मिली सूचना के मुताबिक उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने अंगदान को महादान बताते हुए सभी नागरिकों से इसमें सहयोग देने और दूसरों को भी प्रेरित करने की अपील किया है.
दरअसल उपराष्ट्रपति दिव्यांग लोगों के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था शिक्षा ‘सक्षम’ के द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय चक्षु दान पखवाड़े’ के समापन समारोह को संबोधित करने के दौरान यह बात कही है.
वर्तमान समय में दृष्टिहीनता स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी गंभीर चुनौती के रूप में सामने आई है अगर भारत के परिप्रेक्ष्य में दृष्टिहीनता का आंकड़ा इकट्ठा करें तो पता चलता है कि 46 लाख लोग इसके शिकार हैं,
तथा इनमें से अधिकांश की आयु 50 वर्ष से अधिक है. देश में अंगदान का प्रचलन की कमी पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में जागृति प्रसार कर समाज की मानसिकता बदलने की जरूरत है.
इस को प्रोत्साहन देने के लिए जिले स्तर पर अंगों को निकालने उसे संरक्षित करने तथा अंग प्रत्यारोपण के लिए विशेषज्ञता इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराई जानी चाहिए
नायडू ने अपनी बात को पुख्ता करते हुए समाज कल्याण की दिशा में शरीर दान करने वाले राजा शिवि और दधीचि जैसे पौराणिक महापुरुषों
का उदाहरण सामने रखा और कहा कि-“इन सनातन मूल्य और कथाओं को आधुनिक समय में प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता है. उन्होंने विशेषकर युवाओं में अंगदान से संबंधित भ्रम और संसद को त्याग करके इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का प्रस्ताव रखा.”
चुँकि किसी अंग को एक शरीर से निकालकर दूसरे शरीर में प्रत्यारोपित करने के बीच का समय सबसे अधिक कठिन होता है, ऐसे में निकाले गए इन अंगों को स्थानीय स्तर पर सुरक्षित करने के लिए उपयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने पर भी उन्होंने जोर दिया.
ऐसा करने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जरूरतमंद लोगों को मेट्रो शहरों की तरफ भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी तथा उनकी जरूरत स्थानीय स्तर पर ही पुरी हो जाएगी.
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के ग्लोबल एक्शन फॉर यूनिवर्सल हेल्थ का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 के 2015 के निर्धारित लक्ष्यों को भारत में सफलता प्राप्त किया गया है.