BY- शशांक पटेल
“हम सभी आज इंटरनेट से ठीक उसी प्रकार जुड़ गए जैसे किसी विशाल मस्तिष्क में न्यूरॉनस।” …. स्टीफन हॉकिंग
इंटरनेट लाखों लोगों के लिए सूचना का प्राथमिक स्रोत है और जिसके माध्यम से लोगों के पास अनंत मात्रा में जानकारी उपलब्ध है। आज इंटरनेट के बिना दुनिया की कल्पना करना भी लगभग असंभव है।
आधुनिकता के इस युग में इंटरनेट विचारों को व्यक्त करने और विभिन्न व्यापार करने का एक माध्यम बन गया है।
चूंकि इसमें लाखों लोगों का आवागमन है इसलिए इंटरनेट के माध्यम से कैसी भी जानकारी आसानी से फैलाई जा सकती है। इसी कारण से नेट पर आज सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की जानकारी फैली हुई है ।
इस कारण से जब भी किसी घटना के चलते आम लोगों की सुरक्षा पर खतरा होता है तब सरकार उस क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के लिए बाध्य हो जाती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर राज्य को स्वायत्तता का दर्जा दिया था। जिसे 5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति के आदेश से निरस्त कर दिया गया।
अनुछेद 370 ने जम्मू–कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया, इसलिए इसके निरस्तीकरण का बहुत अधिक विरोध भी हुआ। वहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा था और पाकिस्तान के शामिल होने के कारण यह मामला अत्यधिक संवेदनशील था।
राष्ट्रीय सुरक्षा को मद्यनजर रखते हुए सरकार ने इंटरनेट सेवाओं को 5 अगस्त 2019 से अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया जो 10 जनवरी 2020 तक चला।
कश्मीर क्षेत्र में इंटरनेट लॉकडाउन ने लाखों लोगों के जीवन को बुरी तरह से बाधित कर दिया, इससे विद्यार्थी, बैंक और छोटे से लेकर बड़े व्यवसायी प्रभावित अत्यधिक हुए।
डिजिटल अधिकार समूह एक्सेस के अनुसार, कश्मीर में इंटरनेट बंद करना, जो कि 150 दिनों से अधिक समय से जारी था, किसी भी लोकतंत्र में सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन था।
अचानक इंटरनेट बंद होने से उन छात्रों और अन्य लोगों का जीवन भी प्रभावित हुआ जिनके व्यापार और व्यवसाय इंटरनेट पर निर्भर थे।
उपरोक्त आधारों पर गुलाम नबी आज़ाद और अन्य ने अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कि उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।
फहीमा शिरीन आर.के. बनाम केरल राज्य
इस मामले में केरल उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में ‘राइट टू एक्सेस इंटरनेट’ को मौलिक अधिकार माना था।
कोर्ट ने कहा की इंटरनेट का अधिकार शिक्षा के अधिकार का एक अंग बन गया है और इसके साथ–साथ यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिये गए गोपनीयता के अधिकार का भी हिस्सा बन गया है।
गुलाम नबी आज़ाद केस का विश्लेषण:
कपिल सिब्बल:
इस तरह के प्रतिबंध न केवल व्यक्तियों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार को प्रभावित करते हैं बल्कि यह उनके व्यापारिक अधिकार पर भी प्रतिबंध है।
इसलिए, कम प्रतिबंधात्मक उपाय जैसे कि केवल सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी मीडिया वेबसाइटों प्रतिबंधित किया जाना चाहिए था न कि पूरे इंटरनेट को।
जैसे पहले भी भारत में मानव तस्करी और बाल पोर्नोग्राफ़ी वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगाते समय किया गया था। यहां पर कम से कम प्रतिबंधात्मक उपाय पर जोर दिया गया था।
मीनाक्षी अरोड़ा:
अनुच्छेद 19 और 21 पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य की कार्रवाई में पांच आवश्यक विशेषताएं प्रदर्शित हों:
- एक ‘कानून’ का समर्थन
- उद्देश्य की वैधता
- अधिनियम और वस्तु का तर्कसंगत संबंध।
- कार्रवाई की आवश्यकता।
- आनुपातिकता की परीक्षा।
ओडिसी कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम लोकविद्या संगठन में, नागरिकों द्वारा दूरदर्शन पर फिल्मों का देखना मौलिक अधिकार बताया गया जिसकी नियम व शर्तें दूरदर्शन के अधीन हैं।
अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिसे अनुच्छेद 19 (2) के तहत निर्धारित परिस्थितियों में ही बंद किया जा सकता है।
आईटी अधिनियम, 2000 और आईटी नियम, 2009:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 ए के साथ पढ़े गए सूचना प्रौद्योगिकी (प्रक्रिया और सूचना के प्रवेश के लिए अवरोधन के लिए सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध करने की अनुमति देता है।
यहां पर न्यायालय ने, श्रेया सिंघल केस में, इस धारा की संवैधानिक वैधता और उसके तहत बनाए गए नियमों को बरकरार रखा। हालांकि संचालन में यह खंड दायरे में सीमित है।
अनुभाग का उद्देश्य पूर्ण रूप से इंटरनेट को प्रतिबंधित / ब्लॉक करना नहीं है, लेकिन केवल इंटरनेट पर विशेष वेबसाइटों तक पहुंच को अवरुद्ध करना है। इसलिए, सरकार द्वारा इस खंड के तहत आम तौर पर इंटरनेट को प्रतिबंधित करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
निर्णय:
किसी भी काउंसल ने इंटरनेट को मौलिक अधिकार मानने की घोषणा करने के लिए कोई तर्क नहीं दिया है, और इसलिए अदालत ने इस पर कोई विचार व्यक्त नहीं किया है।
कोर्ट ने घोषित किया कि इंटरनेट के माध्यम का उपयोग करते हुए अनुच्छेद 19 (1) (ए) तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत व्यवसाय करने अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है।
निष्कर्ष:
इंटरनेट व्यापार और वाणिज्य के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है। भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण और सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति ने बड़े व्यापारिक रास्ते खोले हैं जिसने भारत को एक वैश्विक आईटी हब के रूप में बदल दिया है।
कुछ ट्रेड हैं जो पूरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर हैं। इंटरनेट के माध्यम से व्यापार का ऐसा अधिकार उपभोक्तावाद और उपलब्धता को भी बढ़ावा देता है।
इसलिए, इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य भी संवैधानिक रूप से संरक्षित है और अनुच्छेद 19 (1) (जी), अनुच्छेद 19 (6) के तहत दिए गए प्रतिबंधों के अधीन है।
READ- गुलाम नबी आजाद मामले के संबंध में इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार
लेखक- शशांक पटेल (LL.B (ऑनर्स) विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय)
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