संघ की रणनीति के आगे बड़े-बड़े धुरंधर चित्त होते रहे हैं, मनुवादी और सामंतवादी विचारधारा की पोषक संघ ने बीजेपी के राजनैतिक विरोधियों को परास्त करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सब कुछ अपनाया है. कई बार तो संघ ने बीजेपी विरोधी राजनैतिक परिवारों को आपस में लड़वा कर अपने रास्ते साफ किए है.
बिहार में तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच झगड़ा रहा हो या शिव पाल सिंह यादव का सपा से अलग होना इन सबके पीछे संघ का ही खेल रहा है.
अब 2022 में अखिलेश यादव को हराने और सपा का राजनैतिक भविष्य समाप्त करने के लिए संघ ने जो जाल फेंका है उसमें पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फंस गए हैं.
इसे समझने की जरूरत है:
2017 में बनी बीजेपी सरकार में गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव दलितों का भरपूर योगदान रहा है लेकिन सरकार बनने के बाद से अब तक केवल ठाकुर-ब्राह्मणों ने सत्ता का पूरा मजा लिया है, इन दोनों जातियों ने ना केवल सत्ता का मजा लिया बल्कि इन्होंने दलित, पिछड़ो पर भरपूर अत्याचार भी किया है.
इसके अलावा बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकारों ने एन-केन-प्रकाणेन आरक्षण को ख़त्म कर दलित, पिछड़ो के लिए नौकरियों के रास्ते भी बन्द कर दिए हैं जिसकी वजह से 2017 में बीजेपी को सत्ता देने वाली OBC और SC की जातियाँ अब बीजेपी से दूर होती दिखने लगी तो संघ ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है.
जानिए क्या है संघ का मास्टर स्ट्रोक?
सत्ता देने वाली पिछड़ी जातियों और दलितों को अपने हाथ से फिसलने से रोकने के लिए संघी ब्राह्मणों ने एक नैरेटिव सेट किया है कि योगी सरकार में ब्राह्मणों पर अत्याचार हुआ है और ब्राह्मण इस सरकार में पीड़ित हैं.
इसलिए ब्राह्मण 2022 में बीजेपी को वोट ना देकर अखिलेश को वोट देंगे. सोशल मीडिया हो या गली, चौराहे ब्राह्मण जाति के लोगों ने ये एजेंडा फैलाना शुरू कर दिया है जिसके बाद अखिलेश यादव भी कुर्मी, लोधी, पाल, मौर्या, प्रजापति,
पासवान, कोरी, सोनकर जैसी जातियों को साथ जोड़ने के बजाए ब्राह्मणों को रिझाने में जुट गए हैं. रायबरेली के विधायक मनोज कुमार पाण्डेय को सपा का प्रदेश प्रवक्ता बनाना इसी कड़ी का हिस्सा है.
अब संघी ब्राह्मणों द्वारा फैलाये गए इस एजेंडे के पीछे का कारण समझिए ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सदियों से ब्राह्मणों द्वारा शोषित जातियों को यह भरोसा दिलाया जाए कि दलित, पिछड़ों का शोषण करने वाला ब्राह्मण समाज बीजेपी सरकार में पीड़ित है और बीजेपी सरकार ने ना केवल ब्राह्मणों से दलितों व पिछड़ो के शोषण का बदला लिया है
बल्कि ब्राह्मणों के शोषण से दलितों, पिछड़ो को केवल बीजेपी ही बचा सकती है. इसी एजेंडा के बदले 2022 में बीजेपी गैर यादव, पिछडो व गैर जाटव दलितों का दोबारा वोट लेने में सफल हो जाएगी, जबकि संघ द्वारा रचित इस चाल-जाल में फंसे अखिलेश यादव ने पूरा ध्यान केवल ब्राह्मण को साधने में लगा दिया है.
इसका परिणाम यह होगा कि 2022 में सपा को ब्राह्मण वोट तो मिलने से रहा बल्कि गैर यादव पिछड़ा और गैर जाटव दलित भी सपा के विरोध में बीजेपी को वोट देकर दोबारा सरकार बनवा देगा.
साथियों अब कुछ सवाल है जिनके जवाब अपने आप को स्वयं दें –
1- क्या ब्राह्मण समाज के लोग पिछड़ों व दलितों के आरक्षण ख़त्म करने वाली बीजेपी के खिलाफ वोट देकर सपा की सरकार बनवाएंगे?
2- सवर्णों को 10% मुफ्त में आरक्षण देने वाली बीजेपी का साथ क्या ब्राह्मण समाज छोड़ेगा?
3- यदि ब्राह्मण सपा में भी पूज्यनीय और सर्वोपरी रहेगा तो पिछड़े और दलित सपा को वोट क्यों देंगे?
4- अभिषेक मिश्रा, मनोज कुमार पाण्डेय व पवन पाण्डेय जैसे नेता क्या सपा को ब्राह्मण वोट दिलवा पाएँगे? क्या ये सभी 2012 वा 2014 में सपा को ब्राह्मण वोट दिलवा पाए थे?
5- बीजेपी से ब्राह्मण कैसे नाखुश हो सकता है? जबकि कमिश्नर से लेकर सचिव तक प्रदेश के सभी उच्चाधिकारी ब्राह्मण है
6- PCS भर्ती से लेकर सरकारी वकील बनने में सबसे अधिक हिस्सा ब्राह्मणों को मिला है तो ब्राह्मण बीजेपी के खिलाफ वोट क्यों देगा?
7- मन्दिर से लेकर नौकरियों तक क्षत्रियों से भी ज्यादा हिस्सा पाने वाला ब्राह्मण सपा की सरकार क्यों बनवाएगा?
8- जब यादव, जाटव, पटेल, कोहार, लोहार, मौर्या, धोबी, पासवान, सोनकर, दुसाध, निषाद, राजभर, जाटव, मुसलमानो की हत्या हो रही थी तो जो लोग जश्न मना रहे थे, तो क्या यह लोग सपा सरकार बनवाएंगे?
बीजेपी से ब्राह्मणों की नाराजगी केवल संघ द्वारा रचित एजेंडा है जिसके नाम पर 2022 में एक बार फिर पिछड़ों व दलितों का वोट भरपूर लिया जा सके.
जय सिंह यादव (DISCLAIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं)