वर्तमान समय में देश में ऐसा तबका अथवा वर्ग पनपा है जो जानवर के मरने पर तो संवेदना व्यक्त करने का ताँता लगा देता है किन्तु एक दलित की सरेआम हत्या कर देने पर चूं तक नहीं करता है.
पाठक ऐसा बिलकुल न सोचें कि मैं जानवर वह भी गर्भवती यानि हथिनी की जिंदगी को कम करके आंक रहा हूँ किन्तु मन में वाजिब सा प्रश्न कौंधता है.
अमरीका में रंगभेद के चलते ज्योर्ज़ फ्लॉयड की हत्या पर पूरा देश दुख व्यक्त करता है पर देश में दलित, पिछड़े, मुस्लिम आदिवासियों पर अत्यचार होते हैं तब इनके मुँह में दही जम जाता है.
दलित हूँ, पिछडा हूँ, मुसलमान हूँ, आदिवासी हूँ बस मेरा गुनाह इतना है कि मै भारतवासी हूँ
पूँजीपतियों के इशारे पर नाचने वाली बीजेपी सरकार के मध्यप्रदेश के गुना में एक गरीब के जमीन को छीनकर पूजीपतियो को देना चाहती है जिसका विरोध करने पर पुलिसवालों ने उस परिवार के मुखिया दम्पति को इतना बेरहमी से पीटा कि उन दोनो पति-पत्नी की मौत हो गई.
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विगत लम्बे समय से लगातार दिनों-दिन दलितों और पिछड़ों पर होते अत्याचार को देखकर लगता है कि देश की लोक- तांत्रिक व्यवस्था अंतिम सांस गिन रही है.
साभार-सुधीराम रावत असुर