शैशवावस्था के बाद की वह आयु जिसमे न किसी प्रकार की चिंता और जिम्मेदारी की फ़िक्र होती है और न ही कोई जवाबदेही सिर्फ मस्ती ही मस्ती लूटी जाती है.
यह बहुत ही अजीब है कि जिन बच्चों के हाथों में किताबें, कलम और बसते होने चाहिए थे आज वे गरीबी और लाचारी के कारण कूड़े उठाने के बकेट और पेचकस, पिलास आदि लेने के लिए विवश हैं.
किन्तु जब इसी आयु वर्ग के बालक खतरनाक कामों से लेकर सामान्य कामों में 14 वर्ष से कम आयु के वे सभी बच्चे जो किसी भी मजबूरी अथवा प्रताड़ना के कारण मजदूरी करने के लिए बाध्य होना पड़ता है.
इस बुराई को लेकर आश्चर्यजनक पहलू यह है कि बालश्रमनिषेध दिवस हर साल 12 जून को आता है और हम सभी के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री और सभी राज्य के मुख्यमंत्री अपने दावों और वादों को
On World Anti-Child Labour Day, let’s take a pledge to support the children who are living away from their families because of the people who force them to work.#AntiChildLabourDay pic.twitter.com/GuDNROY3KE
— अर्वाचीन INDIA SCHOOL (@ArwachinIndia) June 12, 2020
दुहराते हुए एक सुर में यही गाते हैं कि हम देश में व्याप्त बालकों से जुड़े इस कलंक को जरूर मिटा देंगे किन्तु विडंबना देखिये कि ‘वही नौ दिन चले अढ़ाई कोश’ यानि
स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है और अगले साल भी यही पुनरावृत्ति होगी. लेकिन सवाल यह है क्या वाकई में बालश्रम से व्यापारियों को मुनाफा होता है जिससे वे बाल श्रम के जिम्मेदार हैं?
हम और आप सभी रोजाना देखते हैं इस दृश्य को पर कानून का कितना पालन होता है? इनके हित में क्या योजनाएं हैं? जो इनके पास पहुंचती हैं तथा इसकी रोकथाम करें.?