BY-SAEED ALAM KHAN
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय में हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा देकर भारत की जमीन हड़पने वाले देश चीन ने 1962 के बाद पुनः उसी नीति को दुहराने का कार्य किया है, हालांकि वह शायद भूल गया है कि आज वर्ष 2020 में 1962 वाली स्थिति नहीं है.
गलवान घाटी में भारत के साथ धोखाधड़ी करते हुए चीन ने जिस कायराना हरकत को अंजाम देते हुए 20 भारतीय सैनिकों को पत्थरों, तारों से मारकर शहीद किया है उसका बदला लेने के लिए अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने कूटनीतिक नीति को लागू करने का फैसला लिया है.
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यही वजह है कि भारत ने इंडो-तिब्बत सीमा की सुरक्षा को खँगालने के साथ सिक्किम, अरुणाचल वाले क्षेत्रों की भी समीक्षा कर रहा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अगस्त 2019 में भारत और चीन ने चार समझौतों को साइन किया था,
जिसको लेकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी अधिकारी वांग वी के मध्य बैठक हुई थी. इसके तहत खेल को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने,
संग्रहालयों को विकसित करने तथा सांस्कृतिक संबंधों को ठोस बनाने की बात कही गई थी, किन्तु एक वर्ष के भीतर ही चीन ने भारत के साथ धोखा करके अपने असली रूप को दिखा दिया है.
यहाँ आपको बता दें कि चीन दरअसल आर्थिक लाभ को केंद्र में रखकर अपनी हर नीति को संचालित करने का कार्य करता है. वर्तमान सन्दर्भ में दुनिया में कोरोना रूपी जिस महामारी का विस्तार हुआ है उसके कारण चार लाख से ऊपर लोगों ने असमय अपनी जान गवां दी है.
जहाँ एक तरफ दुनिया के अधिकतर देशों ने चीन को घेरते हुए कहा है कि ऐसा उसने अंतर-राष्ट्रीय व्यापार को अपने पक्ष में करने के लिए किया है,
वहीं अमेरिका ने सदैव चीन पर आरोप लगाया है कि COVID19 के विषाणु चीन के वुहान शहर के लैब में ही बनाये गए हैं. तभी तो उसने डब्लूएचओ को भी चीन का सहयोगी बताकर अपनी सदस्यता छोड़ दिया है. हालाँकि चीन की तुलना में अमेरिका इस संस्था को 80 प्रतिशत फंडिंग करने का कार्य करता है.
चीन को यह तथ्य समझने की जरूरत है कि उसके देश में जन्में कंफ्यूशियस ने मानवता और आपसी सौहार्द को स्थापित करने का काम किया था. अतः महज आर्थिक लाभ को केंद्र में रखकर इंसानियत की बली देना तर्कसंगत नहीं है.