कुछ ऐसे गले पड़े की शान ही खो दी- सुशील भीमटा


BY- सुशील भीमटा


जो लोग 2002 में हमारे काँगेस प्रतिनिधि को काला कौआ, दामटू, सपोला जैसे अपशब्दों से पुकारते थे और टिकट मिलने के खिलाफ थे वो आज बगल में बैठतें हैं।

नही जानतें ये नेता कैसे औऱ क्यों इन लोगों को सहते हैं जो हमेशा कुर्सी की ताड़ में किसी के कपड़े ही उतार देतें हैं। आज जो 2002 में साथ थे उनके जज्बातों पर ये बहुत बड़ा आघात है।

जूब्बल कोटखाई नावर विधानसभा क्षेत्र की कांग्रेस हितेषी जनता और वरिष्ठ कार्यकर्ता ये सब जानते हैं कि वो कौन लोग है और उन्हीं लोगो की वजह से रोहित ठाकुर को कभी पूर्व मुख्यमंत्री का साथ नही मिला।

आज जब उनका कोई वजूद नही रहा तो कुर्सी की आदत और फितरत नें उन्हें रोहित जी का नजदीकी बना दिया। रोहित जी ने भी उन लोगों के लिए अपने पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी जनों को हटाकर उनके लिए कुर्सियां खाली करवा दी ना जानें क्यों?

मुझे नही मालूम कि क्यों ऐसा किया गया कि जो लोग मेरे समाने मंच से रोहित जी के लिए वीरभद्र मंच से अभद्र भाषा का प्रयोग करते थे जैसे कि मैने ऊपर लिखा यहां तक कि स्वर्गीय ठाकुर रामलाल की छवि को भी तार-तार करते रहे, आज वो रोहित ठाकुर के जिगर के टुकड़े बन गए।

कुछ ऐसे लोग भी है इसमें जिन्होंने रोहित जी को बेहाल करनें के लिए चुनाव में उतार दिया वो भी आज दिल-ए-अजीज है ना जानें क्यों?

मै जानता हूं कि बहुत से कमेंट आयें शायद मगर जो काँगेस हितेषी होगा वो पहले जरूर सच्चाई जाननें की कोशिश करेगा अपने वरिष्ठ कार्यक्रयाओं से तभी कोई प्रतिक्रिया देगा!
बाकी जो अंधभक्त है उनको कौन रोक सका!

इस विधानसभा में हार का यही मुख्य कारण है. यकीन कीजिये कार्यकर्ता ओं के ऊपर ऐसे लोग बिठा दिए गए जन्हें हम काफिर कहें तो कुछ भी गलत नही होगा।

आज इनके साथ दो लोग नही चलते और ये ऐसे लोग है जब 2002 में हम चुनाव जीतकर आये तो इन्होंने वीरभद्र सिंह को मजबूर किया कि रोहित ठाकुर को स्वीकारा ना जाये।

मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि ये वाक्ये मेरे अपनी आंखों के समक्ष हुए हैं और उस समय के सभी कांग्रेसी भाइयों ने आधी रात को हॉलीलाज से सर नीचा करके ये जिल्लत सहन की है, सिर्फ रोहित ठाकुर की बेहतरी के लिए वर्ना ऐसे लोगों के हम परखच्चे उड़ा देते।

आज तक इन्ही लोगों की मार की वजह से वीरभद्र सिंह जी और रोहित ठाकूर में दूरियां बनी रही क्योंकि इनमें से कुछ टिकट के दावेदार भी थे जो 2002 में बड़े आश्वस्त थे कि अब टिकट उनकी है।

आज जब इन्हें लगा कि राजा साहब तो उम्रदराज हो गए अब हम खत्म है तो रोहित ठाकुर को पकड़ लिया और अच्छे से जकड़ भी लिया आये और सीधे मंच की कुर्सियों पर गर्जना शुरू, पुराने कांगेसी 15 साल बाद फिर ताली और थाली उठाने पर मजबूर।

युवाओं से और अन्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं से आग्रह करूँगा की पहले सच्चाई की तह तक जायें तभी प्रतिक्रया करें अन्यथा पढ़े और भूल जायें। इनके आने से वो लोग दूर हो गए जो 500 ,1000 आदमी के लिए के लिए अपने दम पर लंच डिनर का इंतजाम तो करते ही थे और सभी इंतजामात भी करते थे।

आज जूब्बल नावर की बात तो नही करूँगा मगर कोटखाई की बात जरूर करूँगा की कोई एक बड़ा टूर्नामेंट ही करवाकर दिखा दो सिर्फ पार्टी सिर्फ ज़िंदाबाद से नही चलती, धन बल और कर्म बल दोनों चाहिए।

कुर्सियां बांटने से संगठन मजबूत नही होता जनता से जुड़ना पड़ता है और जनसेवी होना पड़ता है हल्ला बोल राजनीति और चालसाजी सबको दिखती मगर हमारे क्षेत्र में सच्चाई बिकती है।

प्रतिक्रया सिर्फ वो दे जो सच की पड़ताल करने की हिम्मत रखता हो।

पढ़ते रहें अभी बहुत से राज और गद्दार दफन है इतिहास के पन्नों को युवाओं तक जरूर ले जाँऊगा क्योंकि इंसान इस्तेमाल की चीज नही है साथ चलाने की चीज है।

ये स्वर्गीय ठाकुर रामलाल जी द्वारा विकसित और जागरूक किया गया क्षेत्र है इसको इतनी आसानी से इतिहास के पन्नो से मिटनें नही देंगे।

कांग्रेस थी है और रहेगी चेहरे तो बदलते रहेंगे जो संभलेगा वो चलेगा नही खोटे सिक्के की तरह छोड़ दिया जाएगा इतिहास गवाह है। गेरों से मिलकर कत्ल ही हुए हैं।


सुशील भीमटा


 

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