BY- श्याम मीरा सिंह
अमेरिका में पुलिस प्रमुख ने कहा है कि “ट्रम्प जब कुछ अच्छा नहीं बोल सकते तो अपना मुंह बंद रखें. ऐसी स्थिति में नागरिकों को हैंडल करना मुश्किल होता है.
” जब ट्रम्प ने नागरिकों को दबाने के लिए आर्मी का इस्तेमाल किया तो आर्मी के शीर्ष अफसरों ने पत्र लिखकर कहा है “हमने संविधान बचाने की शपथ ली थी, ट्रम्प को बचाने की नहीं”
डेमोक्रेसी तमाम देशों में है लेकिन एक मैच्योर डेमोक्रेसी क्या होती है वह इन बातों से समझा जा सकता है. एक पुलिस अफसर, एक आर्मी अफसर के लिए वहां ऐसा कहना सम्भव है, क्योंकि वहां के इंस्टीट्यूशन्स मजबूत हैं.
हमारे देश भारत में तो रिजर्व बैंक भी पीएमओ (PMO) चला रहा है, इलेक्शन कमीशन भी PMO चला रहा है, न्यायपालिका भी पीएमओ चला रहा है, ईडी (ED) भी पीएमओ चला रहा है.
सीबीआई (CBI) भी PMO चला रहा है, NIA भी PMO चला रहा है, सेंट्रल Universities भी PMO चला रहा है, Media Houses भी PMO चला रहा है.
कोई स्वायत्तता ही नहीं है संस्थानों की, कोई चेक्स एंड बैलेंस ही नहीं है केंद्रीय सत्त्ता पर. शक्ति का केंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए सही नहीं है.
लोकतंत्र का अर्थ ही शक्तियों का विकेंद्रीकरण है जिसे अंग्रेजी में Decentralisation कहते हैं. प्रधानमंत्री मोदी की यही शैली रही है,
जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनके मंत्रियों की औकात विधायक सरीकी नहीं थी, प्रधानमंत्री अपने आसपास अपने कुछ पसन्दीदा नौकरशाहों से घिरे रहते हैं उन्हीं के बल पर नागरिकों,
संस्थानों पर सर्विलांस करते हैं. आप प्रधानमंत्री की मंत्रिपरिषद के ताकतवर मंत्रियों के नाम याद करिए..…. आपको याद ही नहीं आएंगे,
क्योंकि मोदी-शाह के आमने-सामने ताकतवर मंत्री जैसा कोई कांसेप्ट ही नहीं है. आपके जनप्रतिनिधियों की कोई औकात नहीं है आपके प्रधानमंत्री के सामने.
मोदी अपने आसपास किसी ताकत को पनपने ही नहीं देते, इसके अलावा उन्हें देश की सभी शक्तियों, संस्थानों पर नियंत्रण करने का एक अलग तरह का ओब्सेशन है.
अमेरिका में चुनावों के बाद राष्ट्रपति बदलता है बाकी चीजें राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण के लिए यथावत बनी रहती हैं, लेकिन हमारे यहां चुनावों के बाद प्रधानमंत्री ही नहीं बदलता
बल्कि उसके साथ राज्यपाल, गवर्नर, कैग, डीएम, एसपी, थानेदार, एसआई यहां तक कि प्राइमरी स्कूलों के प्रिंसिपल तक बदल जाते हैं.
जो लोग सरकार की दया पर नौकरी पाएं हों वे सरकार के विरुद्ध किस बल पर बोल सकते हैं? यही चीज अमेरिकी लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र को अलग बनाती है.
वहां सेना प्रमुख, पुलिस प्रमुख इसलिए ये सब बोल पाते हैं क्योंकि वहां उन्हें नौकरी जाने का खतरा नहीं है. हमारे यहाँ कोई प्राइमरी का टीचर
बच्चों को “ल” से “लोकतंत्र” भी बता दे तो अगले दिन नौकरी चली जाती है। यही अंतर है एक डैमोक्रेसी और मैच्योर डेमोक्रेसी में.
अब आप खुद ही तय कर लीजिए अपने ही लोकतंत्र में एक नागरिक के रूप में आपकी औकात क्या है? आप भक्त भी हैं तब भी विचार कीजिए, लेफ्टी, कांग्रेसी, सपाई, बसपाई हैं तब भी विचार कीजिए.
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं इसका thefire.info से कोई वास्ता नहीं है)