BY-THE FIRE TEAM
मिली जानकारी के मुताबिक लोकसभा में पारित किया गया डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक, 2019 जो लम्बे समय से सदन में अटका हुआ था, कुछ चर्चा के साथ ध्वनिमत से पारित कर लिया गया है.
यह विधेयक कई मामलों में मील का पत्थर साबित होगा जैसे- अपराधियों, संदिग्धों, पीड़ितों, लापता और अज्ञात मृतकों की पहचान कराने में बहुत कारगर सिद्ध होगा.
विधेयक के संबंध में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बताया कि- इस कानून में डाटा संरक्षण, निजता, गोपनीयता का सूक्ष्म विवेचना के साथ उल्लेख किया गया है.
HARSHWARDHAN
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि- आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में डीएनए प्रौद्योगिकी विधेयक लाने के लिए 2003 में कुछ प्रमुख अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों के बीच विमर्श हुआ था, और तत्कालीन अटल सरकार ने डीएनए रुपरेखा सलाहकार समिति भी बनाई थी.
किन्तु 2004 में उनकी सरकार गिर गई, यद्यपि बाद की सरकारों ने इस कार्य को आगे तो बढ़ाया लेकिन ठोस काम नहीं हो सका.
अगस्त 2018 में हम पुनः इस विधेयक को लाए और फिर 2019 में इसको अंतिम तौर से पास कराने में सफल हुए.
इस विधेयक को लाने का मूल उद्देश्य देश में किसी डीएनए डाटा बैंक का उपलब्ध न होना है. यदि सरकारी आँकड़ों की बात करें तो पिछले वर्ष 40,000 लावारिश शव पाए गए
तथा लगभग एक लाख बच्चे लापता मिले. ऐसी स्थिति में उनकी पहचान के लिए किसी विधेयक की जरूरत थी. हम डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से आदतन अपराधियों की तलाश आसानी से कर सकते हैं.
इस कानून का सबसे अधिक उपयोग हम अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली तंत्र में, लापता बच्चों को खोजने में, उनके परिजनों से मिलाने में तथा अन्य उद्देश्यों को पूरा करने में कर सकेगें.
इन खूबियों के बावजूद कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इसका विरोध करते हुए- इसे स्थाई समिति के पास भेजने की माँग की,
और यह आशंका जताया कि- इससे डीएनए प्रोफाइलिंग का दुरूपयोग हो सकता है तथा सरकार और जनता के बीच शक्ति असंतुलन हो सकता है.