मिली जानकारी के मुताबिक तिब्बत के क्षेत्र में लगातार मानव अधिकारों के होते उल्लंघन का कड़ा प्रतिकार करने वाली तथा तिब्बत की आजादी की लड़ाई बड़े संघर्ष के साथ लड़ा.
ऐसा बताया जाता है कि गर्भवती होने के दौरान ही उन्होंने चीनी सरकार के खिलाफ अपना संघर्ष शुरू किया था, इस विषम परिस्थिति में भी चीनी सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया.
1928 में पूर्वी तिब्बत के क्षेत्र में एक खानाबदोश परिवार में जन्म लेने वाली आमा आधे का संघर्ष 1950 में उस समय प्रारम्भ हुआ जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया.
उनके पति की मृत्यु जहर खाने से हो गई थी इसके बाद वह खाबों के तिब्बती प्रतिरोध में शामिल हुई तथा 1998 चीनी सरकार ने गिरफ्तार करके दो छोटे-छोटे बच्चों से अलग कर दिया.
इतना ही नहीं क्रूर चीनी सरकार ने इन्हें 27 वर्षों तक जेल में रखते हुए प्रताड़ना सहनी पड़ी. इन्हें कैद से जब रिहा किया गया तब 1987 में भाग कर भारत आई.
यहां पर दलाई लामा की शरण में इन्होंने मैकलोडगंज को अपना घर बना लिया. अपने संघर्ष की कहानी को इन्होंने एक पुस्तक अम्मा आधे: द वाईस डेट रिमेंबर्स के रूप में डालकर 1997 में प्रकाशित कराया.
आपको यहाँ बताते चलें कि अम्मा आधे को किसी प्रकार की स्वास्थ संबंधित दिक्कत है नहीं थी बल्कि लंबी बीमारी के कारण इनका निधन हुआ है.