सरकार में। विपक्ष ने खूब हो-हल्ला किया लेकिन उसका फायदा चुनाव में नहीं हुआ। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे ने इस मसले को एक ऐसे गड्ढे में डाल दिया जिसको आराम से पाटा जा सके।

आंकड़े नई सरकार के बनने के बाद अब आना शुरू हुए हैं। इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं कि किस प्रकार से सरकार दबाव में काम करवाती है। और जब सरकार की बात आती है  तो इसे इंकार नहीं किया जा सकता कि केवल दो लोगों का ही यह पूरा का पूरा तंत्र बन चुका है,  उन दो लोगों के नाम आपको भी पता होंगे।

सरकार के नीचे श्रम मंत्रालय और उसके नीचे जिसने आंकड़े जमा किए थे, सब के सब एक दूसरे से दबे हुए हैं। यदि निष्पक्ष तरीके से आंकड़े जुटाए गए थे और निष्पक्ष तरीके से काम किया गया होता तो चुनाव के पहले ही स्थिति साफ हो गई थी। और जब निष्पक्षता की बात आती है तो शायद लोगों को यह भी हजम नहीं होना चाहिए कि आंकड़े भी निष्पक्षता के साथ जुटाए गए होंगे।

बेहतर तो यही रहता कि श्रम मंत्रालय को अब कंफर्म करने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि अगले 5 साल फिर ऐसी ही हालत रहने वाली है। शाम 5:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक मुख्यधारा के मीडिया बंधु मस्जिद-मंदिर और मौलाना-पंडित तक ही सीमित रहेंगे वह इस पर डिबेट नहीं कराएंगे। करण इसका सीधा है क्योंकि लोगों को मजा धर्म में कुछ ज्यादा आता है।

खैर कुछ आंकड़े आप जान लीजिए भले ही चुनाव के बाद क्यों ना कंफर्म किए गए हों, हो सकता है 2024 में आपकी आंखें खोलें। देश में बेरोजगारी दर 6.1% 2017-18 में रही जो कि 45 साल में सबसे ज्यादा है। शहरी इलाकों में 7.8% और ग्रामीण की बात की जाए तो 5.3% का आंकड़ा बताया जा रहा है।

यह सिर्फ बताया जा रहा है एक सरकारी रिपोर्ट के माध्यम से। आपको भी पता होगा कि किस प्रकार से सरकारी रिपोर्ट बनती हैं। स्थिति इससे भी कुछ भयावह हो सकती है इससे इंकार नहीं किया जाना चाहिए।

पूरे भारत में बेरोजगारी दर जहां पुरुषों में 6.2% है तो वहीं महिलाओं में यह 5.3%, इसका मुख्य कारण महिलाएं कम नौकरी करना चाहती हैं वह घर को ही संभालने में ज्यादा व्यस्त हैं। कुछ लोग यह लेख पढ़ने के बाद हमको एंटी बीजेपी कह सकते हैं, कुछ लोग देशद्रोही भी कह सकते हैं और कुछ लोग पाकिस्तान जाने की नसीहत तक दे सकते हैं।

खैर पाकिस्तान तो बेचारा बर्बादी के कगार पर चिलम फूंक रहा है लेकिन भारत के कुछ तथाकथित लोग पाकिस्तान का नाम लिए बगैर अपनी राजनीति नहीं करते हैं। अब उनको कौन समझाए कि भारत की तुलना पाकिस्तान से नहीं की जा सकती, करना है तो अमेरिका, कनाडा या फिर नार्वे से करिए।

रही बात रोजगार की तो पकौडे के ठेले के साथ चाय की दुकान भी लगा सकते हैं हो सकता है आने वाले समय में आप भी प्रधानमंत्री बन जाएं। पकौड़े तलना पसंद नहीं तो मध्य प्रदेश चले जाइए वहां कांग्रेस की कमलनाथ की सरकार भैंस चराने की ट्रेनिंग दे रही है। यह भी नहीं करना है तो हरियाणा चले जाइए वहां बाल काटना आप अच्छे से सीख सकते हैं वह भी फ्री में।

ध्यान रहे चिकन और मटन की दुकान बिलकुल ना खोलें यह रोजगार खतरे से भरा है, सभी खतरे से खेलने वाले खिलाड़ी तो होते नहीं हैं जैसे कि कनाड़ा के नागरिक अक्षय कुमार।


लेखक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।


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