BY-CHAND MOHAMMAD
कोरोना की दवा बना लेने के रामदेव के दावों पर उठ रहे सवाल आयुर्वेद पर सवाल नहीं हैं बल्कि आयुर्वेद पर तो इस देश को ऐसा विश्वास है कि झुमरी तलैया के किसी अनजान गांव का कोई गुमनाम जोगटा भी
अगर आगे आके दावा करता कि उसने कोरोना की दवा खोज ली है, तो करोड़ों लोग उस दवा को लेने टूट पड़ते. यक़ीन मानिए, ऐसे किसी अनजान व्यक्ति के दावों को बाबा रामदेव के दावों से ज़्यादा गंभीरता से लिया जा रहा होता.
बाबा रामदेव को गंभीरता से न लेने के वाजिब कारण भी हैं. क्योंकि ये वही रामदेव हैं जिन्होंने कालाधन वापस आने के दावे किए थे, पेट्रोल 35-40 रुपए लीटर मिलने के दावे किए थे और घरेलू गैस का सिलेंडर ढाई-तीन सौ में मिलने की बात कही थी.
इन राजनीतिक मुद्दों को छोड़ भी दें तो ये वही रामदेव हैं जिन्होंने योग सिखाते-सिखाते लोगों को पहले बताया कि मैगी स्वास्थ्य के लिए कितनी घातक है और फिर ख़ुद अपनी ही मैगी बेचने लगे.
वो भी ऐसी जो कई बार परीक्षणों में नेस्ले की मैगी से कहीं ज़्यादा घातक पाई गई. ये वही रामदेव हैं जो बताते फिरते थे कि जींस की पैंट क्यों नहीं पहननी चाहिए.
कहते थे इसे पहनने से पैरों में इतना पसीना आता है कि खुजली और इन्फ़ेक्शन हो जाता है. फिर ये अपनी ही जींस भी बेचने लगे.
ये वही रामदेव हैं जिन्होंने कभी स्वदेशी नाम की गाय को दुहा तो कभी भारतीय संस्कृति के नाम पर उत्पाद बेचे. लेकिन निर्लज्जता देखिए, जो बाबा कहते फिरते थे कि
‘फटी हुई जींस भारतीय संस्कृति पर आघात है’ उन्होंने खुद फटी हुई जींस तक बेची, और इस पर जब उनसे सवाल पूछे गए तो बेहद निर्लज्ज अट्टहास के साथ कहने लगे कि ‘हमारी वाली जींस थोड़ा कम फटी है.’
बाक़ी सब छोड़ दीजिए, कोरोना को ही लीजिए. यह महामारी जब दुनिया भर में पैर पसारना शुरू कर रही थी तो बाबा रामदेव दनादन सभी न्यूज़ चैनलों पर आधे-आधे घंटे के कार्यक्रम करने लगे.
इस कार्यक्रम में बाबा पीछे होते और उनके उत्पादों की स्टॉल आगे होती. वे सबको बताते कि इस दौरान उनके कौन-कौन से उत्पाद लोगों को ख़रीदने चाहिए.?
कोरोना की दवा के नाम पर इस वक्त तक उनके पास बेचने को कुछ नहीं था. तो 25 अप्रैल तक वो कोरोना वायरस को लोगों की नाक में तेल डालकर ही बहा दे रहे थे.
कह रहे थे कि पेट में जाकर कोरोना वायरस मर जाएगा लेकिन अब कथित दवा लेकर उतर आए हैं. इस तरह से नियम-क़ानूनों को ताक पर रखते हुए बाबा रामदेव ने जो कुछ किया है,
क़ायदे से उन पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के साथ ही आपदा प्रबंधन अधिनियम, खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम और ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम के तहत मुक़दमा हो जाना चाहिए था.
लेकिन जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का …आख़िर सैंया को कोतवाल बनाने के फेर में ही तो 30 रुपए का पेट्रोल, तीन सौ का सिलेंडर और सौ दिन में कालेधन की वापसी जैसे दावे किए गए थे.
अब जब सैंया कोतवाल बन गए हैं तो उन दावों की क़ीमत वसूली जा रही है. जनता कल की मरती आज मरे, बस कफ़न पतंजलि का ख़रीद ले.
(ये लेखक के अपने नीजि विचार हैं THEFIRE.INFO का इससे कोई वास्ता नहीं है)