BY-SAEED ALAM KHAN
भारत के लिए यह बिलकुल गर्व की बात है कि संविधान निर्माताओं ने इस विविधतावादी देश को एकता के जिस सूत्र में पिरोया वह अभी तक अनेक चुनौतियों को झेलते हुए सफलतापूर्वक चल रहा है.
अंग्रजों से आजादी प्राप्त करने के बाद यह एक बड़ा मसला था कि आखिर कैसे देश को बेहतर और सकारात्मक दिशा दी जाये? चुँकि हमने (देशवासियों) प्राचीन काल से लेकर
आधूनिक समय तक शासन के कई रूप जैसे राजतन्त्र, सैन्यतंत्र, तानाशाही तथा प्रजातंत्र आदि किन्तु इनमें भेदभाव और जातिवाद का अंश था, जिसके कारण लोगों में भारी असमानता विद्यमान थी.
यही वजह है कि विदेशी आतताइयों ने न केवल हमारा शोषण किया बल्कि हम पर अनेक अत्याचार भी किया. देश के बहुजनों की (यानि दलित, दमित, शोषित कामगार वर्ग) जो सबसे बड़ी दिक्कत देखने को मिलती है
कि वे खुद यहीं के संप्रभु कही जाने वाली उच्च जाति ब्राह्मण और क्षत्रिय रहे जिन्होंने अपने ही लोगों के साथ जानवर से भी बुरा सलूक किया और सताने के जितने भी अस्त्र और औजार हो सकते थे उसको अपनाया.
यही वजह है कि स्वतंत्रता संघर्ष में किसानों, मजदूरों, सन्यासियों, आदिवासियों इत्यादि का विद्रोह और हथियार उठाना पहले अंग्रेजों के विरुद्ध नहीं रहा बल्कि खुद क्षत्रियों और ब्राह्मणों के लिये हुआ.
दरअसल, इन सभी तरह के अत्याचार को धार्मिक रूप से प्रमाणित करके शोषण का जो ताना- बाना बुना गया वह आजादी के बाद बने ‘नए भारत’ के निर्माण की बड़ी बाधा थी.
इस पीड़ा को संविधान सभा ने गहराई से महसूस किया और अब जो भारत बनने जा रहा था उसपर कोई जोखिम नहीं लिया.
अतः डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर के नेतृत्व में सभी खामियों को दूर करने के लिए एक ऐसा संविधान बना जिसने सभी प्रकार ऊंच-नीच के भाव चाहे धार्मिक हो अथवा सामाजिक
उसको समाप्त करके समानता का अधिकार दिया गया. आज यह संविधान की ताकत का ही परिणाम है कि बाघ और बकरी दोनों एक ही घाट पर पानी पीने में सक्षम हो सके हैं.
किन्तु 26 नवम्बर, 1949 से संविधान के अपनाये जाने से लेकर वर्तमान समय तक ऐसे बहुत से अवसर आये जब विधाइका(संसद) ने इसके प्रावधानों में संसोधन कर दिया.
संविधान में पहला संशोधन 1951 में किया गया और अभी तक 101 संशोधन किये जा चुके हैं. यह वर्ष 2017 में किया गया था जिसका मूल विषय बहुस्तरीय और अप्रत्यक्ष टैक्स प्रणाली को समाप्त करके पुरे देश में एक समान कर प्रणाली यानि जीएसटी को लागू किया गया.