BY- THE FIRE TEAM
उत्तर प्रदेश में एक ऐसा मामला सामने आया है जो सामाजिक न्याय के लिए किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
यहाँ बच्चों के कल्याण एवम POSCO पीड़िताओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए काम करने वाली बाल कल्याण समितियों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उसका सेवा विस्तार न करके उसके कार्यों को ही दूसरे कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को सौंप दिया गया।
हरदोई में समिति के अध्यक्ष शिशिर गौतम कहते हैं कि सेवा विस्तार के लिए प्रत्यावेदन नियम 88(6) के अंतर्गत पहले ही किया जा चुका है। इसके बावजूद समिति के कार्य को प्रशासन के कुछ अधिकारियों तक सीमित कर दिया गया।
वह कहते हैं कि पूरे सूबे की समितियों ने मिलकर प्रदेश व सम्पूर्ण देश के बच्चों के लिए काफी कार्य किये। इसमें देश के अन्य प्रदेश से आये गुमशुदा बच्चों को उनके माता-पिता, परिवार तक पहुंचाना भी शामिल हैं।
शिशिर ने बताया कि हमने इस निर्णय के विरुद्ध कोर्ट में याचिका भी दायर की। कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा है कि जब तक नई समिति नहीं बन जाती तब तक वर्तमान स्थिति के अनुसार ही कार्य होगा।
कोर्ट के निर्णय के अनुसार वर्तमान समिति के ही पास कार्य करने के अधिकार होने चाहिए।
समिति के अध्यक्ष द्वारा यह भी कहा गया कि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम 2015 व आदर्श नियमावली 2016) के नियमों में जो विसंगतियां हैं व जो प्रावधान बाल हितों के विरुद्ध हैं उनको माननीय न्यायालय में पुनः याचिका दायर कर निरस्त कराये जाने की कोशिश की जाएगी।
उन्होंने कहा कि इस तरह जनपद, प्रदेश व देश के बच्चों को उचित संरक्षण प्राप्त हो सके।
समिति के एक सदस्य गिरीश कुमार द्विवेदी ने हमको बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार कार्यभार नहीं सौंप रही है।
उन्होंने कहा, 12 फरवरी 2020 को एक आदेश के माध्यम से समितियों को मान्यता प्राप्त हुई। अब कोई कारण नहीं है जो पुनः समितियों को कार्यभार न सौंपा जाए।
गिरीश आगे बताते हुए कहते हैं कि हमारे कार्य सरहानीय थे। हमने बच्चों के कल्याण के लिए पूरा जोर दिया। इससे काफी परिवार लाभान्वित भी हुए। सरकार को चाहिए था कि वह हमारे लिए कुछ बेहतर करती।
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