पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार को बड़ी राहत देते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह उन सभी सीटों के नतीजे घोषित करे जिनपर केवल एक प्रत्याशी था। उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया है जिसमें ऑनलाइन नामांकन पत्र को अनुमति मिली थी।
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जिन उम्मीदवारों को चुनाव नतीजों से किसी भी प्रकार की परेशानी है वे संबंधित न्यायालय में 30 दिनों के अंदर याचिका दायर कर सकते हैं।
न्यायालय द्वारा दिए गए इस निर्णय से तृणमूल कांग्रेस को काफी राहत होगी क्योंकि यदि कोर्ट दोबारा चुनाव करने का आदेश देता तो इस पार्टी पर लगाए गए आरोपों से विपक्ष हावी हो जाता। जिससे पश्चिम बंगाल में कहीं ना कहीं तृणमूल कांग्रेस की साख को आघात पहुंचता।
दरसल पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में 20158 सीटों पर सिर्फ एक ही उम्मीदवार था जो कि तृणमूल कांग्रेस से संबंधित था। अतः यह उम्मीदवार निर्विरोध ही चुन लिए गए। यह संख्या कुल उम्मीदवारों की लगभग 35% थी।
मई महीने में पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हुए थे ।
इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस पर विपक्ष द्वारा आरोप लगाए गए थे कि वह अपनी सत्ता के बल पर पंचायत चुनाव पर धांधली कर रही है।
इस चुनाव के परिणाम 17 मई 2018 को घोषित किए गए थे जिनमें तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस चुनाव में भाजपा भी काफी सीटें अपनी झोली में डाल सकने में समर्थ हुई थी।
इस पूरे चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के समर्थकों के बीच कई बार भिड़ंत भी देखने को मिली थी। इस बार का पश्चिम बंगाल का पंचायत चुनाव काफी ज्यादा खतरनाक भी साबित हुआ था क्योंकि इस दौरान कई लोगों की जान भी चली गई।
इस पंचायत चुनाव में लगभग 20 हजार सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के अलावा अन्य किसी भी पार्टी के उम्मीदवार ने नामांकन तक भी नहीं भरा था। यही कारण था कि कलकत्ता हाईकोर्ट में विपक्षी पार्टियों ( सीपीएम, भाजपा और कांग्रेस) ने चुनाव में तृणमूल कांग्रेस पर धांधली का आरोप लगाते हुए एक अपील दायर की थी।
तब विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि; ” तृणमूल की कथित हिंसा और आतंकवादी रणनीति की वजह से उनके उम्मीदवार नामांकन नहीं भर पाए थे। इन पार्टियों ने यह भी आरोप लगाया था कि तृणमूल के कार्यकर्ता नामांकन दाखिल करने वाले केंद्रों के बाहर हाथों में तलवार लिए मोटरसाइकिल रैली निकाल रहे थे जिसकी वजह से उनके भावी उम्मीदवार डर गए।”।
बताते चलें इस चुनाव में कई उम्मीदवारों ने ऑनलाइन आवेदन भरा था। जिसको राज्य निर्वाचन आयोग ने मान्य नहीं किया था। जब विपक्षी पार्टियों ने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने आयोग से यह आवेदन स्वीकार करने को कहा था।
कलकत्ता हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ राज्य निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट में सीपीएम और भाजपा ने बिना लड़े मिली जीत का मुख्य तौर पर मुद्दा उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी तृणमूल कांग्रेस द्वारा बिना लड़े लगभग 35% सीटें जीतने पर हैरानी जताई थी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल ऑनलाइन नामांकन पर बल्कि बिना चुनाव लड़े मिली जीत वाली सीटों के नतीजों को जारी करने पर भी रोक लगा दी थी।