BY- THE FIRE TEAM
- हिन्दी विश्वविद्यालय में आरएसएस की लग रही है नियमित शाखाएं किन्तु बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस मनाने व पीएम मोदी को पत्र लिखने के कारण 6 बहुजन छात्रों को हिंदी विश्वविद्यालय ने किया निष्कासित।
- आचार संहिता की आड़ में हिन्दी विश्वविद्यालय प्रशासन बहुजन छात्रों को कर रहा है निष्कासित।
- चुनाव आचार संहिता में विश्वविद्यालय में गांधीजी की जयंती मनाई जा सकती है तो फिर बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने से विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र-छात्राओं को कैसे रोक सकता है।
महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस मनाने तथा पीएम मोदी को पत्र लिखने के कारण छह बहुजन छात्रों को विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया है।
निष्कासित किए गए छात्र नेताओं में चन्दन सरोज, रजनीश कुमार अंबेडकर, वैभव पिम्पलकर, राजेश सारथी, नीरज कुमार एवं पंकज बेला के नाम शामिल हैं।
गौरतलब हो कि निष्कासित किए जाने वाले सभी छात्र एससी व ओबीसी केटेगरी के ही हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इन छह निष्कासित छात्रों में एक छात्र ऐसा भी है जो वर्तमान में विश्वविद्यालय का छात्र तक नहीं है।
छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा रोके जाने के बावजूद मान्यवर कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस मनाया और पीएम मोदी को खत लिखा था।
छात्रों ने दलित-अल्पसंख्यकों के मोब्लिंचिंग; बढ़ते यौन हिंसा व बलात्कार; कश्मीर को दो माह से कैद किए जाने; रेलवे-बीपीसीएल-एयरपोर्ट आदि के निजीकरण; एनआरसी के नाम पर मुस्लिमों को टारगेट किए जाने तथा देशभर में आदिवासी-दलित नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं-लेखकों-बुद्धिजीवियों के दमन व उनपर राजद्रोह के मुकदमे दर्ज किए जाने को लेकर पीएम मोदी को पत्र लिखकर जवाब मांगा था।
इसी कारण से चुनाव आचार संहिता का बहाना बनाकर छह बहुजन छात्र नेताओं को निष्कासित किया गया है।
बताते चलें कि हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र-छात्राओं को बहुजन नायक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस मनाने की अनुमति नहीं दी।
9 अक्टूबर को छात्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव कार्यालय परिनिर्वाण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करने हेतु अनुमति लेने गए तो छात्रों को आधे घंटे तक कार्यालय में बिठाए रखा गया और अंत में उन्हें कार्यक्रम आयोजित करने की इजाजत नहीं दी गई।
इससे पूर्व 7 अक्टूबर को छात्र-छात्राओं ने देश के मौजूदा हालात पर पीएम मोदी को सामूहिक पत्र लेखन करने हेतु भी विश्वविद्यालय प्रशासन को सूचित किया था।
छात्रों के आवेदन के जवाब में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिपत्र जारी कर दिया गया था और विश्वविद्यालय की बिना अनुमति के विश्वविद्यालय परिसर में कोई कार्यक्रम करने पर अनुशासनिक कार्यवाही करने की धमकी दी थी।
7 अक्टूबर को विश्वविद्यालय द्वारा जारी इस परिपत्र में कहीं चुनाव आचार संहिता का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
निष्कासित बहुजन छात्र नेताओं ने विश्वविद्यालय के कुलपति पर दलित विरोधी-मनुवादी व तानाशाह होने का आरोप लगाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में कट्टर जातिवादी-ब्राह्मणवादी व साम्प्रदायिक संगठन आरएसएस को नियमित शाखा लगाने की खुली छूट दे दी गई है किंतु दलित-बहुजन व लोकतंत्र पसंद-न्याय पसंद छात्र-छात्राओं को अपने नायकों तक को श्रद्धांजलि देने पर निष्कासित किया जा रहा है।
जबकि विश्वविद्यालय में संघ-बीजेपी से जुड़े नेताओं की जयंती व पुण्य तिथि पर कार्यक्रम आयोजित करने की खुली छूट दे रखी है और इन कार्यक्रमों में कुलपति आए दिन स्वयं कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते व मंच शेयर करते नजर आते हैं।
पिछले दिनों शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती पर भी कुछ छात्र कार्यक्रम आयोजित करने हेतु सभागार के उपयोग की अनुमति लेने गए तो उन्हें भी झाँसेबाजी में रखकर कार्यक्रम आयोजित नहीं करने दिया गया था।
निष्कासित छात्र नेता चन्दन सरोज ने बताया कि विश्वविद्यालय में संघी कुलपति के आगमन के बाद से ही छात्र-छात्राओं के लोकतांत्रिक अधिकारों को लगातार कुचला जा रहा है। लगातार छात्रों के साथ तानाशाहीपूर्ण बर्ताव किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय द्वारा हमारा निष्कासन कुलपति रजनीश शुक्ला के इसी तानाशाही व मनुवादी रवैये को दर्शाता है। कुलपति विश्वविद्यालय पर संविधान के स्थान पर मनुविधान थोंपने की घृणित कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इससे पूर्व विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में जमकर धांधली हुई और बहुजन व प्रगतिशील छात्र-छात्राओं को परीक्षा में सफल हो जाने के बाद भी नामांकन से रोका गया और आरएसएस-एबीवीपी से जुड़े अयोग्य छात्र-छात्राओं को नामांकन दिया गया।
अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को बहुजन नायक कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने वाले बहुजन छात्रों को निष्कासित कर सारी हदें पार कर दी है। विश्वविद्यालय इस देश के सभी नागरिकों का है न कि बीजेपी-आरएसएस का।
9 अक्टूबर को दर्जनों छात्र-छात्राओं ने इकट्ठे होकर मान्यवर कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस मनाने के साथ-साथ देश के हालात पर पीएम मोदी को पत्र लिखा था।
इससे पूर्व देश की चार दर्जन नामी हस्तियों द्वारा पीएम मोदी को पत्र लिखने के कारण एक याचिका के जवाब में बिहार की एक अदालत ने देशद्रोह की धारा लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था।
इस अलोकतांत्रिक कार्रवाई का विरोध करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के दर्जनों छात्र-छात्राओं ने 9 अक्टूबर को विश्वविद्यालय कैंपस में इकट्ठे होकर पीएम मोदी को पत्र लिखा।
इस दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र-छात्राओं को पत्र लेखन करने से रोकने का भरपूर प्रयास किया।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने भारी संख्या में सुरक्षाबल को तैनात कर छात्र-छात्राओं को गांधी हिल के अंदर घुसने से रोका, जिसका छात्र-छात्राओं ने प्रतिवाद किया और गेट पर ही प्रतिरोध सभा की।
छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर आरोप लगाया कि विवि कैम्पस में साम्प्रदायिक नफरत और मनुवादी-यथास्थितिवादी समाज बनाने में लगे आरएसएस की शाखाएं नियमित रूप से लगाई जा रही हैं, किंतु लोकतंत्र, संविधान व न्याय में यकीन रखने वाले छात्रों को शांतिपूर्ण कार्यक्रम करने और देश की समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने तक से रोका जा रहा है।
छात्र-छात्राओं ने अपने पत्र में पीएम मोदी से देश के मौजूदा हालात के बरक्स कुछ मौजूं सवालों का जवाब मांगा है।
छात्र-छात्राओं ने देश में दलित-अल्पसंख्यकों के मॉबलिंचिंग से लेकर कश्मीर को पिछले दो माह से कैद किए जाने; रेलवे-बीपीसीएल-एयरपोर्ट आदि के निजीकरण; दलित-आदिवासी नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं बुद्विजीवी- लेखकों के बढ़ते दमन और उनपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने पर भी सवाल खड़े किए हैं।
छात्र-छात्राओं ने महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा व बलात्कार की घटनाओं पर भी पीएम मोदी से चुप्पी तोड़ने की अपील की थी।
निष्कासित छात्र नेता चंदन सरोज ने कहा कि देश में आज दलितों-अल्पसंख्यकों की मॉबलिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के लिए बीजेपी-RSS जैसे संगठन जिम्मेवार है। बीजेपी-RSS के नेता मॉबलिंचिंग करनेवालों को सम्मानित करते रहे हैं।
एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नफरत फैलाने वालों को आज केन्द्र-राज्य की सरकारों में अहम ओहदे पर बिठाने का भी काम आरएसएस-बीजेपी ने ही किया है।
ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार के मुखिया होने के नाते पीएम मोदी की ही यह जिम्मेदारी है कि वे इन घटनाओं पर रोक लगाएं, इसके खिलाफ सख्त कानून बनाएं।
दूसरे निष्कासित छात्र नेता रजनीश कुमार अंबेडकर ने कहा कि आज देश में बलात्कार और यौन हिंसा के मामले थमने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। कुलदीप सेंगर से लेकर चिन्मयानंद जैसों को बचाने में सरकार ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
उन्होंने कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार महिला सुरक्षा के मुद्दे पर पूरी तरह बेनकाब हो चुकी है।
रजनीश ने कहा कि बलात्कारियों के पक्ष में जुलूस तक निकाले जा रहे हैं इसलिए हम प्रधानमंत्री से उम्मीद करते हैं कि वे महिलाओं पर जारी यौन हिंसा-बलात्कार को रोकने हेतु सख्त कदम उठाएं।
आगे उन्होंने कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए कश्मीर से जिस प्रकार धारा-370 हटाया गया और यह कहा गया कि इससे कश्मीर के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी होगी।
उन्होंने कहा कि आज दो माह से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी कश्मिरीयों को कैद कर रखा गया है. वहां आज भी कर्फ्यू जैसे हालात क्यों हैं? इसका पीएम मोदी को जवाब देना होगा।
अन्य निष्कासित छात्र नेता वैभव पिम्पलकर व पंकज बेला ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ रेलवे, बीपीसीएल, एयरपोर्ट से लेकर कई अन्य राष्ट्रीय महत्व के उद्दमों को पूंजीपतियों के हाथों बेच रही है।
सरकार देश के विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है और स्थिति यह है कि रिजर्व बैंक से लेकर अन्य बैंक कंगाली की तरफ बढ़ रहे हैं।
कंपनियों में नौकरी करनेवालों की बड़ी पैमाने पर छंटनी हो रही है. बेरोजगारी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। छात्र-युवाओं के भविष्य के साथ किए जा रहे इस खिलवाड़ का प्रधानमंत्री मोदी को सामने आकर जवाब देना चाहिए क्योंकि उन्होंने प्रतिवर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का देश की जनता से वादा किया था।
जब इन सवालों पर छात्र-छात्राएँ पीएम को पत्र लिखने के लिए एकत्रित होते हैं तो चुनाव आचार संहिता का बहाना बनाकर उन्हें निष्कासित कर दिया जाता है।
दोनों छात्र नेताओं ने कहा कि चुनाव आचार संहिता में विश्वविद्यालय में गांधीजी की जयंती मनाई जा सकती है तो फिर बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने से विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र-छात्राओं को कैसे रोक सकता है। इससे विश्वविद्यालय प्रशासन का दलित-बहुजन विरोधी चरित्र उजागर होता है।
निष्कासन सूची में शामिल पूर्ववर्ती छात्र राजेश सारथी ने कहा कि सरकार ने आदिवासी नेता सोनी सोरी, दलित नेता चंद्रशेखर से लेकर दर्जनों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व लेखकों-बुद्धिजीवियों के खिलाफ खनिज लूट एवं अन्याय-उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होने के एवज में लगातार दमन चक्र चला रखा है।
लोगों के नागरिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है। देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं जबकि सरकार कॉरपोरेट घरानों को लाखों करोड़ रूपये की छूट दे रही है और इस पर सवाल उठाने वालों पर देशद्रोह के मुकदमे लगाकर उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।
निष्कासित छात्र नेता नीरज कुमार ने कहा कि केन्द्र सरकार नागरिकता संशोधन कानून को सामने लाकर मुसलमानों में खौफ पैदा कर रही है. कई पीढ़ियों से किसी जगह पर रह रहे आम लोगों को लगातार भयभीत किया जा रहा है।
देश के गृहमंत्री धर्म के आधार पर मुस्लिमों को नागरिकता के मामले में टारगेट कर देश-समाज में हिंसा, नफरत व अशांति फैला रहे हैं। प्रधानमंत्री को ऐसे गंभीर मामले में संज्ञान लेना चाहिए. यह देश सभी धर्म के लोगों का है।
भारत का संविधान जाति, धर्म, वर्ण, लिंग, संप्रदाय के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है. पीएम को संविधान के इन मूल्यों की रक्षा करनी होगी।
छात्र-छात्राओं ने पीएम मोदी से उक्त सभी अहम सवालों का माकूल उत्तर देने की अपील की थी। छात्र-छात्राओं ने कहा है कि यह देश हमारा है और देश को हम इस कदर बर्बाद होते हुए देखकर चुप नहीं बैठ सकते हैं। हमें पीएम मोदी से सवाल पूछने का संवैधानिक अधिकार है।
निष्कासित छात्र नेताओं ने विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस निष्कासन को द्रोणाचार्य द्वारा एकलब्य के अंगूठे काटने के समान बताया है और कहा है कि हम इसके खिलाफ विश्वविद्यालय के अंदर और न्यायालय दोनों मोर्चे पर लड़ेंगे।
एक खास विचारधारा से तालुक रखने वाले विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों के संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक अधिकारों के अपहरण को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
निष्कासित छात्र नेताओं- चन्दन सरोज, रजनीश कुमार अंबेडकर, वैभव पिम्पलकर, राजेश सारथी, नीरज कुमार एवं पंकज बेला द्वारा जारी।
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