BY-THE FIRE TEAM
वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित बंगा नामक स्थान पर वर्ष 1907 में जन्म लेने वाले भगत सिंह का भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में वह बड़ा नाम है जिन्होंने अपनी गतिविधियों एवं विचारधारा के माध्यम से देशवासियों को अप्रत्यक्ष प्रेरणा दिया.
‘जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर केवल जनाजे उठाये जाते हैं जैसे प्रसिद्ध वक्तव्य को भगत सिंह ने ही दिया था. केन्द्रीय असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ की बैठक के दौरान बम फोड़ने वाले भगत सिंह ने भागने का प्रयास नहीं किया बल्कि स्वयं को ब्रिटिश सरकार के हवाले कर दिया, हालाँकि अगर वे चाहते तो भाग सकते थे.
उन्होंने खुद की गिरफ़्तारी देते हुए बताया कि मेरा इरादा किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था बल्कि बहरे कानों (ब्रिटिश हुकूमत) तक अपनी बात पहुंचानी थी.
आजादी की लड़ाई से लेकर आज तक की रैलियों, धरना प्रदर्शनों, आन्दोलनों में प्रयोग किया जाने वाला नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ को दिया तो इक़बाल ने था किन्तु इसे लोकप्रिय बनाने का कार्य भगत सिंह ने किया था.
लाहौर षड्यंत्र केस के तहत भगत सिंह को अभियुक्त बनाने वाली ब्रिटिश सरकार ने आज ही आज ही के दिन 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह और उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ फाँसी के फंदे से लटका दिया था. इस समय भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की अवस्था में थे.
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तब से लेकर आज तक हमारा देश उनकी इस क़ुरबानी को शहादत दिवस के रूप में मनाता है.
आजादी के दीवानों की सूचि में शामिल भगत सिंह का कहना था कि व्यक्ति को तो मारा जा सकता है किन्तु उसके विचारों को नहीं क्योंकि वे शतत और सदैव जिन्दा रहते हैं.
आजादी की अलख जगाने तथा देश में व्याप्त सामाजिक बुराइयों जैसे जातिपाँत, छुआछूत, धार्मिक अन्धविश्वास आदि से उनका मन हमेशा खिन्न रहता था. यही वजह है कि उन्होंने स्वयं को नास्तिक तक बताया.
अपने विचारों को प्रसारित करने के लिए इन्होंने ‘मै नास्तिक क्यों हूँ’ जैसी पुस्तक भी लिखा. अपनी क्रन्तिकारी सोच को विस्तृत करने के लिए भगत सिंह ने ‘नवजवान भारत सभा, ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिशन’ का गठन किया.