BY-THE FIRE TEAM
प्राप्त सूचना के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसा चौंकाने वाला निर्णय दिया है जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अप्रतक्ष्य रूप से प्रश्न खड़ा करता है. आपको बता दें कि इस सम्ब्नध में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है-
प्रेमिका से शारीरिक संबंध स्थापित करने के बाद उसको छोड़ देने की बात चाहें जितनी बुरी हो किन्तु बावजूद इसके अब यह अपराध नहीं माना जायेगा.
क्योंकि यौन संबंधों पर सहमति ‘न’ से बढ़कर ‘न’ नहीं बल्कि ‘हाँ’ के रूप में व्यापक हो गया है. दरअसल न्यायालय ने इस तरह का फैसला दुष्कर्म के मामले में दायर एक अपील पर अभियुक्त को बरी करते हुए दिया है.
चूँकि दोषी व्यक्ति को जब निचली अदालत ने दोष मुक्त कर दिया तब पीड़िता ने उच्च न्यायालय में न्याय की गुहार लगाई. किन्तु अब इस न्यायालय ने अभियुक्त को न केवल बरी किया बल्कि निचली न्यायालय की निर्णय को भी सही करार दिया है.
उसने बताया है कि-दो व्यस्क आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो इसे दंडनीय नहीं ठहराया जा सकता है.
अब विचारणीय पहलू यह है कि भारत के संदर्भ में पुरुष वर्ग सबसे पहले किसी भी महिला के कौमार्य परीक्षण की बात करता है. ऐसे में कोई महिला अपने वादे को कितना निभा पायेगी यह अजीब लगता है.
चूँकि भारतीय परिप्रेक्ष्य में कोई भी स्त्री स्वयं को तभी किसी व्यक्ति के हवाले करती है जब उसे वह अपना जीवन साथी यकीं कर लेती है. पीड़ित महिला के मामले में भी यही हुआ है.
क्योंकि उस पुरुष ने उसे शादी का प्रलोभन दिया था, किन्तु न्यायालय ने उस महिला के इस तर्क को तकनीकी रूप से मानने से इंकार कर दिया है.