BY- THE FIRE TEAM
लोकतंत्र की सीमाओं को लाँघती देश की राजनीति, कुर्सी की खातिर आये दिन सामाजिक मूल्यों और नैतिकता की सियासत पर बलि चढ़ती नजर आती है।
आज आये दिन हर राजनीतिक विचारधारा को बदलते नेता आम नजर आते है। परसों खबर पढ़ी कि 16 कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा जॉइन कर ली।
लोकसभा चुनाव के दौरान खबर आई कि 4 भाजपा नेताओं नें कांग्रेस पार्टी में शरण ले ली, ये कैसी विचारधारा और कैसी सोच है जो कुर्सी की खातिर छोड़ दी जाती है और सारी मर्यदायें तोड़ दी जाती है ?
ऐसा ही एक ज्वलंत उदाहरण हिमाचल प्रदेश की राजनीति में सामने आया जब पंडित सुखराम जी के बेटे औऱ पौत्र नें कुर्सी की खातिर अपनी विचारधारा छोड़ अपनें व्यक्तिगत स्वार्थ को प्रमुख मानकर जनता और कार्यकर्ताओं से मुँह फेर लिया।
आज देवभूमि में सभी राजनीतिक दल सरेआम कुर्सी के लिए अपनी ही विचारधाराओं का सार्वजनिक मंच से खुला विरोध करते नजर आते और अपनें ही दल के नेताओं पर उंगली उठाते और इल्जाम लगाते नजर आते हैं।
ना जानें इस देश मे किस विचारधारा की बात की जाती है और फिर लात दिखाई जाती है। हर राजनीतिक दल तीन-तीन चार- चार गुटों में बंटा हुआ है और अपनें व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए लोकतंत्र को बली चढ़ाया जाता है।
ऐसे में लोकतंत्र की अर्थी को कांधा देती जनता हर पल गरीबी और भुखमरी की आग में झुलसती आंसू बहाती नजर आती है। आजादी के 70 साल बाद भी फुटपात भरे पड़े हैं और किसान, जवान सूली चढ़ते और सरहदों पर सियासत की बली चढ़ते हैं।
राजनीति के गिरते स्तर का सीधा असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ता जा रहा है। आज हमारी पहचान भाजपा, काँगेस या किसी अन्य राजनीतिक दल से की जाती है ना कि हमारे नाम से।
आज हम सियासत के इतने शिकार हो चुके कि नेताओं की एक आवाज पर प्रदर्शन रैलियों में लाखों का हुुजूम उमड़ पड़ता है ना जानें क्यों ?
जबकि दूसरी ओर अगर गांव में या मोहल्ले में किसी दैविक अनुष्ठान का आयोजन करना हो तो पैसे देकर कारसेवा करवाई जाती है और खुद बैठकर गप्पें लगाई जाती है। साथ ही अगर किसी की मौत भी हो जाये तो आज हाल ये है कि सिर्फ एक दिन की शोकसभा के बाद राजनीति की चर्चा की जाती है।
गौर कीजिए अपने आस पास का माहौल बेदर्द होता जा रहा है और इंसानियत खोता जा रहा है। दूसरी ओर अगर चुनाव का समय हो या कोई जनसभा हो तो कई दिन, कई महीनों उनकी गाथा गाई जाती है। धन बल के साथ-साथ प्रचार के लिए खूब समय निकाला जाता है। ना जानें कैसे ये राजनीति हमें संस्कारों, व्यवहारों से दूर कर गई?
आज गांव, मोहल्ले, कस्बे राजनीति के रंग में इस तरह डूब चुके हैं कि लोग कटते, मरते, लड़ते दिखते है। आज हमारे सामाजिक और खून के रिश्ते बेपरवाह होनें लगे हैं और हम अपने अब खोनें लगें हैं।
आज सड़को पर राजनीति देश की समाप्ति को तोड़ती फोड़ती नजर आती है। आज राम रहीम आसाराम जैसे लोगों के लिए आम जनता लड़ती नजर आती है मगर किसी अपने करीबी या गरीब को बेसहारा छोड़ती नजर आती है।
आज राजनेता बाबाओं के ढाबों पर नतमस्तक होते हैं और जनता को जाति धर्म के नाम पर लड़वाते नजर आते हैं ना जानें क्यों ये मंजर सरेआम होता है और हम खामोश हैं?
आज नेताओं के लिए महंगी गाड़ियां, बंगले तीन-तीन जगह पेंशन और हर ऐशो आराम है मगर फुटपातों पर पड़ा आज भी 30 फीसदी हिन्दोस्तान है।
चुनाव प्रचार और नेताओं की रैलियों सुख सुविधाओं पर अरबों रुपये खर्च करनें से देश पर आर्थिक बोझ इतना बढ़ गया कि कमर तोड़ महंगाई और भृष्टाचार नें देश की आवाम को बेबस लाचार कर दिया।
रसूखदारों और मुनाफाखोरों को राजनीति सरक्षण देनें लगी है। कुर्सी के नीचे गुनाह होनें लगे हैं।
कानून दिखता तो है मगर देश की आवाम की तरह आजाद नही। आज गांव, गली, मोहल्ले, कस्बे राजनीति के रंग में इस तरह डूब चुके कि राजनीति की आहट होते ही दूरियां और छुरियां रिश्तों को चीरती और बिखेरती नजर आती है।
पिछले डेढ़ दशक से राजनीतिक विचारधारा तो कहीं भी नजर नही आती मगर कुर्सी की खातिर लोकतंत्र की बली चढ़ती जरूर नजर आती है।
मानसिकता को गुलाम और चढ़ते सूरज को सलाम करती राजनीतिक सोच वतन को डुबोनें और वतन की माटी से बेवफाई करती नजर आती है।
हम एक भीड़ का हिस्सा बन गए जिसमें एक हड़कम्प मचा है और किसी को कोई पता नहीं कब राजनीति के एक इशारे पर तुंफा आये और वतन की बर्बादी तांडव दिखाये और हम फिर गुलाम हो जायें।
आग्रह करना चाहूंगा वतन की आवाम से कि राजनीति पर रिश्तों, सामाजिक मूल्यों और व्यवहारों-संस्कारों को बलि ना चढायें।
बंदूक भी हमारी ,कांधे भी हमारे और गोलियां भी हमी पर बरसनें लगी है। कुछ तो बदलना होगा न्यायलय की ओर चलना होगा थोड़ा सम्भलना होगा।
आस पास के माहोल पर गौर कीजिए रिश्तों की अर्थियां भरी पड़ी है समाज में। वतन जल रहा है भारतीयता और अमनों चेन निगल रहा है।
जागना ही होगा, चंद ही कर्णधार है जिन्हें भारतीयता और वतन के आवाम से सरोकार है प्यार है।
सुशील भीमटा
[mks_social icon=”facebook” size=”35″ style=”rounded” url=”http://www.facebook.com/thefire.info/” target=”_blank”] Follow Us On Facebook