कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार सरकारी तंत्र से हुए त्रस्त

आज कारगिल विजय दिवस है जिसमें पाकिस्तान के घुसपैठियों को न केवल परास्त किया बल्कि हमारे भारतीय सैनिकों ने युद्ध में अपना शौर्य और वीरता दिखाते हुए युद्ध में शहीद हुए तथा भारत की सीमा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी.

किन्तु इस क़ुरबानी के बाद भी सैनिकों के परिवारों को सरकार के द्वारा जो घोषणाएँ की गई थीं वह आज दो दशकों के बीत जाने के बाद भी नहीं मिल सकी हैं. वे आज भी दर-दर की ठोकरें खाने के लिए भटक रहे हैं.

इस विषय में राजस्थान के झुंझुनू जिले के बास- माना गांव का प्रसंग लिया जा सकता है जहाँ हवा सिंह के कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जवान की खबर सुनकर भावविभोर हो गया था.

सरकार ने परिवार को सांत्वना देने के तौर पर एक नौकरी और पेट्रोल पंप देने की घोषणा किया था. किन्तु शहीद हवा सिंह की पत्नी मनोज देवी को एमए, बीएड होने के बाद भी नौकरी नहीं मिली.

हालाँकि पेट्रोल पंप एलॉट हुआ था किन्तु सरकारी तंत्र की जालसाजी के कारण मात्र दो वर्षों में ही उसे सीज कर दिया गया.

कुछ ऐसी ही कहानी सीथल गांव के शहीद मनीराम की है जिनकी शहादत को आज दो दशक होने के बाद भी उनके बच्चों को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली. उनके नाम पर एक स्कूल के नामकरण की घोषणा हुई थी किन्तु अब वह स्कूल भी बंद हो चुका है.

बहुत ही दुखद पहलू यह है कि शहादत के समय सरकार और उसके मंत्री परिवार के लोगों को बड़ी- बड़ी सांत्वना और सम्मान की घोषणा करते तो हैं,

किन्तु कुछ समय बीतने के बाद वो वादे कहाँ गुम हो जाते हैं, इसकी खोज खबर लेने वाला कोई मंत्री-संत्री दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता हैं.

इस तरह की लापरवाही न केवल सैनिकों का मनोबल तोड़ती हैं बल्कि सरकारी तंत्र की लालफीताशाही से तंग होकर गलत कदम भी उठाने को विवश हो जाती हैं.

 

 

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