BY- सुशील भीमटा
कांग्रेस के मंथन के लिए उठाए गए कदमों से उठते सवाल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में शीत युद्ध पैदा कर गए ये चर्चा आम कार्यकर्ताओं में आये दिन होती रहती है।
जिनको पदभार दिया गया उनमें से बहुत से कुनबा खुश तो है मगर उनके साथ चलने वाली सेना कहीं ना कहीं नाराज है और खमोश भी है। जिसका सीधा असर हाल ही में लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद किसी हद तक साफ नजर आ गया।
मैं कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिए किए गए प्रयासों से बहुत खुश हूँ मगर चयन प्रकिया मन में कुछ सवाल पैदा कर गई। वो इसलिए कि शायद चयन कांगेस के बड़े नेताओं द्वारा कार्यालय में बैठकर ही किया गया?
मेरे अनुसार जैसे लोकल बॉडीज बनाई गई उसमे सभी कार्यकर्ताओं से सलाह मशवरा या राय की कमी कहीं ना कहीं नजर आई है जो बवाल का कारण बन गई?
कोई अगर प्रभारी चुना गया या उपाध्यक्ष या कोषाध्यक्ष चुना गया उसे चुनते समय उस क्षेत्र या पंचायतों से सम्बंध रखनें वाले सभी कार्यकर्ताओं की कोई मीटिंग नही करवाई गई ताकि वो सभी खुद आपस मे सलाह मशवरा करके अपनी सहमती से पंचायत प्रभारी या उपाध्यक्ष या अन्य पद्दधिकारी चुनकर देते तो किसी की कोई शिकायत ना रहती और बवाल भी ना होता।
बल्कि हुआ ये कि ऊपर से चयन कर दिया गया और उनको तब खबर हुई जब प्रेस में नाम छापे गए, शायद ये गलत था क्योंकि अपनी पंचायत में अपने कार्यकर्ताओं की सहमति से चुना जाना ही लोकतन्त्र की प्रक्रिया है।
सर्वसहमति भी एक तरह से मतदान है और सभी कार्यकर्ताओं की कद्र भी सम्मान भी। फिर शायद बवाल बहुत कम होता या होता ही नही?
इसका दुष्प्रभाव ये हुआ शायद की चयनित कार्यकर्ता तो जोश से चुनाव प्रचार में निकल पड़े मगर दूसरे वो कार्यकर्ता जिनको चयन के दौरान विशवास में नही लिया गए वी उस गति से प्रचार के दौरान बाहर नही निकले।
ये चयन का निर्णय जो बड़े नेताओं द्वारा अपनी मर्जी से किया गया वो बवाल कर गया और कहीं ना कहीं ये कहावत साफ नजर आई कि अंधा बांटे रेवड़ी अपनें अपनें को देवे?
कुछ ऐसा भी हुआ कि एक ही आदमी को दो दो तीन तीन पड़ दिए गए और कुछ को दूसरी बार भी उसी पद पर रखा गया जिस पद पर वो पहले से ही विराजमान था?
यहां शायद दूसरे कार्यकर्ताओं की योग्यता को नकारा गया या सही आंकलन नही किया गया?
फिर कुछ ऐसा हुआ कि जो कार्यकर्ता नाराजगी जैसे जैसे जाहिर करते रहे उन्हें उसी अनुसार पद दे दिए गए जिससे ये कमी जाहिर हुई कि संगठन द्वारा पहले पूरी तरह से चयन प्रकिया की योजना नही बनाई गई।
बेहतर यही होता कि पहले ही संगठन की प्रदेश, जिला, ब्लॉक कार्यकारणी द्वारा इस संगठ विस्तार की हर बॉडी की सदस्य संख्या तह की जाती और फिर उस बॉडी से सम्बंध रखने वाले वरिष्ठ एवं कनिष्ठ कार्यकर्ताओं से सलाह मशवरा करके चयन किया जाता? फिर शायद किसी की नाराजगी की कोई वजह ना रहती शीर्ष नेताओं और प्रदेश, जिला, ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणीयो के अध्यक्षों और अन्य सदस्यों से। मगर शायद राजनीति के अपने ढंग है रंग है जिसमें कुर्सी की अकड़ संग है?
संगठन का विस्तार सिर्फ इतना हुआ कि पगड़िया तो बांटी गई मगर आलम ये था कि पगड़ी वाले को तब पता चला जब प्रेस में खबर छपी?
आम कार्यकर्ता तो इस चयन की खबर से कोसों दूर कर दिए गए। जिसका खमियाजा सबके सामनें है। आम कार्यकर्ता इसलिए खामोश है कि वो वफादार है और सालो पार्टी की सेवा करके अपनें सम्मान को ठेस पहुंचाकर विपक्ष मै नही जाना चाहते आखिर आत्मसम्मान सबसे बड़ी चीज है।
दूसरा कारण या भूल ये की गई कि जो लोग पिछले 15 सालों से विरोधी बने रहे उनके लिए संगठन औऱ राजनीतिक मंच पर कुर्सियां खाली कर दी गई जो निष्ठावान काँगेस कार्यकताओं के लिए असहनीय एवं निंदनीय था क्योंकि मैं जूब्बल कोटखाई नावर विधानसभा क्षेत्र से वास्ता रखता हूं तो उस की बात भी जरूर करूँगा।
हमारे विधानसभा चुनाव क्षेत्र में भी ये मंजर जमकर छाया रहा समय समय पर झलक नजर आती रही और शीत युद्ध करवाती रही। कुर्सी पकड़ों नें यहां पर भी अपना वर्चस्व बनाये रखा और कांग्रेस पार्टी के सार्वजनिक मंच पर वो चेहरे छाये रहे जो 2002 से अभी तक विरोध ही करते रहे और 1990से आज तक साथ चलने वाले योग्य, निष्ठावान कांग्रेस कार्यकर्ताओं में से ज्यादातर मंच पर से गायब पायेंगे ना जानें क्यों?
अंत मै यही गुजारिश और इलतिजाह करता हूँ कि जमिनीं स्तर के कार्यकताओं की पूछ करो हर दिन हाजरी लगाने वाले सिर्फ खबरी है समाज मे उनका वर्चस्य और स्थान जमिनीं कार्यक्रयाओं से बहुत कम है। आजमा कर देख लो एक बार फिर संगठित होगा काँगेस परिवार।
ये मोदी लहर नही थी। ये काँगेस के अंदर छिड़े शीतयुद्ध का अंजाम है।बाकी मर्जी आपकी।
दोबारा जब चयन करो तो योजनावद्ध तरीके से हो और सम्बंधित क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की सलाह से हो। ये लोकतंत्र है जनाब यहां आम कार्यकर्ता घर घर जाकर आपका प्रचार करता है विरोध सहता है, रिश्तों की रुस्वासियां सहता है,लाठिया डंडे सहता है मगर आपको सिर्फ फूलमालाएं और राजगद्दी देता है!ल।
बदले में अहमियत और सम्मान तो बनता है या नही?
थोपो नही सर्वसहमति से चयन करो।
पढ़ते रहें बहुत कुछ बाकी है।
सुशिल भीमटा
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