साहित्य सृजन उत्साह-उमंग के चरण से चलकर अन्तर्दर्शन तक व्याप्त है: प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

BY- Dr R. P. Singh

कोविड काल में साहित्य सृजन उत्साह , उमंग और राग (फेज ऑफ़ एंथुज़ियस्म) के दौर से चलकर विरोधाभास (फेज ऑफ़ पैराडॉक्स ), समीक्षात्मक संवेदना (फेज ऑफ नेगोशिएशन ) से होते हुए वर्तमान में अन्तर्दर्शन (फेज ऑफ़ इंट्रोस्पेक्शन ) के चरण में पहुँच चुका है.

अंग्रेजी साहित्य के विभिन्न पाठों की समीक्षा करते हुए ये बातें मुंबई विश्वविद्यालय से सम्बद्ध भवन हजारीमल सोमानी कॉलेज चौपाटी मुंबई कॉलेज द्वारा आयोजित

राष्ट्रीय वेबिनार “रेफ्लेक्शंस ऑन द पोस्ट कोविड लिटरेरी सेनारिओ ” में लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के अंगेज़ी विषय के प्रोफेसर रवीन्द्र प्रताप सिंह ने अपने प्लेनरी व्याख्यान में कही.

प्रोफेसर सिंह ने बताया कि भारत में महामारी कोविड के आरम्भिक लक्षण काल से लगातार वह विभिन्न माध्यमों द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी साहित्य पर नज़र रख रहे हैं,

मात्र जर्नल और पत्र पत्रिकाओं या पुस्तकों में ही प्रकशित साहित्य में ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर प्रकाशित रचनाओं में भी गहरी संवेदनशीलता दृष्टिगत है.

उन्होंने बताया कि अभी यह कहना कि उत्तर कोविड साहित्य कैसा होगा, थोड़ी जल्दबाज़ी होगी. हम इस महामारी पर विजय प्राप्त कर रहे हैं,

किन्तु इस विजय के मूल्य क्या होंगे, इन पर भी साहित्य की विमाओं का निरूपण एवं निर्माण होगा. उन्होंने कोविड महामारी पर राष्ट्र विजय की चर्चा करते हुए सम्राट अशोक की कलिंग विजय

एवं समुद्रगुप्त की विजयों एवं प्रशस्तियों की भी चर्चा किया. उन्होंने सम्भावना व्यक्त किया कि आने वाले दिनों में विश्वविद्यालयों में कोविड साहित्य पर शोध होंगे

और बड़ी तीव्र गति से कोविड सम्बन्धी साहित्य विभिन्न विधाओं एवं विषयों में लिखा जायेगा. जहाँ तक अंग्रेजी और हिंदी साहित्य का प्रश्न है,

उत्तर कोविड दौर में ये इनोवेटिव, इंटरडिसिप्लिनरी और पॉलिटिकली इंगेज़्ड रहेगा. पॉपुलर कल्चर और पॉपुलर सहित्य की अधिकता और नियो रोमांटिसिज्म के उदय को भी नाकारा नहीं जा सकता.

वर्तमान कोविड काल ने मानव को जीवन की क्षणभंगुरता एवं आशंकाओं आदि से भली भांति परिचित करा दिया है. प्रोफेसर सिंह ने ये भी बताया कि-

इस दौर में दो तरह के साहित्य लिखे जा रहे हैं, उत्पादित एवं विकसित. उत्पादित साहित्य बाजार की गतियों के अधीन है और विकसित साहित्य एटीएम चिंतन एवं संवेदना के…..

Dr R. P. Singh
Professor of English
Department of English and
Modern European Languages
University of Lucknow

 

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