राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन दोनों के एजुकेशन के लिए किए गए कार्यों को पढ़कर बताए कि किसका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहिए?
ज्योतिबा ने 1848 से ही शिक्षा क्रांति का आगाज कर दिया था अर्थात राधाकृष्ण के जन्म (1888) से 40 साल पहले.
राधाकृष्णन एक कलेक्टर के घर पैदा हुए, स्कॉलरशिप के जरिये पढ़ते रहे,
बाद में अंग्रेजों के अधीन कॉलेजों व यूनिवर्सिटी में अध्यापन का काम करते रहे और इस सेवा के बदले उनको 1931 में “सर” या “नाईटहुड” की उपाधि भी दी गई. अंग्रेजों से आजादी के लिए भारतीय लोगो की कुबार्नी भरे संघर्ष से उन्होंने हमेशा सुरक्षित दूरी बनाए रखी.
ज्योतिबा ने 1848 से लेकर 1852 तक 4 साल के अंदर ही करीब 20 स्कूल खोल डालें जबकि राधाकृष्णन ने कभी स्कूल नहीं खोला.
ज्योतिबा ने पिछड़ी जाति के लोगों को बिना पैसे लिए एजुकेशन दिया जबकि राधाकृष्णन ने जिंदगी भर पैसे के लालच में लोगों को पढ़ाया.
ज्योतिबा ने खुद का धन खर्च कर लोगों को शिक्षा दी जबकि राधाकृष्णन ने एजुकेशन देने के नाम पर खूब धन कमाया. ज्योतिबा ने गांव-देहातों में 20 स्कूल खोले जबकि राधाकृष्णन का गांव-देहातों से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं था, स्कूल खोलना तो दूर की बात है.
ज्योतिबा ने सबको वैज्ञानिक सोच वाली एजुकेशन दिया जबकि राधाकृष्णन वैदिक/वर्ण/ब्राह्मण/जाति/हिंदू धर्म की गैरबराबरी और अंधविश्वास वाली एजुकेशन का कट्टर समर्थक था.
ज्योतिबा ने बालविवाह आदि कुरीतियों का विरोध किया जबकि राधाकृष्णन बाल विवाह का समर्थक था और अपनी लड़की का बाल विवाह किया.
ज्योतिबा ने महिलाओं के लिए पहला स्कूल 1848 में खोला जबकि राधाकृष्णन महिला शिक्षा का विरोधी था. ज्योतिबा ने अपनी संगिनी को सबसे पहले एजुकेशन दी, भारत की प्रथम प्रशिक्षित शिक्षिका बनाया जबकि राधाकृष्णन ने अपनी संगिनी को अनपढ़ बनाए रखा.
ज्योतिबा ने अपना गुरु छत्रपति शिवाजी महाराज को माना जबकि राधाकृष्णन ने सावरकर को. ज्योतिबा ने गुलामगिरी नामक ग्रंथ लिख पिछड़ी (SC ST OBC MC) जातियों को गुलामी का अहसास कराया जबकि राधाकृष्णन ने वैदिक/वर्ण/ब्राह्मण/जाति/हिंदू धर्म का समर्थन ही किया.
ज्योतिबा ने किसानों को जगाने के लिए किताबें लिखी जैसे “किसान का कोडा” और आज से 150 साल पहले कृषि विद्यालय की बात की जबकि राधाकृष्णन ने जितनी भी किताबें लिखी सब वैदिक/वर्ण/ब्राह्मण/जाति/हिंदू धर्म को महिमामंडित करने के लिए लिखी.
ज्योतिबा ने कहा, “सभी को एजुकेशन मुफ्त और सख्ती से दी जाए” और इसके लिए हंटर कमीशन (उस समय का भारतीय एजुकेशन आयोग) के आगे अपनी यह मांग रखी जबकि राधाकृष्णन ने बहुजनों को एजुकेशन देने का समर्थन नहीं किया..
ज्योतिबा को लोगों ने “राष्ट्रपिता” की उपाधि दी जबकि राधाकृष्णन को चोरी के आरोप की थीसिस पर डॉक्टर की उपाधि मिली. ज्योतिबा ने विधवा विवाह को बढ़ावा दिया जबकि राधाकृष्णन विरोधी था, ज्योतिबा विज्ञानवादी थे जबकि राधाकृष्णन परंपरावादी.
ज्योतिबा समता, बंधुता, न्याय के समर्थक थे व वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे जबकि राधाकृष्णन वर्ण व्यवस्था के समर्थक. ज्योतिबा ने महिलाओं को आदर दिया, उनके लिए स्कूल और शिक्षा का प्रबंध किया
जबकि राधाकृष्णन महिला शिक्षा के विरोधी थे. ज्योतिबा ने बहुजनों की जागृति के लिए साहित्य लिखा जबकि राधाकृष्णन का साहित्य बहुजनों के हक में ही नहीं था.
ज्योतिबा के साहित्य से समाज में परिवर्तन हुआ जबकि राधाकृष्णन के साहित्य से समाज में कोई परिवर्तन नहीं हुआ.
प्रसंगवश
सावित्रीबाई और फातिमा शेख
भारत में यदि किसी के नाम पर शिक्षक दिवस मनाया जा सकता है तो उनमें लाज़मी ही सावित्रीबाई फूले और फातिमा शेख का नाम गिना जा सकता है.
अंग्रेजों की हकुमत के समय उन्होंने औरतो के लिए पहला स्कूल खोला और पहली महिला अध्यापिकाए बनी. अंग्रेजों की शिक्षा (जिसमें राधाकृष्णन ने शौक से सेवा की) अंग्रेज भक्त क्लर्क बनाने के लिए थी, पर सावित्री बाई फूले और फातिमा शेख का जोर वैज्ञानिक शिक्षा देने पर था.
ध्यान रहे कि उस वक्त भारतीय समाज बहुत पिछड़ा हुआ और औरतों की शिक्षा हासिल करने और बाहर निकलने पर पाबन्दियाँ थीं.
समाज में होते निरादर, नफरत के वावजूद उन्होंने अपना काम जारी रखा सावित्री. बाई फूले को तो कुछ लोग जानते थे, पर फातिमा शेख के बारे में बहुत कम लोग जानते थे.
अध्यापकों में मेहनतकश लोगों के नायक सावित्री बाई फूले और फातिमा शेख जैसे अध्यापक ही हो सकते हैं. हमें हमारी विरासत की इन महान अध्यापकों के जीवन से शिक्षा लेते हुए
उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए आज के समय की चुनौतियों के मुताबिक मेहनतकशों, मजदूरों तक की सारी आबादी को प्रगतिशील, वैज्ञानिक कदर-कीमतों वाली और मुफ़्त शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में बढ़ना चाहिए.
सावित्री बाई फूले, फातिमा शेख़ इतिहास और वर्तमान के उन जैसे हजारों अनगिने अध्यापक कहलाने के हकदारों को हमारा सलाम.
संदर्भ
(मूलनिवासी टाइम्स हिंदी पाक्षिक (दिनांक 16-31 मई, 2015), नौजवान भारत सभा)