5 अगस्त 2019 के दिन केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-A को निरस्त कर दिया था और राज्य का पुनर्गठन कर उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था.
इसी दिन से यहां रहने वाले विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवार अपनी ‘घर वापसी’ का सपना देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा था जैसे वो कश्मीर घाटी के दरवाज़े तक तो पहुंच ही गए हैं और खिड़की से उन्हें अपने सपनों का कश्मीर भी नज़र आने लगा था.
लेकिन अब एक साल का लम्बा समय बीत जाने के बाद वो खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. उन्हें अब लगने लगा है कि वो लोग उसी खिड़की के पास खड़े हो कर सिर्फ़ क़दमताल कर पा रहे हैं और उन्होंने अपने मन में मंजिल की ओर चलने का सिर्फ़ भ्रम ही पाल रखा था.
कश्मीरी पंडित समुदाय की अगुवाई करने वाली प्रमुख संस्था पनुन कश्मीर के वरिष्ठ नेता डॉक्टर अग्निशेखर ने बीबीसी हिंदी से कहा, “जहां केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इतना बड़ा ऐतिहासिक फ़ैसला ले लिया वहीं दूसरी ओर बीते एक साल से कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर उन्होंने अब तक कोई पहल नहीं की.”
डॉ अग्निशेखर के अनुसार- “ज़मीन पर अभी कुछ भी नहीं बदला है. उन्होंने साफ़ कहा जो खिड़की हमारे लिए साल भर पहले खुली थी हम आज भी उसके पास खड़े हो कर सिर्फ़ आगे ताक रहे हैं.”
पिछले एक साल में जो कुछ भी बदलाव हुए हैं वो सिर्फ सतही तौर पर हुए हैं लेकिन अभी भी भीतर मानसिकता बिल्कुल नहीं बदली है. जो पिछली सरकारें करती थी आज की सरकार भी वही कर रही है.
वहीं दूसरी और पेशे से डॉक्टर और लेखक डॉक्टर रमेश तामीरी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “केंद्र सरकार ने कश्मीरी हिन्दू परिवारों के पुनर्वास और दूसरी समस्याओं को हल करने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाये हैं.”
उन्होंने ये भी कहा कि केंद्र सरकार कश्मीरी विस्थापित परिवारों की विरोधी नहीं हैं लेकिन एक साल गुज़र जाने के बाद भी किसी मसले का हल नहीं निकाला है.
2018 में कश्मीर घाटी में अनंतनाग ज़िले की ब्राह पंचायत से सरपंच पद का चुनाव जीत कर राकेश कौल ने अपने इलाक़े में काम करना शुरू किया था लेकिन वो कहते हैं,
“अभी तक हमारी पहचान को लेकर सवाल किये जाते हैं. न हमे कोई जम्मू वाला मानता हैं और न कोई कश्मीर वाला मानता है. हमारे सारे सरकारी दस्तावेज पहले कश्मीर घाटी में वेरीफाई किये जाते उसके बाद जम्मू में. अनुच्छेद 370 के रहते भी यही निज़ाम चल रहा था और हट जाने के बाद भी ज़मीन पर यही हाल है.”
इस समय पूरे कश्मीर में करीब चार हज़ार विस्थापित कश्मीरी अलग-अलग ट्रांज़िट कैम्पों में रह रहे हैं और लगातार सरकार के सामने जम्मू स्थित ‘घर वापसी’ की मांग को दोहरा रहे हैं.
(साभार: बीबीसी)