वर्तमान में मंडल आयोग की प्रासंगिकता

BY- Saeed Alam

जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में बी पी मंडल की अध्यक्षता में मंडल आयोग का गठन किया,  जिसका मुख्य कार्य सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान करना था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मुसलमानों सहित विभिन्न पंथों जिनमें 3743 जातियां शामिल थीं को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडों के आधार पर अवलोकन किया और इन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए विभिन्न सरकारी नौकरियों में 27 परसेंट का आरक्षण घोषित कर दिया.  आयोग ने पिछड़ी जातियों, वर्गों के निर्धारण के लिए सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक मानकों के आधार पर 11 सूचकांक तय किए जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

वह  अन्य जाति  या वर्गों द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़ा समझा जाता है 

वह जाति या वर्ग जो आजीविका के लिए मुख्यता शारीरिक श्रम पर निर्भर है

वैसी जाति या वर्ग जो मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले छात्र-छात्राओं का प्रतिशत राज्य और सबसे औसत से 25% कम है

वैसी जाति या वर्ग का जिनमें 17 वर्ष से कम आयु की महिलाओं का विवाह ग्रामीण इलाकों में राज्य और सबसे 25% और शहरी इलाकों में 10% अधिक है और इसी आयु वर्ग में पुरुषों का विवाह दर इलाकों में 10% तथा शहरी मैं 5:00 पर्सेंट ज्यादा है

वह जाति और वर्ग जिनमें आवश्यक पारिवारिक संपत्ति मूल्य राज्य और से 25% कम है

ऐसे इलाकों में रह रही जातियां  जिनमें से 50% परिवारों को पेयजल के लिए आधा किलो मीटर से दूर जाना पड़ता है

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भारत में विभिन्न जातियों का ताना बाना समाज के पैरोकारों ने कुछ इस तरह से बुना की मुट्ठीभर जनसंख्या का  देश के 80 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा हो गया जबकि लोगों के बड़े जनसमूह के हिस्से  मात्र 20% संसाधन है.  इसने अप्रत्यक्ष रूप से संपत्ति धारण की असमानता का बीजारोपण किया

इसका नतीजा यह निकला कि अमीर और अमीर तथा गरीब अत्यधिक दरिद्रता का शिकार हो गया.

राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली को तोड़े जाने के पीछे यह भी बड़ा कारण रहा  कि जब लोगों ने औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध कमर कस कर संघर्ष किया तो यह तथ्य उभरकर सामने आया कि हमारे देश में अंग्रेज इतनी बड़ी समस्या नहीं हैं जितनी कि यहां के स्वयं के राजे ,महाराजे, नवाब आदि हैं .

यही वजह है कि 19वीं सदी में विभिन्न जनजाति ,किसान ,मजदूर आंदोलनों के संघर्ष की एक लंबी फेहरिस्त मिलती है . जमींदार, साहूकार, महाजन ,मुनीम इत्यादि ने  लगान और ऋण ऐसी की उलझाऊ तकनीक ईजाद की  जिसमें बेचारा गरीब निःसहाय , जरूरतमंद उलझ गया और वह कभी दरिद्रता ,पीड़ा , शोषण और अत्याचार से बाहर नहीं निकल सका और अकारण अकाल  मौत का शिकार हो गया.

 

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आजादी के बाद जब हमने संविधान का निर्माण किया तो कम से कम इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने देश में रहने वाले प्रत्येक वर्ग के लिए कुछ ना कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई ताकि वह मनुष्य होने का आभास कर सके तथा अपने सामाजिक, शैक्षिक , सांस्कृतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करे, संविधान में वर्णित निदेशक तत्वों के आधार पर अपने विकास की नई इबारत लिख सकें.

नीति निदेशक तत्व केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पथ प्रदर्शन का कार्य करता है . केंद्र और राज्य अपनी सभी प्रकार की योजनाओं , व्यवसाय, अवसर का सृजन इन तत्वों को हमेशा ध्यान में रखकर कानून बनाती है क्योंकि आजादी के समय हमारे समक्ष बहुत सी चुनौतियां विद्यमान थी— जैसे सांप्रदायिकता ,विभाजन से उपजा तनाव, राजकोष का खाली हो जाना ,गरीबी, भुखमरी, चिकित्सा सेवाओं का अभाव .शैक्षिक पिछड़ेपन, लोगों की निम्नतम क्रय शक्ति, खदान में संकट आदि बहुत ही ऐसी  समस्याएं विद्यमान थी.

ऐसे में इनका तत्काल समाधान कर पाया संभव नहीं था अतः सरकारों ने तय किया कि जैसे-जैसे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी वैसे वैसे हम नागरिकों को हर सुविधाएं प्रदान करेंगे इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 1979 में मंडल आयोग का गठन हुआ था जिसने अपने अध्ययन के बाद रिपोर्ट पेश की तथा हाशिए पर चले गए  के उत्थान के लिए आरक्षण जैसी व्यवस्था का पदार्पण किया. आज र्तमान में हमने जो आर्थिक राजनीतिक वैज्ञानिक सांस्कृतिक तकनीकी क्षेत्रों में उन्नति किया है वह काफी तो नहीं किंतु संतोषजनक अवश्य है.

देश की साक्षरता दर 74.04  प्रतिशत  हो चुकी है और जीडीपी की विकास दर 7.4% प्राप्त करना यह दर्शाता है कि हम 1947 के भारत से आज बहुत आगे निकल चुके हैं . हमारी ताकत का पता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले विभिन्न संगठनों, समायोजनों में स्पष्टत दिखने लगता कि जब हम खुद आगे बढ़कर शांति मिशन में शिरकत करते हैं और विकसित देश हमारी इस उपलब्धि का लोहा मानते हैं .यह सचमुच नवीन भारत के उदय के लिए एक सकारात्मक पहचान है .

2018 में जब हम बी पी मंडल की जयंती मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं तो पुनः यह  बहस का मुद्दा बन चुका है कि उन्नति का जो लक्ष्य हमने 1980 में निधारित  किया था वह अभी तक पूरा क्यों नहीं हो सका . आखिर इसके लिए कौन सी ताकतें जिम्मेदार हैं ? कौन बाधा बना और किसने हाशिए पर चले गए वर्गों के विकास को मुख्यधारा में आने से रोड़ा बना रहा ? निश्चित तौर पर बाधाएं जितनी भी क्यों ना खड़ी हो किंतु हमारी आर्थिक मजबूती ने हमारे जीवन स्तर को ऊंचा बनाया  है साथ ही विश्व के समक्ष एक आदर्श भी रखा है .

                  जरूरत इस बात की है कि हम किसी पर आरोप प्रत्यारोप ना लगा कर राजनीति का जो मूल उद्देश्य है –जन सेवा , उसको पूरा करें तथा भेदभाव, असमानता  गैरबराबरी जैसे निकृष्ट  तत्वों से बचते हुए देश को प्रगति पथ पर ले चलें तभी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  के सपनों का भारत तथा हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम  के सपनों को भी अमली जामा पहनाया जा सकता है.

सईद आलम  —स्वतंत्र लेखक एवं विचारक

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