BY- सलमान अली
दिल्ली चुनाव पर पूरे देश की नजर थी। बीजेपी 20 साल के लंबे अर्से बाद सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं छोड़ना चाहती थी। आप अपने काम को दिखा कर राजनीति को नई दिशा देना चाह रही थी।
चुनाव के एक महीने पहले तक न तो बीजेपी फाइट में थी और न ही कांग्रेस। कांग्रेस ने तो कहीं न कहीं हथियार ही डाल दिये थे। लेकिन बीजेपी के पास उसका सबसे मजबूत हथियार अभी भी मौजूद था जो सबको धूल चटा सकता था। आखिर में बीजेपी ने उसका इस्तेमाल करना शुरू भी कर दिया।
मॉडल टाउन से प्रत्याशी कपिल मिश्रा ने इसकी शुरुआत पाकिस्तान और भारत का चुनाव बता कर की। बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा ने गोली मारने की बात कहकर की।
अंत में गृह मंत्री ने ईवीएम का करेंट शाहीन बाग तक पहुंचाने वाली बात कहकर इसको और बढ़ाया। केजरीवाल को एक केंद्रीय मंत्री द्वारा आतंकवादी कहा जाना इस चुनाव की सबसे घटिया बयानबाजी थी। शायद यहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी को अपने मंत्री से जवाब तलब करना चाहिए था।
ऐसा करते तो जो दिल्ली की जनता केजरीवाल के काम से खुश थी वह बीजेपी से उतनी खफा न होती जितनी हुई। प्रधानमंत्री मोदी के प्रति भी लोगों का विश्वास बढ़ता लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और बीजेपी का वोट भी केजरीवाल को चला गया।
चुनाव खत्म होते-होते राम और हनुमान जी को आपस में ही उलझा दिया। इस बार केजरीवाल भी कूद गए।
मनोज तिवारी जिस प्रकार से नोटबन्दी को नोटबदली बताने लगे उससे लोगों के अंदर एक और अविश्वास पैदा हुआ कि केजरीवाल की जगह ये मुख्यमंत्री क्या करेंगे दिल्ली का?
खैर चुनाव दो ही मुद्दों पर लड़ा गया। एक विकास जो केजरीवाल के पास था, दूसरा नफरत। बीजेपी ने नफरत के अलावा दिल्ली में जमीनी स्तर पर कहीं भी चुनाव नहीं लड़ा। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, कई प्रदेशों के बीजेपी के मुख्यमंत्री सब के सब बस पाकिस्तान, धारा 370 और तीन तलाक तक सीमित हो गए।
दिल्ली के बुनियादी मुद्दों से बीजेपी बहुत दूर खड़ी थी। यहां तक कि उसके घोषणा पत्र में क्या है यह बीजेपी के कार्यकर्ताओं को ही नहीं पता था तो वह जनता को कैसे बताते। मतलब बस नफरत ही पता थी, उसी का प्रचार था, उसी को जनता तक पहुंचाना था।
दिल्ली की जनता भी कुछ हद तक समझदार निकली। उसको लगा जितने मुद्दे आप गिना रहे हैं इसके लिए तो हमने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर आपको सांसद जिता दिए थे। अब दिल्ली का चुनाव है तो दिल्ली की बात होनी चाहिए।
शायद बीजेपी जनता के इस मूड को नहीं समझ पाई। और जो नफरत उसने बोया दिल्ली के चुनाव में, उसी नफरत ने उसे हरा दिया।